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एक मकान भी नहीं बना सका

रांची: एकीकृत बिहार के समय ही राज्य सरकार ने विभिन्न आय वर्गो के लिए मकान बनाने के उद्देश्य से भू- अधिग्रहण कर राज्य आवास बोर्ड को जमीन दी थी. इन भू-खंडों पर विभिन्न प्रकार के मकानों का निर्माण किया गया था. जबकि अधिकांश भूमि खाली रह गयी थी. 15 नवंबर 2000 में झारखंड बनने के […]

रांची: एकीकृत बिहार के समय ही राज्य सरकार ने विभिन्न आय वर्गो के लिए मकान बनाने के उद्देश्य से भू- अधिग्रहण कर राज्य आवास बोर्ड को जमीन दी थी. इन भू-खंडों पर विभिन्न प्रकार के मकानों का निर्माण किया गया था. जबकि अधिकांश भूमि खाली रह गयी थी. 15 नवंबर 2000 में झारखंड बनने के बाद झारखंड राज्य आवास बोर्ड का गठन किया गया.

स्थिति यह है कि इन 13 सालों में बोर्ड एक मकान का भी निर्माण नहीं कर सका है. उलटे सरकार द्वारा अधिग्रहीत कर दी गयी जमीन बाजार मूल्य पर बेच कर लाभ कमाया है. बिना अनुमति के ही ज्वाइंट वेंचर (संयुक्त उपक्रम) में बहुमंजिली इमारतें बनाने का फैसला किया. साथ ही नक्शे में ओपेन स्पेस के रूप में चिह्न्ति जमीन के टुकड़े भी निजी कंपनियों को दे दिये. बोर्ड के इस फैसले पर कानूनी विवाद के कारण निर्माण कार्य लंबित है.

43.0437 एकड़ जमीन दी
बोर्ड ने तीन शहरों (रांची, जमशेदपुर और धनबाद) में कुल 43.0437 एकड़ जमीन निजी हाथों को सौंप दी. बोर्ड ने वर्ष 2008 में 22 बिल्डरों के साथ एग्रीमेंट कर ज्वाइंट वेंचर किया था. बोर्ड की जमीन पर बहुमंजिली इमारतों को व्यावसायिक और आवासीय परिसर बनाने के लिए 24 योजनाएं बनायी गयी थीं. इसमें से चार भूखंडों को छोड़ 18 जगहों पर काम शुरूनहीं किया जा सका है. विभिन्न कारणों से केवल चार भूखंडों में धरातल पर काम दिख रहा है.

जमीन की तलाश
आवास बोर्ड राजधानी रांची समेत कई जिलों में नयी आवासीय कॉलोनियां बनाने की तैयारी कर रहा है. दुमका, गिरिडीह और देवघर में जमीन चिह्न्ति कर ली गयी है. दुमका में 50 एकड़, गिरिडीह में 40 एकड़ और देवघर में 30 एकड़ जमीन अधिग्रहीत करने का प्रस्ताव बोर्ड द्वारा संबंधित जिले के भू-अजर्न कार्यालय में भेजा जा चुका है. राजधानी रांची में भी बोर्ड को लगभग100 एकड़ जमीन की तलाश है. बोर्ड के अधिकारी रातू, कांके व अनगड़ा अंचल में जमीन देखने में व्यस्त हैं. जमीन की तलाश पूरी होते ही अधिग्रहण की कवायद शुरूकी जायेगी.

लॉटरी के बाद भी आवंटन नहीं
मकानों का निर्माण करने में अक्षम आवास बोर्ड लॉटरी के बाद भी किसी को भूखंड का आवंटन कर सका है. जुलाई 2011 में लॉटरी के माध्यम से बोर्ड ने करोड़ों रुपये कमाये. विजेताओं के नाम भी सार्वजनिक किये. बाद में बोर्ड में कार्यरत कर्मियों की मिलीभगत से लॉटरी में गड़बड़ी की शिकायत की गयी. जांच में पता चला कि कर्मियों व उनके रिश्तेदार भी लॉटरी में विजेता बन गये हैं. अभी यह मामला सरकार के पास विचाराधीन है.

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