रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने पुराने जेल परिसर में बन रहे बिरसा मुंडा मेमोरियल पार्क के निर्माण के लिए 2014-15 में 9.97 करोड़ रुपये दिये थे. नियमानुसार यह काम टेंडर से होना चाहिये था, लेकिन इसे विभागीय तौर पर कराया गया. योजना से संबंधित दस्तावेज की जांच में पाया गया कि निर्माण कार्यों के लिए बिना टेंडर के ही 6.31 करोड़ रुपये की सामग्री की खरीद की गयी. इसमें एमएस बार, विद्युत उपकरण सहित अन्य प्रकार की चीजें शामिल है. नियमानुसार विभाग को बिना टेंडर के 1.5 लाख रुपये तक का ही सामान खरीदने का अधिकार है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडिट के दौरान इन सामग्रियों की खरीद से संबंधित रसीद ऑडिट टीम को जांच के लिए नहीं दी गयी. पीएजी ने निर्माण कार्यों में मजदूरी के रूप में किये गये भुगतान और उसकी प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया. इस सिलसिले में रिपोर्ट में कहा गया है कि जेआरसी जाली लगाने, तार बिछाने और टाइल्स बिछाने सहित अन्य प्रकार के काम मे लगाये गये मजदूरों के नाम 81.90 लाख रुपये का भुगतान दिखाया गया है. इस राशि का भुगतान ‘क्वाटर शीट’ पर किया गया है. क्वाटर शीट का इस्तेमाल अग्रिम को तौर पर किये गये भुगतान के लिए किया जाता है. जांच में यह भी पाया गया कि 26.39 लाख रुपये का भुगतान मस्टर रॉल पर नकद के रूप में किया गया है.
राज्य में लागू नियम के तहत मजदूरी का भुगतान मस्टर रॉल के आधार पर बैंक या पोस्टऑफिस के सहारे मजदूरों के खाते में करना है. रांची जैसी जगह, जहां बैंक और पोस्टअॉफिसों की कमी नहीं है, वहां मजदूरों को नकद भुगतान करना संदेहास्पद है. ऑडिट टीम द्वारा मांगे जाने पर मजदूरों का पूरा ब्योरा (नाम पता आदि) नहीं उपलब्ध कराया गया. पीएजी ने इन गड़बड़ियों के सिलसिले में वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) द्वारा दिये गये जवाब को यह कहते हुये अमान्य कर दिया कि जवाब नियम और तर्क संगत नहीं हैं.
अॉडिट के दौरान हुई चर्चा में डीएफओ की ओर से कहा गया था कि मजदूरी भुगतान में ऐसे ही होता है. बैंक खातों के सहारे मजदूरी का भुगतान करना जरूरी नहीं है. डीएफओ ने बिना टेंडर करोड़ों की सामग्रियों की खरीद को भी नियम कानून के दायरे में बताया था.