इस दौरान श्री प्रसाद ने कहा कि राज्य में चाहे किसी की सरकार क्यों न हो, आदिवासी व मूलवासी के बिना समर्थन के नहीं चल सकती है. राजनीतिक दलों को भी यह गलतफहमी है कि मूलवासी-सदान आदिवासी संगठित नहीं हैं. उन्होंने कहा कि स्थानीय नीति, अंतिम सर्वे या खतियान के आधार पर ही बने. रतन तिर्की ने कहा कि तृतीय वर्ग में उत्तर प्रदेश में भी बहार के लोगों को नौकरी नहीं देने का प्रावधान है, तो झारखंड में यह नियम क्यों नहीं हो सकता है.
झारखंड छात्र संघ के एस अली ने कहा कि स्थानीय नीति नहीं होने से राज्य की नियुक्तियों में बाहर के लोग कब्जा कर ले रहे हैं. डॉ विमल कच्छप ने कहा कि झारखंडी आज भी अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं. कुरमी विकास मोरचा के शीतल ओहदार ने कहा कि बिना स्थानीय नीति के किसी प्रकार की नियुक्ति अभी न हो. डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने कहा कि 14 सालों से स्थानीय नीति बनाने का काम लटका हुआ है, परंतु अब इसे तुरंत बनाया जाना चाहिए. बैठक को अब्दुल खालिक, डॉ त्रिवेणी नाथ साहू, राजू महतो, वासुदेव प्रसाद, महेंद्र ठाकुर, एम इलियास, अजरुन साहू, डॉ सुदेश कुमार, डॉ अनिल मिश्र, आनंद ठाकुर आदि ने भी संबोधित किया.