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स्थानीयता नीति पर बहस – वाल्टर कंडुलना

फोटो ट्रैक – वाल्टर कंडुलनास्थानीय लोगों की बहाली नीति बनेबिहार में स्थानीय व्यक्ति का आधार जिला माना गया. जिला में जिनके पूर्वजों के नाम जमीन वासगित का उल्लेख हो, उन्हें ही स्थानीय माना गया़ बिहार में मूलअधिसूचना अभी भी लागू है़ परन्तु झारखंड में इस अधिसूचना पर हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई […]

फोटो ट्रैक – वाल्टर कंडुलनास्थानीय लोगों की बहाली नीति बनेबिहार में स्थानीय व्यक्ति का आधार जिला माना गया. जिला में जिनके पूर्वजों के नाम जमीन वासगित का उल्लेख हो, उन्हें ही स्थानीय माना गया़ बिहार में मूलअधिसूचना अभी भी लागू है़ परन्तु झारखंड में इस अधिसूचना पर हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई और प्रवासी लोग स्थानीय शब्द को ‘अधिवासी’ अथवा ‘नागरिकता’ मानकर ‘अधिवासी नीति’ की चर्चा करने लगे़ कोई भी राज्य सरकार अधिवास नीति नहीं बना सकती़ झारखंड सरकार की नीति सिर्फ इस पर केंद्रित है कि राज्य में नियोजन के लिए कैसे स्थानीय लोगों को चिह्रित करना है़ इसलिए इसे सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की बहाली नीति कहना ज्यादा उचित होगा़ इन बातों पर ध्यान देना जरूरीस्थानीय नीति के निर्धारण के लिए इन तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है कि झारखंड में हर 10 में से 5 गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताते हैं. इनमें पांच में से चारआदिवासी हैं़ झारखंड के मूल वासियों व आदिवासियों को रोजगार तथा नौकरियों में समान अवसर नहीं मिलते, क्योंकि रोजगार देनेवाले अपने लोगों को सही -गलत तरीके से नियोजित करते हैं़ रोजगार के लिए सदानों व आदिवासियों का पलायन होता है, जबकि बाहरी लोगों का झारखंड में बाढ़ की तरह आगमन हुआ है़ सिर्फ संविधान में लिखित समता और समान अवसर को संवैधानिक रूप से नहीं देखना चाहिए, बल्कि जमीनी स्थिति को देखना भी जरूरी है़ झारखंड बनने के पीछे यहां के सदानों व आदिवासियों के आंदोलन का हाथ रहा है़- वाल्टर कंडुलनाआदिवासी बुद्घिजीवी मंच, गुमला

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