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आजादी के बाद पहली बार बनी सड़क

रांची : अनगड़ा प्रखंड के डुमरटोली तथा इसके एक टोले डेंबाबुरा को पहली बार पक्की सड़क मिली है. यहां के दो-चार परिवाराें को छोड़ सभी आदिवासी हैं. टाटीसिलवे से करीब छह किमी दूर इन जनजातीय गांवों के बच्चों को अब स्कूल जाने में परेशानी नहीं होगी. अब तक पांचवीं के बाद पढ़ाई के लिए बच्चों […]

रांची : अनगड़ा प्रखंड के डुमरटोली तथा इसके एक टोले डेंबाबुरा को पहली बार पक्की सड़क मिली है. यहां के दो-चार परिवाराें को छोड़ सभी आदिवासी हैं. टाटीसिलवे से करीब छह किमी दूर इन जनजातीय गांवों के बच्चों को अब स्कूल जाने में परेशानी नहीं होगी.
अब तक पांचवीं के बाद पढ़ाई के लिए बच्चों को करीब छह किमी जंगली, कच्चा व पथरीला रास्ता तय करके टाटीसिलवे के पास मध्य विद्यालय चतरा जाना पड़ता था. अाने-जाने व पढ़ने की इसी परेशानी के कारण पूरे गांव में कॉलेज जाने वाली सीता अकेली लड़की है. वहीं, करीब पांच सौ की आबादी वाले इन गांवों में मैट्रिक पास सिर्फ 15-17 लोग हैं.
सड़क बन जाने से इस गांव के ग्रामीण अब खुश हैं. नयी सड़क होरहाप, बिनहरबेड़ा, डुमरटोली व अन्य गांवों को टाटीसिलवे (पुराना चतरा गांव) से जोड़ती है. किसी के बीमार होने पर अब उसे जल्दी अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा.
… लेकिन, बिजली नहीं मिली : ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत डुमरटोली व डेंबाबुरा का भी विद्युतकरण होना है. ठेकेदार के कहने पर गांव के 10-20 युवाओं ने समय निकाल-निकाल कर बिजली का पोल खुद अपने हाथों से गाड़ा. टाटीसिलवे के पुराना चतरा गांव से अपने गांव के बीच करीब छह किमी तक जगह-जगह पोल गाड़ने में ग्रामीण लड़कों को साल भर लगे.
गांव के हरि उरांव, बंगरू मुंडा तथा पुष्कर मुंडा के अनुसार पथरीले व जंगली इलाके में छह-छह फीट गहरा गड्ढा बना कर चार साल पहले ये पोल खड़े किये गये थे. पर ग्रामीणों के साथ दोहरा धोखा हुआ. एक तो ठेकेदार ने किसी को एक रुपये भी मजदूरी नहीं दी और न ही गांव तक बिजली पहुंची. ग्रामीण विद्युतीकरण के ये पोल आज भी बगैर तार-बिजली के ही खड़े हैं.

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