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राज्य में अधिकारों का संरक्षण करनेवाली सभी संस्थाएं बेहाल

हालात. मानवाधिकार आयोग को एनजीओ प्रतिनिधियों ने बताया रांची : झारखंड में अधिकारों का संरक्षण करनेवाली संस्थाएं बेहाल हैं. चाहे बाल अधिकार संरक्षण आयोग हो, बाल श्रम आयोग हो या खुद राज्य मानवाधिकार आयोग. राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष का पद भी रिक्त है, फिर मानवाधिकार की बातें कौन सुनेगा. यह बात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग […]

हालात. मानवाधिकार आयोग को एनजीओ प्रतिनिधियों ने बताया
रांची : झारखंड में अधिकारों का संरक्षण करनेवाली संस्थाएं बेहाल हैं. चाहे बाल अधिकार संरक्षण आयोग हो, बाल श्रम आयोग हो या खुद राज्य मानवाधिकार आयोग. राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष का पद भी रिक्त है, फिर मानवाधिकार की बातें कौन सुनेगा. यह बात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ हुई बैठक में एनजीओ प्रतिनिधियों ने कही. धुर्वा डैम साइड स्थित न्यायिक अकादमी में आयोजित बैठक में करीब 22 एनजीओ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. बैठक में एनएचआरसी के चेयरमैन न्यायाधीश एचएल दत्तु, सदस्य सी जोसेफ, डी मुरुगेसन व एससी सिन्हा उपस्थित थे.
प्लान इंडिया के अनूप होरो की ओर से कहा गया कि बाल संरक्षण आयोग और बाल श्रम आयोग केवल नाम की संस्थाएं हैं. महिला आयोग है, पर उसे कोई अधिकार नहीं है. किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती. विकलांग बच्चों के लिए भी समुचित व्यवस्था नहीं है. डायन हत्या की समस्या उठाते हुए कहा कि जिन महिलाओं को डायन कह कर मार दिया गया है, आज उनके बच्चों का जीना दूभर हो गया है. ऐसे बच्चों के लिए सरकार पुनर्वास की व्यवस्था करे.
विकास भारती के केके पांडेय ने कहा कि झारखंड से रोजगार के लिए जो लड़के व लड़कियां बाहर चले जाते हैं, वो वहां फंस जाते हैं. लड़कियों का यौन शोषण तक होता है. लोहरदगा, लातेहार व गुमला में बच्चों के साथ दुविधा है. गांव में रहते हैं, तो नक्सली उठाकर ले जाते हैं, बाहर जाते हैं तो उनका शोषण होता है. उन्होंने कहा कि इन इलाकों में सरकारी योजनाओं को तेज करने की जरूरत है, ताकि कम से कम पलायन हो. अॉक्यूपेशन सेफ्टी एंड हेल्थ एसोसिएशन के महासचिव समित कुमार कार ने कहा कि झारखंड में 16 हजार ऐसी खदान हैं, जहां से धूल निकलते हैं और लोग धूल जनित बीमारियों जैसे सिलकोसिस से पीड़ित होते हैं.
बेहतर होगा सरकार इनके लिए पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था करे. झारखंड ह्यूमन राइट कांफ्रेस के मनोज मिश्रा व किशोर वर्मा ने फुटपाथ पर रहनेवाले बच्चों की समस्याओं को रखते हुए कहा कि इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता. सरकार इनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास की व्यवस्था करे. सिटिजन फाउंडेशन के गणेश रेड्डी ने बाल अधिकारों के कानून को बेहतर तरीके से लागू करने की सिफारिश की. आशा के अजय जायसवाल ने कहा कि झारखंड से पलायन करनेवाले मजदूरोें के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की कोई व्यवस्था नहीं है.
दीपशिखा की कार्यकारी निदेशक सुधा लिल्हा ने कहा कि मंदबुद्धी बच्चों के लिए सुविधाएं दी जायें. चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूटके राज्य संयोजक चंद्रनाथ ने भी अपनी बात रखी. आयोग ने कहा कि जल्द ही राज्य सरकार को इस मुद्दे पर आयोग एक सुझाव पत्र देगा. इसके पूर्व आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश एचएल दत्तु व सदस्य न्यायाधीश डी मुरुगेसन ने आठ मामलों की सुनवाई की. इस दौरान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव एनएन पांडेय भी उपस्थित थे. एक अन्य सदस्य सी. जोसेफ ने भी चार मामलों की सुनवाई की.
कमीशनखोरी के आरोपों की जांच का आदेश
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने रामगढ़ के प्रखंड विकास पदाधिकारी पर लगाये गये कमीशनखोरी के आरोपों की जांच करने का आदेश दिया है, साथ ही चार सप्ताह के अंदर जांच कर आयोग को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है. दुमका के प्रियकांत पाठक की ओर से की गयी शिकायत में कहा गया है कि बीपीएल परिवारों को दी जानेवाली प्रोत्साहन राशि में बीडीओ पांच प्रतिशत कमीशन मांग रहे हैं.
कमीशन नहीं देने पर बीडीओ ने पहले पंचायत सेवक रोनाल्ड हांसदा का वेतन बंद किया, इसके बाद उसके खिलाफ सरकारी राशि के गबन का आरोप लगा कर प्राथमिकी दर्ज करा दी. जिला प्रशासन की ओर से कहा गया कि पंचायत सेवक ने पैसा निकाल कर बीपीएल परिवारों के बीच बांटने के बदले मुखिया को दे दिया. उसने लिखित रूप से यह स्वीकार किया है. इसलिए उस पर 1.05 लाख रुपये के गबन के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है.
अफसरों ने रखा योजनाओं का ब्योरा : राज्य की मुख्य सचिव सहित अन्य विभागों के सचिवों व पुलिस महानिदेशक के साथ आयोग की बैठक हुई. इसमें अफसरों ने संबंधित योजनाअों का ब्योरा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू के समक्ष रखा. आयोग को इंदिरा आवास योजना, मध्याह्न भोजन, एनआरएचएम, बाल विकास परियोजना, जन वितरण प्रणाली, मनरेगा सहित विभिन्न विषयों की जानकारी दी गयी.

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