मुखबिर दीपू खान का इकबालिया बयान
हिंदपीढ़ी निवासी रूरल मेडिकल प्रैक्टिशनर इंतेजार अली को आतंकी बता कर जेल भिजवानेवाले आफताब खान उर्फ दीपू खान ने पुलिस को जो बयान दिये हैं, उससे कई सवाल खड़े हो गये हैं. अपने बयान में दीपू खान ने पूरे घटनाक्रम के लिए आर्मी इंटेलिजेंस के सूबेदार मिश्रा को जिम्मेदार ठहराया है. खुद को बेकसूर भी बताया है. पूछताछ के क्रम में पुलिस ने दीपू खान से ऐसा कोई सवाल ही नहीं किया, जिसके जवाब में वह बताता कि किन-किन पुलिस अफसरों ने अपनी कुरसी बचाने के लिए उसका इस्तेमाल किया. कब-कब उसने विस्फोटक की बरामदगी करवायी. ऐसा लगता है पुलिस ने जान-बूझ कर दीपू खान से पूछताछ को सिर्फ इंतेजार अली तक ही सीमित रखा.
इंतेजार अली
मेरा नाम मो आफताब उर्फ दीपू खान है. पुरुलिया का रहनेवाला हूं. दिल्ली से सेल्स मार्केटिंग में डिप्लोमा किया हूं. शादी के बाद 2005 में पारिवारिक जमीन बेचने के बाद मैंने डोरंडा में एक दुकान खोली. दुकान नहीं चल रही थी. डोरंडा थानेदार केएन चौधरी का मेरे यहां आना-जाना था. जब उन्होंने देखा कि मेरी दुकान नहीं चल रही है, तो उन्होंने मुझे कुछ पैसे दिये और कहा कि इससे काम चलाओ. कुछ सूचना मिले, तो देना. पुलिस के लिए काम शुरू करो. इस तरह मैं पुलिस के संपर्क में आया. उनके साथ काम करने लगा. इसी दौरान और भी कई पदाधिकारियों से मेरा संपर्क हुआ. मैंने पुलिस के लिए कई काम किये. हथियार और नक्सली पकड़वाये. नक्सली से कुछ खतरा होने पर परिवार को यहां से रानीगंज स्थित ससुराल में शिफ्ट कर दिया. वहां मैं किराये पर मकान लेकर रहने लगा़ . मेरा संपर्क पुलिस के अधिकारियों से रहा. मैं काम करता रहा. इस साल जून-जुलाई में मैं डेली मार्केट थाने में थाना प्रभारी धर्मदेव पासवान के साथ बैठा था.
उसी समय आर्मी इंटेलिजेंस के दो अफसर आये और उनसे बात करने लगे. इसी दौरान उनसे परिचय हुआ और उन्हें पता चला कि मैं पुलिस के लिए काम करता हूं. बाहर निकलने के बाद उन्होंने मेरा नंबर लिया और कहा कि हमारे लिए भी काम करो. फिर मुझे कैंप बुलवाया और वहां मेजर जीएस विद्यार्थी से मिलवाया. मेजर विद्यार्थी ने मुझे काम करने के लिए कहा और मुझे कई टास्क दिये. मैं सब इंस्पेक्टर विनय कुमार सिंह के लिए चान्हो में काम करने लगा. मैंने देखा कि वहां पर कई तरह के मदरसे हैं. इस पर मुझे शंका हुई़ मैंने उसके विषय में आर्मी इंटेलिजेंस को भी बताया, रांची में कई और काम के बारे में और आपराधिक गतिविधियों के बारे में डिटेल्स बना कर उन्हें दिया. कुछ दिनों के बाद उनके एक अफसर सूबेदार मिश्रा से मेरा परिचय कराया गया. सूबेदार मिश्रा मुझसे काफी क्लोज हो गये. मेरे साथ घूमने लगे. उन्होंने मुझसे एक-दो खबर पता करने को कहा़ मैंने पता कर बताया. वह मुझे लेकर सचिवालय भी ले जाते थे. सचिवालय में कैंटीन में खाना भी खाया हमलोगों ने. मेन रोड वगैरह में, जब भी आते थे, मुझसे मिलते थे. मैं पहले होटल झारखंड में रहता था. वहां पर मैंने रेड करवाया था. इस कारण उस होटल को छोड़ना पड़ा. इसके बाद में होटल ट्राइडेंट चला गया. मिश्रा जी होटल में आने लगे. वहां पर ढोसा वगैरह खाते थे.
इंतेजार अली वाली घटना से सप्ताह-दस दिन पहले मिश्राजी ने मुझे कहा कि तुमसे एक बहुत जरूरी काम है. एक आतंकवादी हमलोगों के टच में आया है. पकड़ाया है, लेकिन सबूत वगैरह नहीं मिल रहा है. इस कारण गिरफ्तारी नहीं हो सकती. इसलिए तुमको मैं कुछ दूंगा, तुम वहां पर वह चीज रख देना. इस तरह के काम कई जगह पर होते रहते हैं, ये तो आप लोग (बयान लेनेवाले अफसर) अच्छी तरह जानते हैं. इस काम में मुझे देशद्रोह नहीं लगा. कुछ दिनों के बाद मिश्राजी खूंटी के एक लड़के, जो डीयर पार्क के बाद सीआरपीएफ कैंप के नजदीक के गांव का है, के साथ मुझसे मिले़ मैं सीआरपीएफ कैंप में जा चुका हूं. मिश्राजी ने मुझसे कहा कि जाली नोट का रेड करवाना है, आप पुलिस के साथ रहते हैं, पुलिस से कहिये. मैंने कहा कि कहां करवाना है, तो उन्होंने कहा कि खूंटी में. तब मैंने डीआइजी रांची को फोन किया. तब तक मैं उनके संपर्क में भी आ चुका था. उनके लिए भी काम करता था.
डीआइजी ने मुझसे कहा कि आर्मी इंटेलिजेंस के सीनियर पदाधिकारी मुझसे मिलते हैं. उनसे हमसे बात करने के लिए कहो. इसके बाद से मुझे कोई काम नहीं दिया. फिर मुझे दुमका में जाली नोट पकड़वाने के लिए कहा. तब मैंने सीनियर एसपी के गोपनीय रीडर से दुमका का नंबर लेकर मिश्राजी को दिया. इसके बाद क्या हुआ, मुझे पता नहीं है़ मिश्राजी मुझे ओरमांझी भी ले गये. बताया कि देश के बाहर के लोग आये हैं. इंटरनेशनल क्रीमिनल आया हुआ है. पता चला कि ये लोग काफी दिनों से रह रहे हैं, यहां शादी कर ली है. अब नागपुर में रह रहे हैं. फोटो भी जुगाड़ किया.
एक दिन मिश्राजी मुझसे मिले और कहा कि एक काम है. आतंकवादी पकड़ाया है, उसके पास कुछ रखना है. कुछ दिन बाद खूंटीवाले लड़के को लेकर मेरे रूम पर आये. अपने साथ चलने को कहा़ मुझसे कहा कि कुछ सामान है, उसे रख दीजिए. विशाल गारमेंट के पास प्लास्टिक का थैला दिया. मैंने उसे खोला-देखा नहीं, रूम पर आ गया. उन्होंने मुझसे कहा कि 20 तारीख को आर्मी कैंप आना, झालदा चलना है. गाड़ी बुक कर लीजियेगा. वह समान भी ले लीजियेगा. मैंने लोअर बाजार से लाल रंग की सूमो गाड़ी ले ली. सूमो गाड़ी से निकला. मिश्राजी ने फोन करके कहा कि दो कुरान खरीद लीजियेगा और एक बैग भी.
शहीद चौक के पास से बैग खरीदा. फिर मैं आर्मी कैंप गया़ अंदर मेजर विद्यार्थी से बात हुई़ कहा कि ऑपरेशन करने जा रहे हैं. झालदा जाना है. इसके बाद मेजर विद्यार्थी चेंबर में चले गये. इसी बीच मिश्राजी ने मुझे बुलाया और एक पेपर दिया. पूछने पर बताया कि कुछ कोड्स है. मुझे कहा कि आप गाड़ी में चलो, हम आते हैं. मैं गाड़ी के बाहर खड़ा था. मिश्राजी पॉलिथीन में कुछ लेकर आये. इसके बाद हमलोग झालदा की ओर निकल गये़ रास्ते में सिल्ली से पहले एक होटल में नास्ते के लिए रुके़ मिश्राजी ने कहा कि ड्राइवर को दूर जाने को बोलो. इसके बाद उन्होंने कहा कि बैग खोल कर प्लास्टिक का थैला, उसमें डाल दो. मैंने डाल दिया.
मैंने मिश्राजी से पूछा कि बैग में क्या है और क्या करना है. उन्होंने बताया कि जिस आतंकी के बारे में तुम्हें बताया था, उसी के बारे में कुछ करना है. मैंने कहा कि ठीक है. सामान के बारे में जानना चाहा. एक घंटे के भीतर हम झालदा स्टेशन पहुंच गये. गाड़ी पार्क की. बैग को गाड़ी में रहने दिया. ड्राइवर गाड़ी में ही रह गया. फिर हमलोग स्टेशन पर बैठ गये. मिश्राजी ने किसी से पता किया कि साढ़े चार बजे के आसपास ट्रेन आयेगी. हंसी-मजाक चल रहा था. जब ट्रेन आयी, तब मिश्राजी ने बैग लिया और कहा : मैं इसे ट्रेन में रखता हूं. तुम देखते रहना कि कोई इसे उतार न ले. इंजन से तीसरी या चौथी बोगी में उन्होंने बैग सीट पर रख दिया. इसके बाद वह उतर गये. मैं बोगी में ही दूसरी तरफ बैठा गया. बाद में वहां पर एक दाढ़ी वाला आदमी आकर बैठा.
इस बीच मिश्राजी ने फोन किया कि सामान है ना, देखना कोई उतार न ले. तुम सिल्ली में उतर जाना. जब मैंने पूछा कि सिल्ली से कैसे जायेंगे, तब उन्होंने कहा कि ठीक है, कीता में पीछे वाली बोगी से पीछे से उतर जाना. नीचे उतरने के बाद मैं रेलवे लाइन पार करने लगा. तभी उनका एक आदमी खड़ा मिला. वह आर्मी इंटेलिजेंस के लिए काम करता है. उससे पहली बार डेली मार्केट में मिला था. पटरी से बाहर आते ही उसने कहा कि गाड़ी खड़ी है, निकल जाओ. बाहर निकला, तो दो-तीन गाड़ी देखी. एक गाड़ी में पुलिस थी. मैं एक गाड़ी में बैठा और निकल गया. इस दौरान मिश्राजी को फोन किया, तो उन्होंने कहा कि बाद में बात करते हैं. फिर थोड़ी देर बाद फोन किया, तो बताया कि जो आतंकी पकड़ाया है, उसे लेकर सिल्ली जा रहे हैं. इसके बाद मैं रांची आ गया. फिर मिश्राजी का कॉल आया कि हमलोग सिल्ली से निकल रहे हैं. पुलिस उसे लेकर गुमनाम जगह पर जा रही है. मैंने पूछा कि कौन पकड़ाया है, तो उसने बताया कि कोई इंतेजार है.
मिश्राजी ने रात में मुझे फिर फोन किया, कहा कि बढ़िया काम हुआ है, अच्छा काम किया है. पर मैंने कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है, क्या काम हुआ है. उन्होंने कहा कि आतंकी पकड़ाया है. सुबह में मैं जब पेपर पढ़ा, तो पता चला कि जो सामान हम लेकर गये थे, उसके साथ वह व्यक्ति गिरफ्तार हुआ है़ मुझे कुछ समझ में नहीं आया. मैं जब आर्मी कैंप गया, तो वहां मुझे 2000 रुपये दिये गये. इसके बाद मिश्राजी ने मुझे फोन किया, तो मैंने कहा कि मिश्राजी पुलिस बोल रही है कि वह निर्दोष है, आपने पकड़वाया है, आप जानिए. मिश्राजी ने मुझसे कहा कि आ जाओ, बहुत जरूरी काम है. मैं उनसे मिलने गया, तो मेरा थंब इंप्रेशन लिया गया. कहा गया है कि मेरा प्रोफाइल तैयार हो रहा है़ मेरा फोटो भी लिया गया़
मैंने कहा कि पेपर में इस तरह की बात आ रही है, तो उन्होंने कहा कि आप किसी को कुछ बोलिएगा नहीं, चुुपचाप रहिये, नहीं तो प्रोब्लेम क्रिएट हो जायेगा. मैंने कहा, ठीक है सर. इसके बाद मैं कुछ दिन रांची में रहा. बाद में मुझसे कहा गया कि आप चले जाइये यहां से. मैं घर चला गया. मैं फिर वापस आया, तब मुझे बोला कि बहुत प्रोब्लेम क्रिएट हो गया है. एनआइए भी जड़ तक पहुंचना चाह रही है. मैंने कहा कि प्रोब्लेम क्या है, तो उन्होंने बताया कि कहा जा रहा है कि यह सब प्लांटेड है. तब मैंने कहा कि आपने किया है, मैं क्या जानूं. हम लोगों ने बैग रखा था. क्या था बैग में, ये तो आप जानिए. मेजर विद्यार्थी को इसकी जानकारी नहीं थी. उन लोगों के बीच हॉट-टॉक हो रहा था. मेजर विद्यार्थी कह रहे थे कि इस तरह का काम क्यों किया, आर्मी इंटेलिजेंस की बदनामी हो रही है. उन्होंने मिश्राजी से कागज पर कुछ लिखवाया भी था.
मिश्राजी ने मुझे धमकाया, मुझे लगा कि प्रोब्लेम हो सकता है, तो चुप रहा. सोचा कि कहां फंस गया. उन्होंने मुझे 10 हजार रुपये दिये और कहा कि कोई आदमी ठीक करो, जो यह बोले कि उसने इंफॉरमेशन दिया था कि ट्रेन से सामान आ रहा है. उन्होंने मेरी वाइफ के बारे में बात की, तो मैंने कहा कि वाइफ को क्यों इंन्वॉल्व करेंगे इसमें. उन्होंने कहा कि नहीं, आपको करना ही पड़ेगा, नहीं तो हम ये-वो कर देंगे. 10 हजार रुपये लेकर मैं भाड़े की गाड़ी से निकला. घर जाने के बाद मैं लच्छीपुर (आसनसोल) में एक महिला से मिला़ उससे पूछा कि तुम इतना कह सकती हो कि कुछ लोग आये थे, वे बात कर रहे थे कि हटिया-वर्द्धमान ट्रेन से विस्फोटक लाया जा रहा है. वह तैयार हो गयी़ उसे मैंने 10 हजार रुपये और साड़ी दी़ वह मुझे अपना भाई मानती है. लच्छीपुर में पैसा देकर आया और मिश्राजी को बताया कि काम हो गया है. फिर सब नॉर्मल हो गया.
इसके बाद मुझे खबर मिली कि पेपर में आ रहा है कि मुखबिर वरीय पदाधिकारी के लिए काम कर चुका है. मुझे बड़ा अजीब लगा. वाइफ से डिसकस कर मैंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा, जिसमें घटना का पूरा जिक्र किया और निष्पक्ष जांच का आग्रह किया. फिर आर्मी कैंप गया, वहां मेजर विद्यार्थी नहीं थे. वह कोलकाता गये हुए थे. मिश्रा जी से मिला, उन्होंने कहा कि लगता है कि मुझे उठा लिया जायेगा. मैंने उन्हें बताया कि मुझे बहुत चिंता हो रही थी, इस कारण प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया है. तब मिश्रा जी ने कहा कि तुम भी जेल जाओगे और हमको भी भिजवाओगो.
मिश्रा जी ने परिवार को बरबाद करने की धमकी भी दी. फिर उन्होंने फैक्स से वह पत्र मंगवाया. पत्र पढ़ने के बाद मिश्रा जी ने कहा कि तुमने बहुत अजीब काम कर दिया. सुबह में मेजर साहेब आये. उन्होंने भी कहा कि तुमने पत्र क्यों भेजा़ मेजर साहब को सब कुछ पता चल गया था़ मुझे वहां से भेज दिया और कहा गया कि डीआइजी साहब ने कहा है कि टेलिफॉनिक कन्वर्सेशन मत करिये. तब मैंने कहा कि डीआइजी साहब क्यों कहेंगे़ उन्हें कहना भी होता, तो मुझे क्यों नहीं बोले़ इसके बाद मुझे रांची से दूर रहने को कहा गया़ तब मैंने कहा कि कहां चले जायें, रांची पुलिस के लिए काम करते हैं.
एसएस फंड से कुछ मिलता है, तो घर चलता है. फिर मैं घर चला गया. तीन-चार दिन के लिए हजारीबाग गया. परिचित के यहां बर्थ-डे था. घर में रहते -रहते मुझे यह एहसास था कि कोई न कोई आकर मुझे ले जायेगा. मुझे यह भी लग रहा था कि मिश्रा जी मुझे फंसायेगा. मुझे बहुत गिल्टी फिल हो रही थी. मैं नमाज नहीं पढ़ता था, लेकिन पढ़ने लगा. एक दिन रांची की सीआइडी की टीम आयी और मुझे लेकर साथ आ गयी.