सरहुल पर अमेरिका में भी मचता है धमाल बोस्टन के ‘अखड़ा : द डांसिंग ग्राउंड’ में होता है बड़ा आयोजनफोटो भी है मनोज लकड़ा @ रांचीझारखंडी कला-संस्कृति से दुनिया को रूबरू करा रहे नंदलाल नायक बताते हैं कि अमेरिका के बोस्टन में हर साल सरहुल पर भव्य आयोजन होता है. इसमें अमेरिका की कई जगहों के लोग शामिल होते हैं. हम उन्हें बताते हैं कि हमारी परंपरा में सरहुल नये साल, नयी फसल, नये फल-फूल, नवीनता का स्वागत है. हमारी संस्कृति देखने की नहीं, बल्कि हिस्सा लेने की है, इसलिए उन सब को अपने नाच-गान में शामिल करते हैं. सभी मिलजुल कर देर तक नाचते-गाते हैं. यह आयोजन वहां ‘अखड़ा : द डांसिंग ग्राउंड’ में होता है, जिसकी स्थापना उन्होंने 1996 में हुई है. अखड़ा में दुनिया को मांदर, ढोल व नगाड़ों की धुनों के साथ- साथ डमकच, अंगनई, झूमर, झुमता जैसी नृत्यशैलियों के स्पंदन से भी परिचित कराया जाता है. हमारी संस्कृति समृद्ध है, पर दुनिया इससे बहुत ज्यादा परिचित नहीं. पर, जब इसे जानती है, तब अभिभूत हुए बिना नहीं रहती. अपने अस्तित्व से प्यार करना सीखें युवा वह कहते हैं कि हमारे युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है कि वे अपने अस्तित्व से प्यार करना सीखें. अपनी संस्कृति का मूल्य समझें. रांची में सरहुल की एक पहचान बन चुकी है, पर हमें ऐसी पहचान बनानी है कि जब दुनिया झारखंड शब्द ही सुने, तो उसकी आंखों के सामने सरहुल की छवि घूम जाये. आज ब्राजील के कार्निवाल की पहचान पूरे विश्व में है, जिसमें उतने ही लोग शामिल होते हैं, जितनी यहां की सरहुल शोभायात्रा में. जब हमारे युवा जब गिटार बजा सकते हैं, तो नगाड़ा क्यों नहीं? वैश्विक पहचान दिलाने में उनकी ही अहम भूमिका है. उन्हें अपनी आदवासी पहचान पर गर्व करना सीखना होगा. …………………….(फोटो भी है)नेपाल में पच्वा आलर, धरती और प्रकृति मां की करते हैं पूजाउरांव (कुड़ुख), मुुंडा, संताल, किसान, खड़िया आदि झारखंडी मूल के आदिवासी नेपाल के तराई क्षेत्र में रहते हैं. मुंडा, संताल, किसान व खड़िया जनजाति के लोग इसे सरहुल पर्व के नाम से ही जानते हैं, पर उरांव इसे खद्दी पर्व कहते हैं. नेपाल में लगभग दो लाख उरांव हैं, जो सुनसरी, मोरंग, झापा, इलाई, उदयपुर, सिराहा, धनुसा, वारा, पर्सा, कपिलवस्तु और महेंद्रनगर जिले मे रहते हैं. नेपाल के आदिवासियों ने अब तक यह पर्व सार्वजानिक रूप से मनाना शुरू नहीं किया है़ इनरूवा के बेचन उरांव बताते हैं कि नेपाल में खद्दी पर्व मनाने की परंपरा भारत से कुछ अलग है. वहां फागु पर्व के दिन ही खद्दी मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों में अपने कुलदेवता अर्थात पच्वा आलर, धरती और प्रकृति माता को सखुवा के फूल, घटो फूल, मालपुवा, पान, सुपारी, केरा, लड्डू, लाल अबीर, सिंदूर और कसरी मुर्गी अर्पित करते है़ं प्रार्थना करते हैं कि जैसी प्रकृति हरी-भरी है, वैसे ही हमारे परिवारों में भी खुशहाली हो. घर- आंगन में हरियाली हो, समाज में प्रेम की परिपूर्णता हो. चारों तरफ रंगबिरंगे फूलों जैसे पूरा वातावरण खुशनुमा हो़ पूजापाठ के बाद अपने नाते-रिश्तेदारों को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है़ मेल-मिलाप और सद्भाव के लिए एक- दूसरे को अबीर और पूजा में अर्पित फूल लगाते है़ं जब से आदिवासी नेपाल में हैं, तब से वहां यह पर्व मनाया जा रहा है़ उन्होंने बताया कि इस पर्व को पूंप मंखना भी कहा जाता है. युवा वर्ग इस पर्व को धीरे- धीरे भूल रहा था, पर जब से नेपाल और भारत के उरांव लोगों के बीच मेलजोल में तेजी आयी है, सरहुल की चर्चा जोरशोर से होने लगी है. अब नेपाल में भी इसे सार्वजनिक रूप से मनाने की तैयारी शुरू हो गयी है. आनेवाले कुछ वर्षों में इसका भव्य और सार्वजनिक रूप दिखेगा़ इस समय जिन घरों में कुलदेवता यानी मुड्डा हैं वहीं इसे विशेष रूप मे मनाया जाता है. इनमें मुख्यत: इनरुवा के नुनुलाल उरांव, इंद्रदेव उरांव, विष्णु उरांव, तेतरा उरांव, तनमुना के लखना उरांव, परमेश्वर उरांव, नरसिंह के ईत्तिया उरांव, बद्रीलाल उरांव, हीरालाल उरांव, सजीव उरांव, संपत उरांव, भोक्राहा के ब्रह्ममदेव उरांव, चनरमान उरांव, विष्णुदेव उरांव, सुखनु उरांव, मधुवन के रामलाल उरांव आदि के परिवार शामिल हैं. …………………….बांग्लादेश, भूटान में भी होता है भव्य आयोजनकुड़ुख लिट्रेरी सोसाइटी ऑफ इंडिया के राज्य सचिव महेश भगत ने बताया कि हाल के दिनों में दूसरे देश मेें बसनेवाले आदिवासियों में आपसी संपर्क बढ़ने से अपनी धर्म-संस्कृति से जुड़े आयोजनों के प्रति उत्साह बढ़ा है़ भूटान के चाय बागान में काम करनेवाले झारखंडी मूल के आदिवासियों की बड़ी आबादी है़ लगभग सात लाख. वहां सरहुल पर चाय-बागान के स्तर पर बढ़े आयोजन होने लगे है़ं इसमें ठेबे उरांव (तिर्की) अहम भूमिका निभाते है़ं बांग्लादेश में लगभग 3़ 5 लाख कुड़ुख (उरांव) आदिवासी रहते है़ं वहां के पहाड़ी क्षेत्र के दिनाजपुर में आदिवासी सरहुल पर्व को पूरे उत्साह और भक्तिभाव से मनाते है़ं पूजा- पाठ के बाद नाच-गान होता है़ आदिवासियों ने 2़ 5 एकड़ जमीन ली है, जिसमें जिसमें ढेर सारे पेड़ लगाये गये है़ं कार्यक्रमों का संयोजन बंधन उरांव करते हैं, जो एक बैंक में कार्यरत है़ं
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सरहुल पर अमेरिका में भी मचता है धमाल
सरहुल पर अमेरिका में भी मचता है धमाल बोस्टन के ‘अखड़ा : द डांसिंग ग्राउंड’ में होता है बड़ा आयोजनफोटो भी है मनोज लकड़ा @ रांचीझारखंडी कला-संस्कृति से दुनिया को रूबरू करा रहे नंदलाल नायक बताते हैं कि अमेरिका के बोस्टन में हर साल सरहुल पर भव्य आयोजन होता है. इसमें अमेरिका की कई जगहों […]
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