रांची: सिस्टम में खामियां और अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ जनता को कैसे नहीं मिल पाता है, इसकी बानगी है कांटाटोली स्थित रविदास मुहल्ला. यहां ज्यादातर गरीब ही रहते हैं.
रोज कमाना, तब ही खाना इनकी नियति है. पहले कच्च मकान था, लेकिन आज इनके पास वह भी नहीं है. सरकारी योजना के तहत 80 पक्के मकान आज तक नहीं बन पाये हैं. लगभग ढाई साल से लोग सरकार की ओर से मिलनेवाली राशि की अगली किस्त का इंतजार कर रहे हैं. कई लोग तो आजिज आकर अधूरे मकान में ही रहने लगे हैं.
जेएनएनयूआरएम के तहत बीएसयूपी योजना के लिए रविदास मुहल्ला का चयन किया गया. नगर निगम की ओर से वर्ष 2011 में मुहल्ले का सर्वे किया गया. सर्वे में झोपड़ियों को तोड़ कर पक्का मकान बनाने की बात कही गयी. सितंबर 2011 को यहां के खपड़ैल मकान ढाह दिये गये. लोगों ने इधर-उधर आसरा ले लिया. बाद में पक्का मकान बनाने के लिए पहली और दूसरी किस्त की राशि दी गयी, जिससे नींव डाली गयी और दीवार खड़ी की गयी. तीसरी किस्त अब तक नहीं मिल सकी है. मकान अधूरे पड़े हुए हैं.
केस स्टडी
रविदास मुहल्ले की करमी देवी बताती हैं कि पक्का मकान बन जाने की लालसा में हमने अपने खपड़ैल मकान को तोड़वा दिया. मैं, मेरे पति व बेटा बगल के ही एक रिश्तेदार के घर चले गये. नगर निगम से पहली किस्त के रूप में 31 हजार रुपये मिले. इस पैसे से हमने प्लींथ का काम कराया. दूसरी किस्त में हमें 38 हजार मिले. इससे दीवार खड़ी की. इसके बाद से हमें अगली किस्त नहीं मिली है. नगर निगम की कई बार दौड़ लगायी, पर हर बार कहा गया कि घर की ढलाई करने पर ही तीसरी किस्त की राशि मिलेगी. करमी ने कहा कि अपना घर होगा, इस इंतजार में पति भी मार्च 2012 में चल बसे. घर की स्थिति ऐसी है कि किसी तरह दो टाइम का खाना खा लेते हैं. हम ढलाई कहां से करायेंगे.