संवाददाता रांची आदिवासी सरना समिति धुर्वा के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा है कि सरना आदिवासियों के कई रीति -रिवाज, परंपराएं व पूजन विधि हिंदुओं से मिलती – जुलती हैं. उन्होंने कहा कि जन्म के बाद बच्चे की छठी, मुंडन, कान छेदी, मृत शरीर को दफनाने या जलाने, दर्शकर्म की क्रिया हिंदू व सरना धर्मावलंबी दोनों करते हैं. करम पूजा को सदान हिंदू भी मनाते हैं. सरना आदिवासी होली को फगुवा और दीपावली को सोहराई के नाम से मनाते हैं. सरना आदिवासी समाज सखुआ व करम वृक्ष की पूजा करता है, वहीं हिंदू समाज बरगद व पीपल की पूजा करता है. आदिवासी धरती, नदी, तालाब व सूर्य की पूजा करते हैं, जो हिंदू समाज भी करता है. हम अपने देवताओं को बलि चढ़ाते हैं और ऐसा हिंदू समाज भी करता है. दोनों कोई भी शुभ कार्य लग्न देख कर करते हैं. आदिवासियों के लिए भगवान शंकर बूढ़ा महादेव के नाम से पूजनीय हैं. गांवा देवती, देवी मड़ई, सावन पूजा आदि आदिवासियों के साथ सदान हिंदू भी मनाते हैं.
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आदिवासियों व हिंदुओं के कई रीति -रिवाज एक जैसे (पढ़ कर लगायें-जुएल उरांव वाले मामले में ही)
संवाददाता रांची आदिवासी सरना समिति धुर्वा के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा है कि सरना आदिवासियों के कई रीति -रिवाज, परंपराएं व पूजन विधि हिंदुओं से मिलती – जुलती हैं. उन्होंने कहा कि जन्म के बाद बच्चे की छठी, मुंडन, कान छेदी, मृत शरीर को दफनाने या जलाने, दर्शकर्म की क्रिया हिंदू व सरना धर्मावलंबी […]
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