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40% मनोराेगी सिजोफ्रेनिया से पीड़ितनिया से पीड़ित
रांची : समय के साथ मनोरोगियों की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा है. मनोचिकित्सकों के अनुसार, 50 से अधिक प्रकार के मनोरोग होते हैं. इनमें सिजोफ्रेनिया भी प्रमुख है. रांची के दो सरकारी अस्पताल केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी) व रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एलायड साइंस (रिनपास) में अमूमन 600 मरीज हर दिन […]
रांची : समय के साथ मनोरोगियों की संख्या में भी इजाफा होता जा रहा है. मनोचिकित्सकों के अनुसार, 50 से अधिक प्रकार के मनोरोग होते हैं. इनमें सिजोफ्रेनिया भी प्रमुख है. रांची के दो सरकारी अस्पताल केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी) व रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एलायड साइंस (रिनपास) में अमूमन 600 मरीज हर दिन इलाज के लिए आते हैं. इनमें से 40% मरीज सिजोफ्रेनिया से पीड़ित होते हैं.
देश में हर साल करीब 10 लाख लोग सिजोफ्रेनिया से ग्रसित होते हैं. इस रोग से ग्रसित मरीज के लक्षण अजीबोगरीब होते हैं. वह कभी मुस्कुराने लगता है, तो कभी बुदबुदाने लगता है. अक्सर अज्ञानता के कारण अंधविश्वास में पड़ कर लोग इसे भूत, डायन-बिसाही का मामला मान कर ओेझा-गुणी, फकीर के चक्कर में पड़ जाते हैं.
गुमला की महिला को पहले ओझा से झाड़-फूंक कराया : गुमला जिले की निवासी एक महिला को उनके परिजन इलाज के लिए रिनपास लेकर आये थे. इससे पहले उसके परिजनों ने ओझा-गुणी से झाड़-फूंक कराया था. परिजनों ने रिनपास के चिकित्सक से कहा कि महिला अक्सर कहती थी कि उसका कोई पीछा करता है. कोई जान से मारने की कोशिश करता है. अकेले में वह चिल्लाने लगती थी. शुरू में उन्हें लगा कि वह जानबूझ कर ऐसा करती है. छह माह तक स्थानीय चिकित्सकों से इलाज भी कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, तब यहां लेकर आये हैं. मनोचिकित्सकों ने कहा कि इलाज से वह बिल्कुल स्वस्थ हो जायेंगी.
शुरुआती दौर में पता चल जाने पर मरीज शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं : डॉ सिद्धार्थ
रिनपास के सीनियर रेजीडेंट डॉ सिद्धार्थ सिन्हा का कहना है कि यह सिजोफ्रेनिया का लक्षण है. शुरुआती दौर में मरीज का इलाज शुरू हो जाने पर वह बहुत जल्द ठीक हो जाता है़ देर होने पर ठीक होने में समय लगता है. सिजोफ्रेनिया आज भी मनोचिकित्सा क्षेत्र की सबसे गंभीर बीमारी है. इसके कई प्रकार के लक्षण होते हैं. यह जेनेटिक के साथ रासायनिक असंतुलन से होने वाली बीमारी है. इसमें आदमी की सोच नकारात्मक हो जाती है. यह मनोरोग की शुरुआती बीमारी है. इसके समुचित इलाज के उपाय आज भी खोजे जा रहे हैं. विदेशों में भी इस पर काफी काम हो रहा है. आज भी चिकित्सक मानते हैं कि यह बीमारी एक बार हो गयी तो इस पर नियंत्रण ही एक उपाय है. इसके सहारे ही जीवन व्यतीत करना पड़ता है.
विकासशील देशों में बढ़ रहे हैं लक्षण : डॉ सिद्धार्थ बताते हैं कि सिजोफ्रेनिया के लक्षण विकासशील देशों में तेजी से बढ़ रहे हैं. यहां की लाइफ स्टाइल इसका प्रमुख कारण है. यहां के लोग भी अब शहरीकरण के साथ-साथ भाग-दौड़ की दुनिया में शामिल हो गये हैं. छोटे-छोटे शहरों के लोगों का तनाव भी बढ़ रहा है. शुरुआत में तो मरीज को लगता है कि उसमें मनोरोग के लक्षण नहीं हैं. इस कारण शुरुआती दौर में इलाज भी नहीं शुरू हो पाता है.
क्या है लक्षण : अक्सर अकेले में आवाजें सुनायी देना. मरीज को लगता है कि यह आवाज टेलीविजन, रेडियो या अदृश्य स्त्रोतों से आ रही है. मरीज को लगता है कि मैं जो सोच रहा हूं, वह दूसरों को भी पता चल जा रहा है. एक सामान्य वस्तु, दृश्य या घटना विशेष संदेश के रूप में प्राप्त होता है. उसका अपने मन पर नियंत्रण नहीं होता है. उसे लगता है कि बाहरी शक्ति उस पर नियंत्रण कर रही है. वहीं इन्हें हिलाती-डुलाती है. लगता है कि कोई उन्हें वायरलेस से कंट्रोल कर रहा है. ऐसे मरीज अक्सर चुपचाप रहते हैं. अपने में खोये रहते हैं. कभी मुस्कुराते हैं, तो कभी बुदबुदाते हैं. अपने शरीर पर ध्यान नहीं देते हैं.
कई कारण हैं : मनोचिकित्सकों के अनुसार, इसके कई कारण हैं. इसमें जेनेटिक, आसपास का माहौल, रासायनिक असंतुलन आदि शामिल हैं. मरीज में नकारात्मक सोच भी आ जाती है. हालांकि चिकित्सक आज भी इसका सही कारण जानने का प्रयास कर रहे हैं.
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