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पहल: जलछाजन समिति के सदस्यों की मेहनत रंग लायी, 21 फीट के कुएं में 15 फीट पानी, खेत भी है हरा-भरा
जलछाजन समिति के युवाओं की मेहनत रंग लाने लगी है. युवाओं ने ट्रेंच के माध्यम से इस गरमी में भी जल स्तर को बरकरार रखा है. यही वजह है कि ओरमांझी के तीन गांव कुल्ही, हुंदर व बजमरा गांव के लोगों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है. रांची: एक ओर पूरे […]
जलछाजन समिति के युवाओं की मेहनत रंग लाने लगी है. युवाओं ने ट्रेंच के माध्यम से इस गरमी में भी जल स्तर को बरकरार रखा है. यही वजह है कि ओरमांझी के तीन गांव कुल्ही, हुंदर व बजमरा गांव के लोगों को जल संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है.
रांची: एक ओर पूरे झारखंड में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है, वहीं ओरमांझी के कई गांवों के खेतों में आज भी नमी है. कुएं में लबालब पानी है. 21 फीट वाले कुएं में 15 फीट तक पानी है. यहां के सभी पांच कुएं पानी से भरे हैं. कुल्ही गांव सहित अन्य गांवों में पानी का जलस्तर काफी अच्छा है. यह कार्य जलछाजन के जरिये किया गया है. कुल्ही गांव में जलछाजन समिति में शामिल युवाओं के दल ने यह कार्य कर दिखाया है.
जलछाजन का कार्य कंटीन्यूयस कंटूर ट्रेंच की मदद से किया गया है. यह ट्रेंच टुंगरी में काटा गया. इसका परिणाम यह हुआ कि आज तीन गांव कुल्ही, हुंदूर व बजमरा गांव के लोगों को पूरा पानी मिल रहा है. खेतों को भी पानी मिल रहा है. किसान इस जलछाजन के कार्य से काफी खुश हैं. यही नहीं, ऊपरी भूमि के ट्रीटमेंट के बाद वैली लाइन वेल या तालाब का चयन भी कारगर साबित हुआ है. क्योंकि इसमें लागत भी कम आती है और पानी भी मिलता है. समिति ने उक्त तीनों गांवों में 40 कुआं बनाने की योजना बनायी है. अब तक पांच कुआं का निर्माण किया जा चुका है. एक कुआं बनाने का काम जारी है.
क्या है रिड्ज टू वैली कंसेप्ट: इस संबंध में प्रमोद कुमार बताते हैं कि यह स्लोपिंग लैंड में ही बनाया जाता है. इसमें कंटूर ट्रेंच, मेढ़बंदी, बोल्डर चेक, पर्कुलेशन टैंक का निर्माण किया जाता है, ताकि बारिश का पानी बह कर सीधे खेत में न जाये. कंटूर ट्रेंच बनने से रिड्जलाइन का पानी एक आउटलेट में जाता है. बारिश का पानी पर्कुलेशन टैंक में चला जाता है. पानी एक जगह जमा हो जाता है, जिससे जमीन की नमी बरकरार रहती है.
फील्ड बाइंडिंग भी की गयी: टुंगरी की तराई में फील्ड बाइंडिंग भी की गयी है. बाइंडिंग सेक्टरवार की गयी है. कंटूर ट्रेंच के इस पूरे कंसेप्ट को वाटर शेड एरिया भी कहते हैं. इस कंसेप्ट को टुंगरी की 727 हेक्टेयर भूमि में लागू किया गया है. हर जगह जल संचय के उपाय किये गये हैं. समिति के सदस्यों ने डोभा भी बनाया है. डोभा के बाहर 100 आम के पेड़ भी लगाये गये हैं.
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