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अब सड़क किनारे नहीं लगते हैं विशाल पेड़ों के पौधे

वरीय संवाददाता, रांची अब बड़े पेड़ों के पौधे कम लगाये जाते हैं. वन विभाग भी सड़क किनारे ऐसे पौधों को लगाने से परहेज करता है. इसके पीछे विभाग का तर्क है कि अब बहुत कुछ बदल गया है. पहले सड़क किनारे बड़े पेड़ों के पौधे इसलिए लगाये जाते थे कि राहगीर को धूप से आराम […]

वरीय संवाददाता, रांची
अब बड़े पेड़ों के पौधे कम लगाये जाते हैं. वन विभाग भी सड़क किनारे ऐसे पौधों को लगाने से परहेज करता है. इसके पीछे विभाग का तर्क है कि अब बहुत कुछ बदल गया है. पहले सड़क किनारे बड़े पेड़ों के पौधे इसलिए लगाये जाते थे कि राहगीर को धूप से आराम मिले. अब स्थिति काफी बदल गयी है. अब ट्रैफिक ऐसी है कि सड़क किनारे बड़े पेड़ उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं. बड़े-बड़े पेड़ के गिर जाने से नुकसान की संभावना ज्यादा होती है. सड़क किनारे से बिजली के तार गुजरते हैं.

फलदार वृक्ष होने पर लोग दुर्घटना की संभावना बनी रहती है. फल के चक्कर में बच्चे सड़क पर आ सकते हैं. वन विभाग के ही अधिकारी बताते हैं निजी व्यक्ति चाहें, तो विशाल पेड़ लगा सकते हैं. वैसे विभाग उन स्थानों पर ही बड़े पौधे लगाता है, जिसको जंगल के रूप में विकसित करना हो. राज्य में अब तक 36 करोड़ पौधे लगाये जा चुके (कैम्पा छोड़कर) हैं. इससे करीब दो लाख हेक्टेयर जमीन को आच्छादित करने का दावा वन विभाग करता है.

पुराने पेड़ों को काटने की जरूरत
वन संरक्षक (अनुसंधान) लाल रत्नाकर सिंह का कहना है कि लोगों में यह भ्रांति है कि पुराने पेड़ ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करता है. असल में एक समय के बाद पुराने पेड़ों में कार्बन डाइऑक्साइड लेने की क्षमता समाप्त हो जाती है. इस कारण उससे ऑक्सीजन भी कम निकलता है. इस कारण पुराने पेड़ों को काट नया पौधा लगाया जाना चाहिए. पर्यावरण में ऑक्सीजन संतुलित मात्रा में निर्मित होते रहना चाहिए. यूएसए में लकड़ी के मकान का प्रचलन बहुत है. पुराने पेड़ों को काट कर उसका उपयोग घरों में किया जाता है. सबसे ज्यादा नुकसान लकड़ी काट कर उसे जलावन के रूप में करने से है.
पुराने जमाने की दुर्लभ प्रजाति है रांची मेंआज भी राजधानी में पुराने समय में लगायी गयी दुर्लभ प्रजाति के पेड़ हैं. बीच सड़क में आ जाने के कारण रास्ता का रुख बदल दिया गया है. राजधानी में ही तीन कल्प तरू (कल्प वृक्ष) है. यह पूरे देश की दुर्लभ प्रजाति है. यह मुख्यत: अफ्रीका का देशज वृक्ष है. इसकी उत्पत्ति के संबंध में भारत वर्ष में एक किंवदंती है. कहा जाता है कि देवताओं एवं राक्षसों में युद्ध हुआ था. उसके बाद हुए समुद्र मंथन में नौ रत्न मिले थे. इसमें एक कल्प वृक्ष भी था. इसे मनोकामना पूर्ण करनेवाला वृक्ष भी माना जाता है. कल्प वृक्ष पृथ्वी पर पाये जानेवाले सबसे प्राचीन वृक्षों में एक है.

इसके पौराणिक महत्व को इसके गुणों से जोड़ कर देखा जा सकता है. यह अत्यंत शुष्क जलवायु (जहां कम पानी हो) में भी हो जाता है. इसमें जल भंडारण की क्षमता अद्भुत होती है. वृक्ष का प्रत्येक भाग जल भंडारित करता है. एक वृक्ष में 1189 गैलेन तक जल भंडारण के दृष्टांत मिलते हैं. कल्प वृक्ष के फलों को लोग खाना पसंद करते हैं. इसके फलों में कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन, विटामिन सी, कैलशियम, आयरन, पोटाशियम, मैगनीज, फॉसफोरस तथा थियामिन प्रचुर मात्रा में होती है. इसकी जड़, छाल, पत्तियां, फूल, फल सभी उपयोगी औषधि के रूप में प्रयोग होते हैं. इसकी उम्र 2000 साल से अधिक मानी जाती है. मरुभूमि में जल और पौष्टिक आहार प्रदान करनेवाला यह वृक्ष प्रकृति का वरदान है. इसे बीजों से उगाया जाता है. इसका पौधा तैयार करने की प्रक्रिया जटिल है. वन विभाग के गढ़खटंगा स्थित रिसर्च सेंटर में इसे तैयार करने की विधि विकसित की गयी है.

तैयार किया जा रहा है माखन कटोरी का पौधा
राज्य में माखन कटोरी नामक एक वृक्ष का पौधा तैयार किया जा रहा है. ऐसे पौधों का प्रचार प्रसार कर संरक्षण किया जा सकता है. लोगों को इसके महत्व की जानकारी दी जानी चाहिए. यह अत्यंत ही दुर्लभ वृक्ष है. इस वृक्ष की पत्तियां बरगद के वृक्ष की पत्तियों की तरह होती है. इसकी विशेषता यह है कि इन पत्तियों का पृष्टभाग (पीछे का हिस्सा) प्राकृतिक रूप से दोने के आकार का होता है. किंवदंती है कि एक बार भगवान कृष्ण माखन चोरी कर खा रहे थे, तभी वहां यशोदा मां आ गयी. कृष्ण जी ने माखन छुपाने के लिए इस वृक्ष की पत्तियों के पीछे के हिस्से को दोने के आकार में मोड़ दिया, तब से वृक्ष की पत्तियां दोने के आकार की हो गयी हैं. उसी समय से इसे माखन कटोरी के नाम से जाना जाता है. वन विभाग ने गढ़खटंगा स्थित विभागीय रिसर्च सेंटर में ग्राफ्टिंग तकनीकी से इसे उगाने में सफलता पायी है.

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