संसाधनों के अभाव में रांची नगर निगम शहर से रोज निकलनेवाले इस कूड़े का 40 फीसदी हिस्सा उठाने में अक्षम है. शहर की सड़कों व मोहल्ले में महीने भर में 5,520 टन तथा सालाना 66,240 टन कूड़ा पड़ा रहता है. इससे मक्खी व मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है.
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कूड़ेदान में तब्दील होती जा रही राजधानी
रांची: राजधानी रांची धीरे-धीरे कूड़ेदान में तब्दील होती जा रही है. रांची नगर निगम के सर्वे के मुताबिक रांची में रहनेवाला हर आदमी रोजाना औसतन 200 से 250 ग्राम कूड़ा फेंकता है. यानी 12 लाख लोग मिल कर हर रोज 460 टन कचरा सड़कों या नालियों में फेेंक देते हैं. संसाधनों के अभाव में रांची […]
रांची: राजधानी रांची धीरे-धीरे कूड़ेदान में तब्दील होती जा रही है. रांची नगर निगम के सर्वे के मुताबिक रांची में रहनेवाला हर आदमी रोजाना औसतन 200 से 250 ग्राम कूड़ा फेंकता है. यानी 12 लाख लोग मिल कर हर रोज 460 टन कचरा सड़कों या नालियों में फेेंक देते हैं.
संसाधनों के अभाव में रांची नगर निगम शहर से रोज निकलनेवाले इस कूड़े का 40 फीसदी हिस्सा उठाने में अक्षम है. शहर की सड़कों व मोहल्ले में महीने भर में 5,520 टन तथा सालाना 66,240 टन कूड़ा पड़ा रहता है. इससे मक्खी व मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है.
क्या करता है नगर निगम : शहर से रोज निकलनेवाले कूड़े का 60 फीसदी ही रांची नगर निगम उठा पाता है. संसाधन के अभाव में शेष कूड़ा नहीं उठ पाता है. कूड़ा उठाने के लिए संसाधन के नाम पर निगम के पास 52 ट्रैक्टर, पांच ट्रक व पांच डंपर प्लेसर हैं. वहीं कूड़ा जमा करने के लिए शहर भर में केवल 50 से 60 डस्टबिन हैं. पूर्व में लगाये गये 150 डस्टबिन में से ज्यादातर टूट गये हैं. जो बचे हैं, वे टूटने की कगार पर हैं. निगम के पास मजदूरों की कमी है. निगम के पास 400 नियमित व 460 दैनिक मजदूर है. इनमें से 249 मजदूर वार्डों में सफाई में लगाये गये हैं. वहीं शेष को सार्वजनिक स्थानों की सफाई व कूड़ा उठा कर डंप करने के काम में लगाया गया है. शहर से निकलनेवाले कूड़े को साफ करने के लिए ये संसाधन नाकाफी हैं.
खुले में डंप किया जाता है कचरा
रांची में कूड़ा खुले में डंप किया जाता है. शहर से निकलनेवाले कूड़े को डंप करने के लिए इकलौती जगह है झिरी का डंपिंग स्टेशन. शहर से कुछ दूर पर चहारदीवारी के बीच कूड़ा डंप कर दिया जाता है. वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं होने के कारण रांची नगर निगम के पास कूड़े के उपचार का कोई तरीका नहीं है. इसी कारण कूड़े में से रीसाइल होनेवाली चीजों को भी नहीं छांटा जाता है. कूड़े के कारण शहर में इन दिनों मक्खी-मच्छर का प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. अस्पतालों में मलेरिया, टाइफाइड, डायरिया से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ने की शिकायतों के बावजूद फॉगिंग बंद है. पिछले तीन महीने से वीआइपी इलाकों को छोड़ कर अन्य जगहों में फॉगिंग नहीं की जा रही है.
क्या है लोगों की भूमिका
रांची को कूड़ेदान बनाने में आम लोगों की भी भूमिका है. आम लोग निर्धारित स्थान पर कूड़ा नहीं फेंकते. शहर को साफ-सुथरा रखने में जनता का योगदान नगण्य है. शहर गंदा करने, साफ-सुथरी दीवार या सड़क पर पान की पीक फेंकना आम बात है.
कूड़ा निकालने में टॉप फाइव : मेन रोड, अपर बाजार, आजाद बस्ती, हिंदपीढ़ी, डोमटोली.
सबसे कम कूड़ा निकालनेवाले इलाके : अशोक नगर, कांके रोड, बरियातू, पुरुलिया रोड.
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