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सेव द चिल्ड्रेन: कुपोषण राज्य की बड़ी समस्या

रांची: कुपोषण राज्य की सबसे बड़ी समस्या है. राज्य में 20 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण मरते हैं. यदि सही मायने में राज्य को कुपोषण मुक्त करना है, तो इसे मिशन के रूप में लेना होगा. उक्त बातें मंगलवार को कैपिटोल हिल में सेव द चिल्ड्रेन द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय प्रचार-प्रसार कार्यक्रम के […]

रांची: कुपोषण राज्य की सबसे बड़ी समस्या है. राज्य में 20 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण मरते हैं. यदि सही मायने में राज्य को कुपोषण मुक्त करना है, तो इसे मिशन के रूप में लेना होगा. उक्त बातें मंगलवार को कैपिटोल हिल में सेव द चिल्ड्रेन द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय प्रचार-प्रसार कार्यक्रम के दौरान यूनिसेफ के झारखंड प्रमुख जॉब जकारिया ने कहीं. उन्होंने बताया कि कैंसर एवं एनिमिया भी गंभीर समस्या बन गयी है.

हालांकि एनिमिया को रोकने के लिए राज्य स्तर पर कार्यक्रम संचालित है. वहीं स्तन कैंसर को कम करने के लिए महिलाओं में स्तनपान को जागरूक होना होगा. राज्य में प्रतिवर्ष दो लाख बाल विवाह के मामले सामने आते है. वहीं 92 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं.

इससे उनमें संक्रामक बीमारियां होती हैं. सेव द चिल्ड्रेन के कार्यक्रम प्रबंधक महादेव हांसदा ने कहा कि पोषण की सुरक्षा के लिए एक पांच सूत्री एजेंडा बनाया गया है. अगर इसका पालन किया जाये, तो बच्चों के पोषण की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है. डॉ लक्ष्मीकांत ने कहा कि पोषण की योजनाओं को सरकारी स्तर पर सही रूप से क्रियान्वयन की जरूरत है. यदि बच्च कुपोषित है, तो उसमें संक्रामक बीमारी होने की संभावना ज्यादा रहती है.

इन्होंने भी रखे विचार

बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रंजना कुमारी ने कहा कि शिक्षा के प्रति जागरूकता लाना हमारा उद्देश्य होना चाहिए. लड़कियों को शिक्षा से जोड़ कर ही हम योजना को सफल बना सकते हैं. गणोश रेड्डी ने कहा कि बाल अधिकार या कुपोषण राजनैतिक पार्टियों का मुद्दा नहीं बन पाया है.राज्य स्तर पर अभियान बना कर इसे जोड़ने की जरूरत है. कार्यक्रम के अंत में खुला सत्र भी हुआ, जिसमें आये एनजीओ के सदस्यों ने अपने विचार रखे.

क्रियान्वयन एजेंडा पर बनी सहमति

नेतृत्व को संस्थागत रूप देना

दो वर्ष से कम बच्चों, गर्भवती महिलाओं, किशोरी बालिकाओं पर विशेष ध्यान देना

आवश्यक पोषण संबंधी कार्यो में निष्पक्ष रूप एवं बडे पैमाने पर वित्तीय एवं सेवा संबंधी सहायता प्रदान करना

आहार विविधता, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षित पेयजल, वातावरण एवं पारिवारिक स्वच्छता, महिला शिक्षा के प्रति लिंग भेद एवं गर्भधारण की सही उम्र के प्रति ध्यान आकृष्ट कराना.

पोषण को विकास के संकेतकों में ध्यान देना व आंकड़ा आधारित विश्वसनीयता पर बल देना.

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