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हर दिन एक करोड़ रुपये का नुकसान

रांची: इलेक्ट्रो स्टील को पिछले एक साल से वन भूमि का हस्तांतरण नहीं मिल पाया है. इससे कंपनी के चंदनकियारी स्थित स्टील प्लांट और कोदलीबाद आयरन ओर माइंस से उत्पादन आरंभ नहीं हो पा रहा. हालांकि कंपनी का प्लांट उत्पादन के लिए तैयार है. कंपनी को रॉ-मेटेरियल के लिए कोदलीबाद आयरन ओर माइंस मिली है. […]

रांची: इलेक्ट्रो स्टील को पिछले एक साल से वन भूमि का हस्तांतरण नहीं मिल पाया है. इससे कंपनी के चंदनकियारी स्थित स्टील प्लांट और कोदलीबाद आयरन ओर माइंस से उत्पादन आरंभ नहीं हो पा रहा. हालांकि कंपनी का प्लांट उत्पादन के लिए तैयार है. कंपनी को रॉ-मेटेरियल के लिए कोदलीबाद आयरन ओर माइंस मिली है. इसके लिए सारे क्लीयरेंस भी मिले चुके हैं. कंपनी वन भूमि क्षतिपूर्ति के लिए लातेहार में जमीन दे रही है.

पर वन विभाग की ओर से अब तक इसकी मंजूरी नहीं दी गयी है. पिछले एक वर्ष से कंपनी के अधिकारी लातेहार के डीएफओ के पास दौड़ लगा रहे हैं. पर मामला नहीं बन रहा है. कंपनी स्टील प्लांट के लिए 10 हजार करोड़ रुपये निवेश कर चुकी है. कंपनी ने बैंक से सात हजार करोड़ लोन लिया है. कंपनी के अधिकारी बताते हैं कि लोन का ब्याज एक करोड़ रुपये प्रतिदिन देना पड़ रहा है. इससे भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. उत्पादन आरंभ न होने से कंपनी को अब तक 300 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है.

क्या है मामला : इलेक्ट्रो स्टील को चंदनकियारी में स्टील प्लांट के लिए कोदलीबाद लौह अयस्क पट्टे (192.50 हेक्टेयर) का आवंटन किया गया है. इसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रलय से स्टेज-1 क्लीयरेंस मिल गया है.

क्लीयरेंस 55.79 हेक्टेयर (138 एकड़) वन भूमि के लिए मिला है. इसके बदले कंपनी को कंपेन्सेटरी एफोरेस्टेशन (क्षतिपूरक वनरोपण) के लिए कहीं और भूमि देनी है. इलेक्ट्रो स्टील ने इसके लिए 2008 में 161.88 एकड़ जमीन लातेहार जिले के बालूमाथ प्रखंड स्थित हुंजार गांव में खरीदी है. तत्कालीन डीएफओ ने इस भूमि का निरीक्षण किया और इसे कंपनसेटरी एफोरेस्टेशन के लिए उपयुक्त बताया. 27 अगस्त 2008 को एनओसी भी दे दी. बाद में वन क्षतिपूर्ति के लिए लातेहार डीएफओ को यह जमीन दी गयी. उन्होंने भूमि पर पिलर लगाने, मार्किग करने व जीपीएस फिक्सिंग का आदेश 19 मार्च 2012 को दिया.

इसके बाद छह जून 2012 को वनपाल ने निरीक्षण कर सारे काम को अप-टू-डेट पाया. 22 जून 2012 को रेंजर ने डीएफओ को रिपोर्ट दी कि 158.70 एकड़ में 344 पिलर लगाये गये हैं. रेंजर ने पांच मई 2012 को ग्राम पंचायत की ओर से दी गयी एनओसी को भी जमा कर दिया था. ग्राम पंचायत ने भूमि हस्तांतरण पर सहमति दी थी. पर डीएफओ ने दोबारा ग्राम पंचायत की बैठक बुलाने का आदेश दे दिया. इसके बाद 26 जून 2012 को रेंजर, वनपाल, वनरक्षी, मुखिया और ग्राम प्रधान की उपस्थिति में फिर से ग्राम पंचायत की बैठक हुई. इस बैठक में भी भूमि हस्तांतरण पर सहमति दी गयी. बाद में 30 अगस्त 2012 को डीएफओ ने फिर पिलर लगाने का आदेश दिया गया. कंपनी ने ऐसा किया भी. छह दिसंबर को डीएफओ ने जीपीएस डाटा के साथ आवेदन जमा करने का निर्देश दिया. कंपनी की ओर से आठ दिसंबर को यह भी कर दिया गया. पर 23 जनवरी 2013 को रेंजर ने डीएफओ को रिपोर्ट दी कि कुछ पिलर टूटे हुए हैं. इसके आधार पर डीएफओ लातेहार ने डीएफओ सारंडा को रिपोर्ट भेजी. इसमें कहा कि क्षतिपूरक वनरोपण के लिए भूमि उपयुक्त नहीं है. यहां अतिक्रमण है. इस पर कंपनी ने आपत्ति भी जतायी. इसके बाद से लगातार यह मामला लंबित चल रहा है.

कब क्या हुआ
– 2008 में कंपनी ने कंपनसेटरी एफोरेस्टेशन के लिए 161.88 एकड़ जमीन लातेहार के बालूमाथ प्रखंड स्थित हुंजार गांव में खरीदी
– 19 मार्च 2012 को लातेहार डीएफओ ने इस जमीन पर पिलर लगाने, मार्किग करने व जीपीएस फिक्सिंग का आदेश दिया
– पांच मई 2012 को रेंजर ने ग्राम पंचायत की ओर से दी एनओसी जमा कर दी. ग्राम पंचायत ने भूमि हस्तांतरण पर सहमति दी थी
– छह जून 2012 को वनपाल ने निरीक्षण कर सारे काम को अप-टू-डेट पाया
– 22 जून 2012 को रेंजर ने डीएफओ को रिपोर्ट दी कि 158.70 एकड़ में 344 पिलर लगाये गये हैं
– 26 जून 2012 को डीएफओ के आदेश के बाद फिर से ग्राम पंचायत की बैठक हुई
– 30 अगस्त 2012 को डीएफओ ने फिर पिलर लगाने का आदेश दिया. कंपनी ने फिर से पिलर लगा दिया
– 06 दिसंबर 2012 को डीएफओ ने जीपीएस डाटा के साथ आवेदन जमा करने का निर्देश दिया
– 08 दिसंबर 2012 को कंपनी ने आवेदन भी जाम कर दिया
– 23 जनवरी 2013 को रेंजर ने डीएफओ को रिपोर्ट दी कि कुछ पिलर टूटे हुए. इसके बाद से मामला लंबित चल रहा है

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