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झारखंड आंदोलन में मारे गये अशरफ को भूल गयी सरकार

प्रवीण मुंडा रांची : झारखंड आंदोलन के दौरान शहीद हुए आंदोलनकारी अशरफ खान को सरकार भूल गयी. वे 90 के दशक में आंदोलन के दौरान गोली का शिकार हो गये थे. अभी झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मानित किया जा रहा है. सम्मानित करने के लिए झारखंड/वनांचल आंदोलनकारी चिह्नितीकरण आयोग द्वारा 2557 आंदोलनकारियों की सूची भेजी गयी […]

प्रवीण मुंडा
रांची : झारखंड आंदोलन के दौरान शहीद हुए आंदोलनकारी अशरफ खान को सरकार भूल गयी. वे 90 के दशक में आंदोलन के दौरान गोली का शिकार हो गये थे. अभी झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मानित किया जा रहा है. सम्मानित करने के लिए झारखंड/वनांचल आंदोलनकारी चिह्नितीकरण आयोग द्वारा 2557 आंदोलनकारियों की सूची भेजी गयी थी. इनमें अभी तक लगभग 400 आंदोलनकारियों को ही सम्मानित किया गया है. बाकी को भी सम्मानित करने की बात है पर अशरफ खान को अभी तक सम्मानित नहीं किया जा सका है.
न उनकी पत्नी को मुआवजा या सरकारी नौकरी मिली. आज शहीद अशरफ का परिवार दर-दर की ठोकरें खाने को विवश है. अशरफ की पत्नी शहजादी बेगम आज अकेले घर चलाने व पति को सम्मान दिलाने की लड़ाई लड़ रही है. अशरफ का बेटा बड़ा हो गया है. वह भी एक अदद नौकरी की तलाश में है.
क्या हुआ था अशरफ खान के साथ
झारखंड आंदोलन के दौरान अशरफ खान अौर उसके साथी खलारी क्षेत्र में आंदोलन कर रहे थे. 23 जनवरी 1991 को खलारी के चूरी साइडिंग में झारखंड मुक्ति मोरचा के आह्वान पर कोयला लोडिंग का विरोध किया जा रहा था. इस दौरान पुलिस अौर कोयला माफियाओं द्वारा आंदोलनकारियों पर गोली चलायी गयी.
गोली लगने से अशरफ खान की मौत हो गयी थी जबकि कोल्हा महतो, महेश्वर व एक अन्य आंदोलनकारी घायल हो गये थे. इस मामले में खलारी थाना में मामला (कांड संख्या 7/91) दर्ज किया गया था.
अशरफ की पत्नी को अभी तक नहीं मिली नौकरी
झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने अशरफ की पत्नी शहजादी बेगम को नौकरी व मुआवजे के लिए पत्र लिखा था. घायलों को सीसीएल की अोर से एक एक हजार रुपये तत्काल राहत के लिए दिये गये थे.
सीसीएल प्रबंधन द्वारा अशरफ की पत्नी शहजादी बेगम को नौकरी के सिलसिले में मेडिकल जांच के लिए 17 नवंबर 1995 को बुलाया गया था लेकिन इसके बाद भी नौैकरी नहीं दी गयी. अशरफ की मौत के बाद उनके पिता ही घर का खर्च चलाते रहे. अब वे भी नहीं रहे.

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