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हर वर्ष 33 हजार बालिकाओं की तस्करी

चिंता. ह्यूमन ट्रैफिकिंग विषयक कार्यशाला में यूएस कांसुलेट जनरल ने कहा: झारखंड से रांची : अमेरिकी कांसुलेट जनरल के कोलकाता कार्यालय की ओर से रांची में आयोजित वर्किग टूगेदर टू कांबैट ह्यूमन ट्रैफिकिंग विषयक दो दिवसीय कार्यशाला में शुक्रवार को यूएस कांसुलेट जनरल हेलेन लाफाव ने कहा है कि झारखंड से प्रति वर्ष 33 हजार […]

चिंता. ह्यूमन ट्रैफिकिंग विषयक कार्यशाला में यूएस कांसुलेट जनरल ने कहा: झारखंड से
रांची : अमेरिकी कांसुलेट जनरल के कोलकाता कार्यालय की ओर से रांची में आयोजित वर्किग टूगेदर टू कांबैट ह्यूमन ट्रैफिकिंग विषयक दो दिवसीय कार्यशाला में शुक्रवार को यूएस कांसुलेट जनरल हेलेन लाफाव ने कहा है कि झारखंड से प्रति वर्ष 33 हजार बालिकाओं की ट्रैफि किंग हो रही है. ये सभी गरीब परिवारों की होती हैं और उनकी आयु 18 वर्ष से कम की हैं. इनसे जबरन घरेलू कार्य करने, रेस्तरां, फैक्टरियों में काम कराया जा रहा है.
2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी में से 40 प्रतिशत बच्चे हैं. इनकी संख्या एक करोड़ से ऊपर है. पांच से 14 वर्ष आयु वर्ग के 91 हजार झारखंडी बच्चे राज्य में स्थायी कामगार की तरह काम कर रहे हैं. जबकि 1.60 लाख बच्चे तीन से छह माह तक बाल मजदूरी करते हैं. 1.45 लाख बच्चे प्रत्येक वर्ष तीन माह से कम समय तक के लिए कहीं-न-कहीं नियोजित किये जाते हैं. इन बच्चों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. उनका बचपन भी छीना जा रहा है. बच्चों का अधिकार छीननेवाले ऐसे लोगों की पहचान की जरूरत है. उनकी गतिविधियों को सार्वजनिक करने की आवश्यकता है. इन बच्चों से अनैतिक कार्य भी कराये जाते हैं. बच्चों से ऐसा कार्य करानेवाले अधिकतर उनके करीबी होते हैं. यूएस कॉन्सुलेट मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई और नयी दिल्ली दूतावास से मानव तस्करी के खिलाफ जागरूकता फैलाने का अभियान चलाया जा रहा है. केंद्र सरकार ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के गठन की दिशा में कार्रवाई शुरू कर दी है.
केंद्रीय गृह मंत्रलय की ओर से भी मानव तस्करी को रोकने के लिए कानून को और सख्त किया जा रहा है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने कहा कि नयी दिल्ली ह्यूमन ट्रैफिकिंग का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. यहां पर देश भर से बालिकाओं, बच्चों, महिलाओं को घरेलू नौकर बनाने के लिए प्लेसमेंट एजेंसियां लाती हैं. आयोग अब ट्रैफिकिंग, न्यूनतम मजदूरी, बाल श्रम और अन्य कार्यो की निगरानी कर रहा है. सभी राज्य सरकारों से इस संबंध में रिपोर्ट भी मांगी गयी है. टाटा इंस्टीटय़ूट आफ सोसल साइंसेज के चेयर प्रोफेसर और एंटी ट्रैफिकिंग विशेषज्ञ डॉ पीएम नायर ने सरकारों की ओर से समेकित कार्य योजना बनाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि यह संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर गंभीरता से कार्य योजना बनाने की जरूरत है.
सभी की सहभागिता जरूरी
समाज कल्याण महिला और बाल विकास मंत्री डॉ लुईस मरांडी ने कहा कि सबकी सहभागिता से ही मानव तस्करी पर रोक संभव है. मानव तस्करी झारखंड के लिए अभिशाप है. अमेरिकी कॉन्सुलेट जनरल के कोलकाता कार्यालय की ओर से रांची में आयोजित वर्किग टूगेदर टू कांबैट ह्यूमन ट्रैफिकिंग विषयक दो दिवसीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ मरांडी ने कहा कि मानव तस्करी के खिलाफ मीडिया, स्वयंसेवी संस्था, पुलिस और प्रशासन को मिल कर काम करना होगा. राज्य के 22 जिलों में महिला थाने का गठन किया गया है. आठ जगहों पर मानव तस्करी के खिलाफ प्रकोष्ठ गठित किये गये हैं.
शिक्षा से ही लगेगी रोक
मानव संसाधन विकास मंत्री नीरा यादव ने कहा कि अशिक्षा को दूर करने से ही मानव तस्करी जैसे कारनामों को रोका जा सकता है. केंद्र सरकार ने विद्या लक्ष्मी योजना और सुकन्या समृद्धि योजना शुरू की है. इसके जरिये बालिकाओं को सबल और संबल बनाने पर बल दिया गया है. राज्य में बालिकाओं के शिक्षित नहीं होने के कारणों पर भी सरकार ध्यान दे रही है.
अधिकार है पलायन, रोकना होगा मानवाधिकार का उल्लंघन
रांची. ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर अंकुश लगाने के लिए काम कर रही संस्थाओं का मानना है कि पलायन लोगों का अधिकार है. इस पर अंकुश लगाना मानवाधिकार का उल्लंघन है. देश-विदेश में पलायन और अवैध मानव व्यापार पर काम करने वाले विशेषज्ञों ने पलायन को सुरक्षित बनाने पर जोर दिया. साउथ एशिया एंटी ट्रैफिकिंग पर्सन के चौथे कॉन्क्लेव में विशेषज्ञों और ट्रैफिकिंग रोकने का प्रयास करने वाली संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने सुरक्षित पलायन पर मंथन किया.
टीआइएसएस मुंबई से आये डॉ पीएम नायर ने सेशन की अध्यक्षता की. एशिया फाउंडेशन, नेपाल से आयी नंदिता बरूआ, सेव द चिल्ड्रन के महादेव हांसदा और एसएलएआरटीसी के कार्यकारी निदेशक मानवेंद्र मंडल समेत अन्य ने पलायन को सुरक्षित बनाने और अवैध मानव व्यापार को रोकने के संभावित उपायों पर चर्चा की. वक्ताओं का मानना था कि मानव तस्करी रोकने के लिए जागरूकता जरूरी है. पलायन के पूर्व लोगों को इस संदर्भ में जानकारी होनी चाहिए. उनको आस-पास के क्षेत्रों में मेहनत कर आमदनी की अन्य संभावनाओं के बारे में बताया जाना चाहिए. पलायन जरूरी हो, तो वह अपने कौशल को तराशने के बारे में सोचे. यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पलायन करने वाले कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण लेकर ही अन्यत्र जायें. सरकार को ऐसी नीति तैयार करनी चाहिए, जैसी विदेश में हो रहे पलायन के लिए लागू है.
विदेश जानेवालों की तर्ज पर देश के अन्य राज्यों में पलायन करने वाले लोगों के लिए भी प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए. वक्ताओं ने महिलाओं के पलायन को ज्यादा सुरक्षित बनाने की आवश्यकता बतायी. महिलाओं को उनका अधिकार दिये बगैर महिला सशक्तीकरण का सपना पूरा नहीं हो सकता है. पलायन करने वाली महिलाओं को जागरूक कर उनके अधिकारों की जानकारी दी जानी चाहिए. पलायन करनेवाले लोगों का शोषण रोकने का जिम्मा केवल सरकार का ही नहीं, बल्कि आम लोगों का भी है. सरकार नीतियों के निर्धारण में सुरक्षित पलायन को जरूर ध्यान में रखे.
अमेरिका में भी ट्रैफिकिंग की समस्या : टी विलियम्स
टिफैनी विलियम्स डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया की लाइसेंस प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता व नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स अलायंस (एनडीडबल्यूए) की समन्वयक हैं. वह कम मजदूरी पाने वाली महिला कामगारों के मानवाधिकार व श्रमिक अधिकारों पर काम करती हैं. ह्यूमन ट्रैफिकिंग व श्रम अधिकार के मुद्दे पर अमेरिका की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व ऑनलाइन माध्यमों में विलियम्स के लेख प्रकाशित हुए हैं. फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में स्नातक व कोलंबिया यूनिवर्सिटी से सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री प्राप्त विलियम्स ह्यूमन ट्रैफिकिंग से संबंधित कॉनक्लेव में भाग लेने रांची आयी हैं.
यह कार्यक्रम यूएस कॉन्सुलेट जनरल, कोलकाता के सहयोग से आयोजित किया गया है. विलियम्स ने प्रभात खबर से ट्रैफिकिंग के विभिन्न पहलुओं पर बात की.
आप डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में घरेलू कामगारों की सहायता व उनकी काउंसलिंग का काम करने वाली लाइसेंस प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वहां घरेलू कामगारों की क्या समस्या है.
न सिर्फ वाशिंगटन डीसी बल्कि अमेरिका के सभी बड़े शहरों में घरेलू कामगारों की समस्या वही है, जो दुनिया के दूसरे देशों में है. जैसे कामकाज का सुरक्षित माहौल न होना, काम के घंटे तय न होना, कम मजदूरी व शारीरिक तथा मानसिक प्रताड़ना.
आप अमेरिका में घरेलू कामगारों के सहायतार्थ काम करनेवाली संस्थाओं के नेटवर्क नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स अलायेंस (एनडीडबल्यूए) की समन्वयक हैं. इसके बारे में बताएं.
यह कुल 44 संस्थाओं का एक नेटवर्क है. हम इसके जरिये घरेलू कामगारों के मानवाधिकारों की रक्षा करते हैं.
अवैध मानव व्यापार की समस्या क्या पूरे अमेरिका में हैं. इसकी वजह क्या है ?
यह हमारी भी राष्ट्रीय समस्या है. खास कर कोलंबिया, न्यूयॉर्क, फ्लोरिडा व अन्य बड़े शहरों की. इस समस्या के पीछे यह कारण है कि घरेलू काम को वास्तविक काम माना नहीं जाता. इस काम के लिए भुगतान भी बहुत कम होता है. कम पैसे में काम कराने के लिए लोग ट्रैफिकिंग को बढ़ावा देते हैं. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आइएलओ) में भी इसे लेकर कई बार चर्चा हो चुकी है. भारत में ह्यूमन ट्रैफिकिंग को रोकने या फिर इसे कम करने के लिए क्या कुछ किया जाना चाहिए.
मुङो भारत के बारे में बहुत आइडिया नहीं है. पर पलायन, अवैध मानव व्यापार व बाल श्रम जैसी समस्याएं तो यहां हैं ही.
ट्रैफिकिंग को आप सामाजिक समस्या मानती हैं या कानूनी, या फिर दोनों.
ट्रैफिकिंग न सिर्फ सामाजिक व कानूनी बल्कि संस्कृति से जुड़ी समस्या भी है.
आप अमेरिका के कई पत्र-पत्रिकाओं के अलावा ऑनलाइन मीडियम पर भी ट्रैफिकिंग व घरेलू कामगारों की समस्या जैसे विषयों पर लेख लिखती हैं. ऐसा करने वाली आप अकेली हैं या कई लोग मिल कर इसके समाधान के लिए आवाज उठा रहे हैं.
कई लोग हैं, जो यह काम कर रहे हैं. हमें करीब सौ लोगों का साथ मिल रहा है.
जहां तक अवैध मानव व्यापार या ट्रैफिकिंग की बात है, तो क्या आप इस समस्या से त्रस्त नंबर एक, दो व तीन देशों के नाम बता सकती हैं.
नहीं, यह बता पाना मुश्किल है. दुनिया भर के देशों में यह समस्या है.
घरेलू कामगारों व मानव व्यापार जैसे मुद्दे पर आप काम कर रही हैं. क्या आपको लगता है कि श्रम कानून कमजोर हैं.
श्रम कानून को और कठोर बनाने की जरूरत है. पर इससे भी बड़ी समस्या मौजूदा कानून के सही क्रियान्वयन न होने की है.
रांची का सम्मेलन आपको कैसा लगा.
इस कार्यक्रम से मैं बहुत प्रभावित हूं. लोग सम्मेलन के मुद्दे पर बेहद उत्साहित व गंभीर हैं. एक बात अच्छी लग रही है कि यहां न सिर्फ समस्या बल्कि समाधान पर भी बात हो रही है.

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