7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चवन्नी के बूते बना किसान उच्च विद्यालय

जीवेश रांची : 1977 से पहले पिठोरिया की अधिकतर लड़कियां ननमैट्रिक थीं. एकाध पैसेवालों को छोड़ दें, तो अधिकतर बेटियों ने छठी के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. लड़कों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. कुछ ही लड़के आगे की पढ़ाई के लिए बाहर निकल पाते थे. दूसरी अोर, गांव में कुछ पढ़ी-लिखी बहुएं […]

जीवेश
रांची : 1977 से पहले पिठोरिया की अधिकतर लड़कियां ननमैट्रिक थीं. एकाध पैसेवालों को छोड़ दें, तो अधिकतर बेटियों ने छठी के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. लड़कों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. कुछ ही लड़के आगे की पढ़ाई के लिए बाहर निकल पाते थे.
दूसरी अोर, गांव में कुछ पढ़ी-लिखी बहुएं आ गयी थीं. ऐसे में पारिवारिक संतुलन डगमगाने लगा था. इस पर खेती के लिए प्रसिद्ध इस गांव के किसान आगे आये. तय हुआ कि गांव के बच्चे पढ़ेंगे. इसके लिए हाइस्कूल खोलने पर एका बना. सबने मिल कर निर्णय किया कि इसके लिए सभी सहयोग राशि देंगे.
किसानों ने तय किया कि जितनी टोकरी सब्जी बाहर भेजी जायेगी, उस हिसाब से प्रति टोकरी राशि देंगे. उस समय यह राशि एक चवन्नी (25 पैसे) प्रति टोकरी भी होती थी. कुछ लोगों ने चंदा कर सहयोग राशि दी.
दो बाेरा अनाज भी सहयोग में मिला.
इन सबसे ईंट-बालू की व्यवस्था हुई, तो मजदूरों का पैसा बचा लिया गांववालों ने श्रमदान कर, अौर तैयार हो गया किसान उच्च विद्यालय. पढ़ाने का जिम्मा गांव व आसपास के पढ़े-लिखे लोगों ने संभाल लिया, वो भी मुट्ठी भर पैसे लेकर. आज हालात यह है कि इस स्कूल से पढ़े बच्चे प्रशासन, बैंकिंग, शिक्षण व अन्य क्षेत्रों में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. अभी अन्य कई स्कूल भी खुल गये हैं, पर आज भी इस स्कूल में 500 से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं.
तब क्या थी स्थिति : पिठोरिया में राजकीय मध्य विद्यालय था. इसमें छठी तक की ही पढ़ाई होती थी. इसके बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को काफी दूर जाना पड़ता था. जैसे ठाकुरगांव 16 किलोमीटर, रातू 17 किलोमीटर, अोरमांझी 18 किलोमीटर, पतरातू 25 किलोमीटर व कांके 10 किलोमीटर दूर था. सड़कें काफी खराब थीं अौर आने-जाने में काफी दिक्कत होती थी. गरीबी व संसाधन की कमी से कुछ ही लोग अपने बच्चों को आगे की पढ़ाई करा पा रहे थे.
कैसे हुआ परिवर्तन : स्कूल के लंबे समय तक सचिव रहे रामलोचन महतो व राजकीय सम्मान प्राप्त किसान दिलेश्वर साहू के अनुसार, 1965-70 के बीच मुखिया अयोध्या प्रसाद केसरी, अवध नाथ चौबे, रामदयाल जी, याकूब मियां, जगत मास्टर, भानु प्रताप उरांव आदि के नेतृत्व में हाइस्कूल चलाने की योजना बनी. कुछ दिनों तक स्कूल चला भी, पर बंद हो गया.
लोगों में निराशा हुई, पर पुन: 1974 में गांव के लोग गोलबंद हुए. तत्कालीन मुखिया अयोध्या प्रसाद केसरी के नेतृत्व में बैठक हुई. इसमें जो शामिल हुए उनमें लाला साहू, किशुन महतो, प्यारी महतो, द्वारिका साहू, अमीन खलीफा, रामलोचन महतो, अरुण केसरी, किस्टो साहू, रामकिस्टो मुंडा, मोहन कुमार केसरी, ईश्वर साहू मास्टर, डॉ अशोक कुमार केसरी, रामकिशोर साहू (इसमें से कई अभी स्वर्गवासी हो चुके हैं) आदि शामिल हुए. सबने मिल कर विद्यालय विकास समिति का गठन किया. संस्थापक सह सचिव रामलोचन महतो बनाये गये. इस दौरान यह तय हुआ कि किसानों से सब्जी बाहर भेजने के दौरान लिये जानेवाले धर्मदा (एक तरह का टैक्स) का एक हिस्सा स्कूल के निर्माण में लगाया जाये. उस दौरान प्रति ट्रक 50 रुपये धर्मदा लिया जाता था.
यह पैसे ट्रक पर लोड होनेवाले किसानों की टोकरी पर बांटा जाता था. इस तरह से कई बार यह हिस्सा प्रति टोकरी 25 पैसे होते थे.
किसानों को जब पता चला कि धर्मदा की राशि का एक हिस्सा स्कूल के निर्माण में जाना है, तो उन लोगों ने खुल कर सहयोग किया. इसके अलावा तत्कालीन विधायक राम रतन राम व सांसद राम टहल चौधरी ने भी कुछ पैसे दिये. अंतत: सबके प्रयास से 1977 में स्कूल बन कर तैयार हो गया. उसमें पढ़ाई शुरू हो गयी. किसानों के प्रयास से बने इस स्कूल का नाम किसान उच्च विद्यालय रखा गया.
जिन्होंने नाम कमाया
स्कूल से पास कई विद्यार्थियों ने बेहतर किया है. इनमें शामिल कुछ के नाम हैं, प्रदीप कुमार महतो (बीडीओ), निखिल चंद्र, अश्विनी कुमार, कौशिक कुमार (सभी बैंक के पीअो), आदित्य महतो (कॉलेज के प्रोफेसर)
खलता है यह
किसान उच्च विद्यालय को 1981 में स्थापना अनुमति मिली. फिर 2005 से इसे वित्त रहित अनुदानित स्कूलों की श्रेणी में शामिल किया गया. इसके तहत बच्चों की संख्या के हिसाब से प्रति वर्ष 4.80 लाख रुपये मिलने चाहिए थे, पर दो बार छोड़ कर हर वर्ष इसे 3.60 लाख रुपये ही मिले. जिस स्कूल को किसानों ने खून पसीने की मेहनत से बनाया था, वह अब शासी निकाय के अधीन है. किसानों का आरोप है कि इसकी निगरानी सही तरीके से नहीं हो रही है.
स्कूल में प्राचार्य सहित नौ शिक्षक, एक क्लर्क व एक चपरासी थे. इनमें पांच शिक्षक सेवानिवृत्त हो गये हैं. स्कूल का भवन जर्जर हो गया है. क्षेत्र के किसान सह स्कूल के पूर्व सचिव नकुल महतो कहते हैं : स्कूल अब राजनीति का अड्डा हो गया है. आज का स्कूल देख कर लगता है कि उनकी मेहनत बरबाद हो गयी.
(साथ में पिठोरिया से सुजीत केसरी)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें