सूत्र बताते हैं कि अगले दो वर्षों के अंदर राज्य में सरना कोड लागू किये जाने की घोषणा हो सकती है. इसी क्रम में राज्य सरकार के निर्देश पर ही खिजरी के भाजपा विधायक रामकुमार पाहन ने सरना कोड लागू करने की मांग के साथ दिल्ली में केंद्र के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की है. हालांकि, राज्य सरकार की ओर से कोई इस मामले पर अभी कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं है. नेता समय का इंतजार करने और अफसर जल्दबाजी की बात कह कर मुद्दे पर कुछ कहने से बच रहे हैं. राज्य में लंबे समय से आदिवासी समुदाय द्वारा सरना कोड लागू करने की मांग की जा रही है. वर्तमान में जनगणना में सरना कोड नहीं होने की वजह से सरना आदिवासियों को हिंदू या अन्य के काॅलम में जगह मिलती है. आदिवासी नेताओं का कहना है कि जनगणना में सरना समुदाय के आंकड़ों की सही-सही जानकारी नहीं मिलने से सरकार द्वारा बनाये जानेवाली विकास योजनाओं में बड़ी आबादी होने के बावजूद आदिवासियों की हिस्सेदारी कम होती जा रही है.
उसके बाद मुंडा (30.44 प्रतिशत) एवं उरांव (26.9 प्रतिशत) का स्थान आता है. अपने ही जनजातीय क्षेत्र के अंदर सबसे कम ईसाई का प्रतिशत संथाल (6.29 प्रतिशत) एवं हो (1.85 प्रतिशत) लोगों में है. इन चारों में सरना धर्म माननेवालों का प्रतिशत सबसे ज्यादा हो लोगों में है. इसकी 90.85 प्रतिशत आबादी अपना धर्म सरना मानती है. उसके बाद क्रमश: उरांव की 55 प्रतिशत आबादी, मुंडा की 50.76 प्रतिशत आबादी अपना धर्म सरना लिखती है. संथाल के 34.69 प्रतिशत एवं खड़िया की 22.91 प्रतिशत आबादी अपना धर्म सरना लिखती है. आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि जनजातियों का धर्म एक निश्चित नामकरण के अभाव में विखंडित है.