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कर्ज व अनुदान पर निर्भर है राज्य का विकास

राज्य का विकास सरकार द्वारा विभिन्न स्रोतों से लिये जानेवाले कर्ज और केंद्रीय अनुदान पर निर्भर है. इसकी वजह राज्य की अपनी आमदनी (राजस्व) का जरूरतों के अनुरूप नहीं होना है. राज्य अपनी विकास योजनाओं में अपने स्रोतों से और अधिक धन दे सके, इसके लिये उसे फिजूलखर्ची और अनुत्पादक खर्चों को नियंत्रित करना होगा. […]

राज्य का विकास सरकार द्वारा विभिन्न स्रोतों से लिये जानेवाले कर्ज और केंद्रीय अनुदान पर निर्भर है. इसकी वजह राज्य की अपनी आमदनी (राजस्व) का जरूरतों के अनुरूप नहीं होना है. राज्य अपनी विकास योजनाओं में अपने स्रोतों से और अधिक धन दे सके, इसके लिये उसे फिजूलखर्ची और अनुत्पादक खर्चों को नियंत्रित करना होगा. राज्य का हर व्यक्ति 15197 रुपये का कर्जदार है. कई विभागों में ऐसे अफसर हैं, जिन्हें बिना किसी काम के सरकार वेतन दे रही है. इससे भी राज्य पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है.

रांची : राज्य का विकास सरकार द्वारा विभिन्न स्रोतों से लिये जानेवाले कर्ज और केंद्रीय अनुदान पर निर्भर है. इसकी वजह राज्य की अपनी आमदनी (राजस्व) का जरूरतों के अनुरूप नहीं होना है. राज्य अपनी विकास योजनाओं में अपने स्रोतों से और अधिक धन दे सके, इसके लिये उसे फिजूलखर्ची और अनुत्पादक खर्चों को नियंत्रित करना होगा.

राज्य गठन के बाद से राजस्व में वृद्धि के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खर्चों में भी वृद्धि हो रही है.

पर जिस तेजी से खर्च बढ़ रहा है उसके अनुरूप आमदनी नहीं बढ़ रही है. इससे राज्य को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए केंद्र से मिलनेवाली अनुदान पर निर्भर होना पड़ रहा है. साथ ही बाजार सहित अन्य स्रोतों से कर्ज लेना पड़ रहा है. खर्च के मुकाबले आमदनी कम होने की वजह से राज्य पर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. महालेखाकार द्वारा 2013-14 आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि तक सरकार पर 40 हजार करोड़ रुपये कर्ज का बोझ था.

चालू वित्तीय वर्ष 2015-16 के अंत तक यह बढ़ कर 50 हजार रुपये तक पहुंचने की आशंका है. एकाउंटिंग सिस्टम के तहत बजट बनाने के क्रम में सरकार द्वारा विभिन्न स्रोतों से लिये जानेवाले कर्ज को भी आमदनी माना जाता है. केंद्र सरकार से मिलनेवाले अनुदान को भी आमदनी माना जाता है. सरकार की वास्तविक आर्थिक स्थिति को समझने के लिए कर्ज और अनुदान को सरकार की आमदनी (राजस्व) से अलग कर के देखा जाना चाहिये. चालू वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए सरकार द्वारा तैयार किये गये बजट में से कर्ज और अनुदान को सरकार की आमदनी से अलग कर के देखने पर सरकार की वास्तविक स्थिति का पता चलता है.

सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में अपने कर-राजस्व, गैर कर-राजस्व और केंद्रीय करों में हिस्स्दारी के रूप में कुल 33005.18 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद की है. इस राशि में से उसे सबसे पहले अपने कर्मचारियों का वेतन भत्ता, पेंशन और विभिन्न स्रोतों से लिये गये कर्ज पर सूद की रकम चुकानी होगी. इसके बाद सरकार को विभिन्न स्रोतों से लिये गये कर्ज की राशि में से कुछ हिस्सा चुकाना होगा.

इन सभी मदों में खर्च करने के बाद सरकार के पास सिर्फ 13551.63 करोड़ रुपये ही बचेंगे. इस राशि के मुकाबले सरकार ने विकास योजनाओं पर 32136.84 करोड़ रुपये खर्च करने का ‌लक्ष्य तय किया है. इसलिए उसे शेष रकम केंद्रीय अनुदान और कर्ज के सहारे जुटाना होगा.

सरकार पर बढ़ता कर्ज का बोझ

रांची : वित्तीय कुप्रबंधन से राज्य का सकल वित्तीय घाटा बढ़ा है. यानी राज्य की कुल आमदनी इसके कुल खर्च से कम होती जा रही है. इसी घाटे को पूरा करने के लिए सरकार कर्ज ले रही है.

इस कर्ज पर सूद भी लगातार बढ़ रहा है. दूसरी अोर सरकार का खर्च भी बेतहाशा बढ़ा है. विधायकों-मंत्रियों की सुविधाएं बढ़ रही हैं. वहीं विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में वित्तीय अनियमितता व राजस्व मद में चोरी ने राज्य को बेदम कर दिया है. हालांकि नयी सरकार स्थिति में सुधार कर रही है. यहां सरकार पर बढ़ते कर्ज का ब्योरा दिया जा रहा है.

खर्च 17 लाख, अाय 2.4 लाख प्रति माह

पशुपालन विभाग का होटवार भैंस प्रक्षेत्र

कुल 271 दुधारू भैंस है, जो कुल 250 लीटर दूध देती हैं

प्रक्षेत्र में कार्यरत हैं कुल 42 लोग, जिनके वेतन पर हर माह 12 लाख रुपये खर्च होते हैं

वरीय संवाददाता, रांची

होटवार में पशुपालन विभाग का भैंस प्रक्षेत्र है. यहां छोटे-बड़े भैंसा व दुधारू भैंसों की कुल संख्या 271 है. इनमें से करीब 52 भैंसें कुल 250 लीटर दूध देती हैं. इसे 32 रुपये प्रति लीटर की दर से खेलगांव में रह रहे तथा अन्य स्थानीय लोगों को बेचा जाता है. इस तरह कुल 250 लीटर दूध से हर रोज प्रक्षेत्र को आठ हजार रुपये तथा हर माह करीब 2.4 लाख रुपये की आय होती है. पर कुल 272 भैंस का पालन करने के लिए प्रक्षेत्र में कार्यरत कुल 42 लोगों के वेतन मद में हर माह 12 लाख रुपये खर्च होते हैं. वहीं पशुओं के चारा व अन्य मद का खर्च पांच लाख रुपये प्रति माह है. इस तरह हर माह कुल 17 लाख खर्च कर अभी 2.4 लाख का दूध मिल रहा है.

यानी सरकार को होटवार पशु प्रक्षेत्र से हर माह 14.6 लाख रु का नुकसान हो रहा है. प्रक्षेत्र का यह वित्तीय घाटा गत 15 वर्षों से कमोबेश बरकरार है. एक विभागीय अधिकारी के अनुसार, राज्य गठन के बाद से अब तक सरकार को इस प्रक्षेत्र से लगभग 16 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है.

मेकेनिकल विंग बंद ,पांच साल से बैठ कर ले रहे हैं वेतन

पांच साल से बैठा कर रखा है सारे इंजीनियरों व कर्मियों को

हॉट मिक्स प्लांट से लेकर सारे उपकरण सड़ रहे हैं

रांची : राज्य का चारों मेकेनिकल डिवीजन बंद हैं. इन डिवीजन के पास कोई काम नहीं है. करीब पांच वर्षों से यहां के इंजीनियर से लेकर सारे कर्मियों को बेकार बैठा कर रखा गया है. वहीं चारों हॉट मिक्स प्लांट भी पड़े-पड़े खराब हो रहे हैं. सड़क निर्माण की सारी कीमती उपकरण भी सड़ रहे हैं.

एक आंकलन के मुताबिक केवल एक ही प्रमंडल में सालाना दो करोड़ रुपये से ज्यादा का वेतन भुगतान हो रहा है, जबकि कर्मियों से कोई काम नहीं लिया जा रहा है. वे रोज दफ्तर आते हैं, फिर समय गुजार कर चले जाते हैं, हालांकि मेकेनिकल प्रमंडलों द्वारा कई बार पथ निर्माण विभाग से कार्य कराने का अनुरोध किया गया था, फिर बिना काम के इस विंग को सड़ा दिया गया. उपकरणों की बरबादी से लेकर अन्य सारे मदों पर करोड़ों की क्षति हर साल सरकार को हो रही है.

चार जगहों पर हैं प्लांट

जानकारी के मुताबिक नामकुम, तोरपा, देवघर व साहेबगंज चार जगहों पर मेकेनिकल विंग का हॉट मिक्स प्लांट है. इसके लिए सारे आधुनिक उपकरण भी खरीदे गये थे. पे-लोडर, मिक्सिंग पेवर, जेसीबी, वाइब्रेटिंग रोलर, ट्रैक्टर, ट्रक सहित सड़क बनाने के सारे उपकरण इन प्लांट में है. सरकारी ने बड़ी राशि खर्च कर इन उपकरणों की खरीद की थी.

सड़क निर्माण के लिए बड़ी फौज

सड़क निर्माण के लिए मेकेनिकल विंग में इंजीनियरों व अन्य कर्मियों की बड़ी फौज है. केवर रांची मेकेनिकल डिवीजन में एक अधीक्षण अभियंता, दो कार्यपालक, तीन सहायक व 14 कनीय अभियंता हैं. यानी कुल 20 इंजीनियर यहां हैं, जो सड़क निर्माण के लिए काफी हैं. उनके साथ ही कार्यालय चलाने के लिए सहायक, अन्य कर्मचारी, चतुर्थवर्गीय कर्मचारी, चालक भी कार्यरत हैं.

केवल वेतन पर सालाना दो करोड़ खर्च: केवल एक प्रमंडल के सारे कर्मियों के वेतन पर सालाना करीब दो करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. इंजीनियरों से मिला कर अन्य कर्मियों का वेतन भुगतान तो हो रहा है, पर उनसे कोई काम नहीं लिया जा रहा है.

हर आदमी ~15197 का कर्जदार होगा

राज्य गठन के बाद वित्तीय वर्ष 2001-02 में सरकार पर कर्ज का बोझ 7519.66 करोड़ था

वित्तीय वर्ष 2015-16 के अंत तक इसके बढ़ कर 50 हजार करोड़ रुपये होने का अनुमान

रांची : इस वित्तीय वर्ष के अंत तक राज्य का हर आदमी 15197 रुपये का कर्जदार होगा. राज्य गठन के बाद बेहतर विकास की उम्मीद लगाये व्यक्ति पर कर्ज का बोझ पहले के मुकाबले पांच गुना हो जायेगा. एेसा राज्य सरकार द्वारा विकास योजनाओं के नाम पर कर्ज लेते रहने की वजह से होगा. राज्य गठन के बाद वित्तीय वर्ष 2001-2002 में सरकार पर कर्ज का बोझ 7519.66 करोड़ रुपये था. इस अवधि में राज्य की आबादी 2.96 करोड़ थी.

अर्थात सरकार द्वारा लिये कर्ज की वजह से राज्य का हर आदमी 2795 रुपये का कर्जदार था. राज्य गठन के बाद सरकार ने विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए अपने आंतरिक स्रोतों, केंद्र सरकार सहित अन्य वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लिया. हर साल विकास योजनाओं के लिये गये कर्ज की वजह से राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया. महालेखाकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2013-14 तक राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ कर 40000 करोड़ रुपये हो गया था.

वित्तीय वर्ष 2015-16 के अंत तक इसके बढ़ कर 50000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है. अर्थात इस वित्तीय वर्ष के अंत तक राज्य का हर आदमी 15197.66 करोड़ रुपये का कर्जदार होगा.

बिना काम के बैठे हैं सीनियर अफसर

रांची : पुलिस विभाग में कई महत्वपूर्ण पद खाली हैं. कई सीनियर अफसरों की तैनाती वैसे पद पर की गयी है, जहां कुछ भी काम नहीं है. रांची और दुमका जोन के आइजी का पद खाली पड़ा हुआ है. एडीजी सीआइडी, डीजी/ एडीजी निगरानी के पद को भी खाली रख आइजी रैंक के अफसरों से काम चलाया जा रहा है. वहीं डीजी या एडीजी रैंक के अफसरों को वैसे जगह पर पोस्ट किया गया है, जहां उनके लिए कोई काम ही नहीं है.

पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन जैसे विभाग में एक डीजी और एक एडीजी को क्रमश: चेयरमैन और डीजीपी के पद पर पदस्थापित किया गया है.

यहां पर एक अफसर के लिए भी ज्यादा काम नहीं है. यही हाल जीआरपी की है. जीआरपी में दो एसपी, एक डीआइजी और एक डीजी रैंक के अफसर का पदस्थापन किया गया है. अधिकारियों के जीआरपी में एक अफसर के लिए ही पर्याप्त काम नहीं है, फिर डीजी व डीआइजी रैंक के अफसर का पदस्थापन समझ से पड़े है. इसी तरह ट्रेनिंग का काम देखने के लिए पीटीसी हजारीबाग में एक डीआइजी पदस्थापित हैं. नेतरहाट के लिए रिटायर कर्नल की डीआइजी रैंक में नियुक्ति की गयी है.

पदमा और नेतरहाट में कमांडेंट का पदस्थापन है. इसके बाद भी मुख्यालय में एडीजी ट्रेनिंग के पद पर अनिल पाल्टा और आइजी ट्रेनिंग के पद पर प्रशांत सिंह को पदस्थापित किया गया है. वायरलेस विभाग में ज्यादा काम नहीं है, पर वहां डीआइजी प्रवीण सिंह को डीआइजी वायरलेस के पद पर पदस्थापित किया गया है. वहां दो एसपी का भी पदस्थापन है. साफ है एक तरफ सरकार डीआइजी रैंक के अफसरों को बिना काम वाले जगह पर पदस्थापित किया गया है और पलामू डीआइजी के पद पर एसपी रैंक के अफसर को पदस्थापित किया गया है.

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