रांची : राज्य में निजी स्कूलों के शुल्क पर नियंत्रण के लिए एक्ट नहीं बना़ सरकार निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने को लेकर गंभीर नहीं है़ हाइकोर्ट के अादेश पर शिक्षा विभाग ने निजी स्कूलों के शुल्क नियंत्रण के लिए एक्ट का प्रारूप तैयार करने के लिए कमेटी गठित की थी़ .
कमेटी ने प्रारूप तैयार करने में लगभग आठ माह का समय लगा दिया़ इसके बाद शिक्षा विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंपी़ कमेटी ने महाराष्ट्र, तमिलनाडू समेत अन्य राज्यों में निजी स्कूलों को लेकर बनाये गये एक्ट का अध्ययन किया़ इसके बाद रिपोर्ट तैयार की़ कमेटी ने इस वर्ष अप्रैल में रिपोर्ट तैयार कर ली थी, पर सरकार को अगस्त में रिपाेर्ट सौंपी गयी़ एक्ट बनाने की प्रक्रिया एक वर्ष पहले शुरू हुई थी, पर अब तक एक्ट बनाने की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी़. निजी स्कूलों में शैक्षणिक सत्र 2016-17 में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है़ स्कूलों में फॉर्म का वितरण होने लगा है. स्कूल फिर मनमाने तरीके से शुल्कों की वसूली करेंगे़ अभिभावक मंच हो-हल्ला करेंगे़ उपायुक्त स्कूल के प्राचार्यों के साथ बैठक करेंगे, स्कूलों को निर्देश देंगे, पर अभिभावकों को कोई राहत नहीं मिलेगी़.
सीएम व शिक्षा मंत्री ने कही थी कार्रवाई की बात : मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा सचिव सभी ने निजी स्कूलों को नियम के अनुरूप शुल्क लेने की बात कही थी़ इसके लिए शिक्षा विभाग से निजी स्कूलों के शुल्क के संबंध में सभी जिलों से रिपोर्ट मांगी थी़ रांची के उपायुक्त ने भी स्कूलों के प्राचार्यों के साथ बैठक की थी़ स्कूलों ने शुल्क संबंधी रिपोर्ट भी जमा की, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई़ फलस्वरूप अभी तक एक्ट नहीं बन सका.
स्कूल अपने से नहीं बढ़ा पाते फीस
निजी स्कूल प्रति वर्ष मनमाने तरीके से शिक्षण शुल्क में अपने स्तर से बढ़ोतरी नहीं कर सकते़ एक्ट के प्रारूप में यह प्रावधान किया गया है कि शुल्क विद्यालय प्रबंध समिति व अभिभावक संघ के प्रतिनिधि की आम सहमति से तय की जायेगी. विद्यालय व अभिभावक की सहमति से तय शुल्क के प्रारूप को जिलों में गठित जिला स्तरीय शुल्क निर्धारण कमेटी को भेजी जायेगी. जिला स्तरीय कमेटी की सहमति के बाद स्कूल शुल्क में बढ़ोतरी कर सकेंगे. निजी स्कूल दो वर्ष में एक बार शुल्क बढ़ोतरी कर सकेंगे. एक शुल्क बढ़ोतरी दो शैक्षणिक सत्र के लिए मान्य होगा.
एक्ट बनने से क्या होता
विद्यालयों में बनता अभिभावक संघ
एक्ट में सभी निजी विद्यालयों में विद्यालय प्रबंध समिति व अभिभावक संघ गठित करने की बात कही गयी है. किसी विद्यालय के अभिभावक संघ में वहीं के अभिभावक शामिल हो सकेंगे, जिनके बच्चे उक्त विद्यालय में पढ़ते हों. संघ में कोई भी बाहरी व्यक्ति को शामिल नहीं किया जायेगा. संघ का गठन विद्यालय स्तर पर आपसी सहमति से किया जायेगा. सहमति से सदस्यों का चयन नहीं होने की स्थिति में चुनाव कराया जा सकता है.
कमेटी से लेनी होती फीस की स्वीकृति
विद्यालय स्तर पर तय किये गये शुल्क को जिला स्तरीय कमेटी के समक्ष रखने का प्रवधान एक्ट में किया गया है़ स्कूल स्तर पर तय शुल्क में जिला स्तरीय कमेटी बदलाव भी कर सकती है. जिला स्तरीय कमेटी के अध्यक्ष संबंधित जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी होंगे. इसके अलावा जिला शिक्षा अधीक्षक, जिले के सीबीएसइ स्कूल, आइसीएसइ स्कूल, प्लस टू उच्च विद्यालय के दो-दो प्राचार्य, सभी प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी व अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष कमेटी के सदस्य होंगे.
स्कूल राज्य स्तरीय कमेटी के समक्ष रखते पक्ष
जिला स्तरीय स्कूल के तय शुल्क से अगर विद्यालय व अभिभावक सहमत नहीं होंगे, तो वे इसकी शिकायत राज्य स्तरीय कमेटी के समक्ष कर सकेंगे. राज्य स्तर पर हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी गठित की जायेगी. कमेटी में प्राथमिक शिक्षा निदेशक व राज्य स्तर पर गठित अभिभावक संघ के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे.
इन मापदंड पर शुल्क निर्धारण
एक्ट में कहा गया है कि शुल्क निर्धारण में अलग-अलग मापदंड अपनाया जायेगा. विद्यालय शहरी क्षेत्र में स्थित हैं या ग्रामीण क्षेत्र में. विद्यालय में छात्र-छात्राओं की संख्या, पुस्तकालय, प्रयोगशाला का स्तर, पेयजल, शौचालय, भवन की स्थिति, कंप्यूटर शिक्षा, शिक्षक एनसीटीइ के मापदंड के अनुरूप योग्यता रखते हैं कि नहीं, शिक्षकों व कर्मचारियों के मिलने वाला वेतन, पठन-पाठन पर किया जाने वाला खर्च, स्कूलों द्वारा लिये जाने वाले शुल्क व दी जाने वाली सुविधा को ध्यान में रख फीस का निर्धारण किया जायेगा. स्कूलों को शुल्क निर्धारण के प्रस्ताव के साथ उक्त जानकारी जिला स्तरीय कमेटी को देनी होगी.