रांची: झारखंड में वर्ष 2012 से लेकर अप्रैल 2016 तक मानव तस्करी के 395 मामले दर्ज किये गये. मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने 341 लोगों को बरामद किया. इसके साथ ही पुलिस ने मानव तस्करी के आरोप में 180 लोगों को गिरफ्तार किया. इसमें 122 पुरुष व 58 महिला शामिल हैं. सिर्फ तीन मामलों में 10 अभियुक्तों को अदालत में सजा दिलायी जा सकी है.
इन तीन मामलों में अभियुक्तों को इसलिए सजा मिल पायी, क्योंकि दीया सेवा संस्थान ने पीड़ितों के पक्ष में काम किया. सीआइडी के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2005 से वर्ष 2015 तक तीन हजार से अधिक लोगों के लापता होने की सूचना पुलिस में दर्ज की गयी. मानव तस्करी के शिकार लोगों के लिए काम करनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता बैजनाथ के मुताबिक झारखंड से हर दिन करीब 20 लोग लापता होते हैं. उसमें अधिकांश बच्चे होते हैं.
पन्नालाल को मिल गयी जमानत : वर्ष 2014 में खूंटी पुलिस ने मानव तस्कर पन्ना लाल को दिल्ली से गिरफ्तार किया था. तब पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी को बड़ी सफलता बतायी थी. पन्ना लाल पर खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लातेहार के ग्रामीण इलाकों के एक हजार से अधिक बच्चों व महिलाओं को दिल्ली ले जाने का आरोप है. हालांकि पुलिस उसे ज्यादा दिन तक जेल में नहीं रख सकी. वह जमानत पर रिहा हो गया. आरोप है कि पन्नालाल ने मानव तस्करी की बदौलत करोड़ों रुपये की संपत्ति अर्जित की. उसकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उसकी संपत्ति को जब्त करने की बात कही थी, लेकिन इस पर भी कोई काम नहीं हुआ.
सहारनपुर ले जाकर बेच दिया
पिस्कामोड़ निवासी महिला रिमझिम(बदला हुआ नाम) को रीता देवी, आरती देवी, मो तालिब और मो मोईन ने नौकरी दिलाने के बहाने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के अलीबाड़ा स्थित एक प्लेसमेंट एजेंसी में ले गये. वहां जाकर हरियाणा के विजय सिंह को 1.50 लाख रुपये में बेच दिया. विजय सिंह उसे माला पहनाकर अपने साथ हरियाणा ले गया. वहां पर रिमझिम को 25 गाय-भैंस को चारा खिलाने और घर का खाना बनाने के काम में लगा दिया गया. इतना ही नहीं विजय सिंह और उसके भाइयों ने लगातार कई सालों तक उसका शारीरिक शोषण किया. जब वह गर्भवती हो गयी, तब एक दिन बेहोश हो गयी. विजय सिंह ने उसे एक निजी नर्सिंग होम में भरती कराया. जहां के चिकित्सक से रिमझिम ने अपनी व्यथा बतायी. चिकित्सक की मदद से वह भाग कर रांची पहुंची. फिर सुखदेवनगर थाना में केस कराया. इसी दौरान विजय सिंह रिमझिम को लेने रांची आया. दीया सेवा संस्थान के बैजनाथ की सूचना पर पुलिस ने उसे रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया. इस मामले में पुलिस अदालत में रिमझिम का पक्ष ठीक से नहीं रख रही थी. जिसके बाद दीया सेवा संस्थान ने सरकारी वकील से बात की. तब मामले में ठीक से पैरवी हुई और विजय सिंह समेत अन्य आरोपियों को अदालत ने 16 जून 2012 को सजा सुनायी.
तीन नाबालिग समेत चार को बेचने के मामले में सजा
बुंडू के कच्चीडीह निवासी रमेश्वर उरांव ने तीन अप्रैल 2013 को बुंडू थाना में एक मामला दर्ज कराया था. जिसमें कहा गया था कि विजय मुंडा ने दो नाबालिग बच्ची, एक नाबालिग बच्चा समेत चार लोगों को दिल्ली में ले जाकर बेच दिया है. प्राथमिकी दर्ज होने के बाद बुंडू थाना की पुलिस ने 28 जून 2013 को तीन नाबालिग समेत चार लोगों को बरामद किया था. पुलिस ने 31 अक्तूबर 2013 को अभियुक्त विजय मुंडा को गिरफ्तार किया था. इस मामले में पुलिस ने बेहतर अनुसंधान किया. कोर्ट में भी मामले पर ध्यान दिया गया, जिस कारण अदालत ने विजय मुंडा को 11 हजार रुपये जुर्माना और 10 साल की सजा सुनायी.
तस्करों ने 50 हजार में बेच दिया था 10 माह बाद घर लौटी तो गर्भवती थी
वर्ष 2013 में जब बुंडू निवासी रेखा देवी (बदला हुआ नाम) घर लौटी थी, तब उसकी उम्र 32 साल थी. रेखा के पति की मौत के वर्ष 2012 में स्थानीय दलाल लाल खान और उसकी पत्नी उसे बहला कर बुलंदशहर में ले जाकर 50 हजार में बेच दिया. उसके साथ चार अन्य महिलाओं को भी ले जाकर बेचा गया था. जिसमें से तमाड़ निवासी मोनिका की मौत बुलंद शहर में ही हो गयी थी. रेखा देवी का शारीरिक शोषण भी हुआ. जब वह गर्भवती हो गयी, तब उस पर किसी ने ध्यान रखना बंद कर दिया. तब वह किसी तरह भाग कर बुंडू स्थित अपने ससुराल पहुंची. ससुराल वालों ने उसे स्वीकार नहीं किया. इसके बाद उसने बुंडू थाना में लाल खान, लाल खान की पत्नी समेत तीन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी. कोर्ट ने इस मामले में आरोपियों को सजा सुनायी है.