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आदिम जनजातियों के समक्ष अस्तत्वि का संकट

आदिम जनजातियों के समक्ष अस्तित्व का संकट बीआइटीएम में आदिम जनजातियों की स्थिति पर हुई चर्चावरीय संवाददाता, रांची बदलाव इंस्टीच्यूट ऑफ ट्रेनिंग एंड मैनेजमेंट (बीआइटीएम) द्वारा आयोजित सेमिनार में आदिम जनजातियों की स्थिति पर चर्चा की गयी. इसमें कहा गया कि आदिम जनजातियों के अस्तित्व पर संकट की स्थिति है. विमर्श के दौरान यह महसूस […]

आदिम जनजातियों के समक्ष अस्तित्व का संकट बीआइटीएम में आदिम जनजातियों की स्थिति पर हुई चर्चावरीय संवाददाता, रांची बदलाव इंस्टीच्यूट ऑफ ट्रेनिंग एंड मैनेजमेंट (बीआइटीएम) द्वारा आयोजित सेमिनार में आदिम जनजातियों की स्थिति पर चर्चा की गयी. इसमें कहा गया कि आदिम जनजातियों के अस्तित्व पर संकट की स्थिति है. विमर्श के दौरान यह महसूस किया गया कि प्रकृति विनाश के कारण आज उनका जीवन जोखिम में है. विश्व की छह हजार आदिम जनजातियों में से आधी से अधिक जनजातियां विलुप्त हो गयी है. करीब तीन हजार जनजातियां बची है. सेमिनार का आयोजन कांके स्थित संस्था के कार्यालय में हुआ. संथालपरगना के आठ गांवों के सौरिया पहाड़ियों की स्थिति पर एक अध्ययन रिपोर्ट पेश करते हुए बीअाइटीएम के सचिव बजरंग सिंह ने कहा कि उनकी माली हालत ठीक नहीं है. सरकारी योजनाएं उनकी पहुंच से बाहर है. प्रमुख अर्थशास्त्री प्रो हरिश्वर दयाल ने कहा कि पूरे झारखंड की आदिम जनजातियों के विकास को ध्यान में रख कर सरकार को योजनाएं बनाने की जरुरत है. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट, पटना के पूर्व प्राध्यापक मनोहर लाल ने कहा कि इन आठ गांवों का यह बेस लाइन सर्वे है. अभी माइक्रो लेबल पर अध्ययन करने की जरूरत है. इसमें बीएयू के पूर्व रजिस्टार डॉ सीएसपी सिंह, ट्राइवल रिसर्च इंस्टीट्यूट के उप निदेशक चिंटू डोनिवर, आद्री के निदेशक राजीव कर्ण, डाॅ आरपी सिंह, डॉ डीके ठाकुर, डॉ रवींद्र भक्त, नलिन, जयप्रकाश, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के कलौल साह, गोविंद शर्मा, बिटिया मुरमू ने विचार रखे. कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने की.

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