जीवेश
कोयलांचल की बड़ी आबादी आज भी स्लम (जिसे स्थानीय भाषा में धौड़ा कहा जाता है) में रहती है. जीवन स्तर के हिसाब से निम्न पर कमाई में किसी भी आम कसबा से बेहतर हैं यहां के निवासी. सिर्फ भुरकुंडा कोयलांचल में 11 धौड़ा है. इनमें रोज कोयला चुन कर खाने-कमानेवालों की संख्या लगभग 25 हजार है. एक आकलन के अनुसार कोयला चुन कर इन धौड़ा का एक आदमी प्रतिदिन लगभग 300 रुपये कमाता है. इस प्रकार भुरकुंडा कोयलांचल के 11 धौड़ा के 25 हजार लोगों की रोज की कमाई लगभग 75 लाख रुपये है. मासिक लगभग 22.5 करोड़ रुपये. पर उनका जीवन उतना ही खराब है.
जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित होने, धूलकण के बीच रहने की विवशता और खराब रहन-सहन के कारण कम उम्र में ही अधिकतर या तो गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं या फिर मर जाते हैं. इलाके के एरिया मेडिकल अॉफिसर डॉ एसके सिंह के अनुसार इन इलाकों के बच्चे कुपोषण और बड़े लोग टीबी व फेफड़ा में पानी आने की बीमारी के शिकार हैं. डॉ सिंह के अनुसार, उनके पास इन इलाकों से रोज आनेवाले बच्चों में 30 से 40 प्रतिशत कुपोषण के शिकार होते हैं. इलाके के युवा नेता सह सामाजिक कार्यकर्ता संजीव सिंह बाबला के अनुसार यह सब प्रशिक्षण की कमी का परिणाम है. उनके अनुसार धौड़ा में रहनेवाले बेरोजगार हैं. उन्हें न तो कोई रोजगार है और न ही किसी तरह का प्रशिक्षण मिला है. इस कारण वो इस धंधे में लगे हैं. पैसे तो कमा रहे, पर उसका सही इस्तेमाल नहीं होने के कारण जीवन भी गंवा रहे हैं. उनके अनुसार ऐसे लोगों को प्रशिक्षित कर किसी अन्य धंधे में लगा देने से उनका जीवन स्तर बढ़ सकता है. उनके अनुसार धौड़ावासी पूरी मेहनत से काम करते हैं, पर उस अनुसार उन्हें सुविधा नहीं.
खलारी से लेकर धनबाद व रानीगंज तक ऐसे धौड़े आम हैं. प्राइवेट खदान मालिकों के जमाने से लेकर कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद भी ये इलाके आबाद हैं. इनमें पूर्व सीसीएलकर्मियों के वैसे बच्चे जिन्हें नौकरी नहीं मिली वो रहते हैं, या फिर बेरोजगार. चुकी ये इलाके अवैध हैं, इस वजह से इन्हें सीसीएल की कोई सुविधा नहीं मिलती. इसका ज्वलंत उदाहरण है भुरकुंडा का डंगरा टोली (चपरासी धौड़ा) बस्ती. लगभग 200 घरवाले इस बस्ती में 3600 वोटर हैं. यहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं. एक सड़क व नाले का निर्माण हो रहा, पर सीसीएल के इलाके में कैसे हो रहा, इसका जवाब किसी के पास नहीं. प्रधानमंत्री के स्वच्छता मिशन का असर यहां नहीं. अधिकतर लोग खुले में शौच करते हैं. बस्ती के बच्चे सुबह से कोयला चुनते हैं.
सरकारी स्कूल में नाम लिखवाया है, पर जाते कम ही हैं. कुछ गये भी, तो मिड डे मील के बाद नहीं रहते. सरकार की नजर भी उन इलाकों पर नहीं पड़ती. बावजूद इन तमाम समस्याओं के ये इलाके नेताओं की पसंद हैं, क्योंकि यहां एकमुश्त वोटर मिल जाते हैं. इस कारण यहां अन्य सुविधा हो या न हो सबके पास राशन कार्ड, वोटर व आधार कार्ड जरूर है. बस्ती के स्नातक पास सूरज कुमार, कृष्णा लोहरा व रविंद्र टोप्पो के अनुसार सब पूरे दिन कोयला चुनते हैं और रात में नशा करते हैं. इलाके में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है. आंगनबाड़ी केंद्र भी कभी-कभी ही खुलता है. नेताओं से नाराज बस्तीवाले कहते हैं कि चुनाव के समय सब आते हैं और पैसे दिखा कर खरीद लेते हैं. क्यों बिकते हैं पूछने पर तीनों दोस्त कहते हैं कि बस्ती के लोगों के पास कुछ नहीं इस कारण वो अासानी से बिक जाते हैं और इसका फायदा राजनीतिज्ञ उठा रहे हैं. वो पूछते हैं कि क्या उन लोगों को बेहतर जीवन जीने का अधिकार नहीं. क्यों नहीं उन लोगों को अच्छी नौकरी मिले.
कहते हैं प्रधानाध्यापक
पटेल नगर पंचायत स्थित डंगरा टोली के अधिकतर बच्चों का नामांकन राजकीय मध्य विद्यालय, भुरकुंडा व प्राथमिक विद्यालय, पटेल नगर में है. राजकीय मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक संजय वर्मा के अनुसार डंगरा टोली के 50 प्रतिशत बच्चे स्कूल नहीं आते. दूसरी ओर प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापक प्रिसिला एक्का के अनुसार डंगरा टोली के नामांकित बच्चों में से लगभग 40 प्रतिशत बच्चे प्रतिदिन अनुपस्थित रहते हैं.
ये उत्साहित करते हैं
डंगराटोली में ही रहते हैं प्रदीप कुमार. सप्ताह में दो दिन साइकिल पर कोयला लेकर रांची जाते हैं. खुद आठवीं पास प्रदीप आगे पढ़ नहीं पाये पर अपने बेटे को भुरकुंडा के एक निजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं. बेटा जब स्कूल बस से उतरता है तो उनकी खुशी देखते हुए बनती है. कहते हैं कि जो करना पड़े पर बेटा अच्छा जीवन बिता सके यही उनकी कोशिश है.
ये हो तो बात बने
कई कोयलांचल में ऐसे लोगों के रोजगार के लिए व्यवस्था की गयी है. यहां के भी लोगों के लिए उनकी योग्यता के अनुसार व्यवसाय की व्यवस्था हो, तो वो फायदा हो. इन इलाकों में कोयला और खदान से अलग कोई रोजगार नहीं होता, खेती भी ठीक से नहीं हो पाती, इस कारण इन इलाकों में कोयला आधारित ही व्यवसाय की क्या व्यवस्था हो सकती है इस पर विचार करना चाहिए.
क्या है संकट : अवैध बस्ती होने के कारण अधिकतर इलाकों में चोरी की बिजली के सहारे जीवन कट रही है. इन बस्तियों के कारण सीसीएल को प्रोजेक्ट चलाने में दिक्कत होती है, इस कारण वो कोई व्यवस्था नहीं करता. पानी के लिए कई किलोमीटर भटकना मजबूरी है. अधिकतर बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इन इलाकों में कभी कोई हेल्थ कैंप भी नहीं लगता. इस वजह से जब बीमारी गंभीर रूप धारण कर लेती है तब यहां के लोगों को खुद के संबंध में जानकारी मिलती है.
कहां-कहां है धौड़ा
भुरकुंडा में नीचे धौड़ा, न्यू बैरक, एमइसीएल, न्यू सरदार कॉलोनी, नीचे हॉस्पीटल कॉलोनी, पावर हाउस, सौंदा डी, सौंदा टिपला, सेंट्रल सौंदा साइडिंग, सयाल टीना साइड व दत्तो, पोड़ा में रहते हैं लगभग 25 हजार लोग. कोयला चुन व चोरी कर वो रोज लगभग 300 रुपये कमाते हैं. इस प्रकार भुरकुंडा के धौड़ा के 25 हजार लोग रोज कम से कम 75 लाख रुपये और मासिक कम से कम 22.5 करोड़ रुपये कमाते हैं.