रांची: नॉर्थ वेस्टर्न गोस्सनर इवांजेलिकल लूथेरन कलीसिया (एनडब्ल्यूजीइएल चर्च) छोटानागपुर व असम के दस्तावेजों के अनुसार गोस्सनर कलीसिया की स्थापना नौ जून 1850 को तब हुई, जब जर्मनी से आये चार गोस्सनर मिशनरियों ने छोटानागपुर के चार वयस्क- हेथाकोटा के नवीन डोमन, चिताकुनी के केशो व बंधु और करंदा के घूरन उरांव का बपतिस्मा कर मसीही बनाया़.
वर्ष 1914 में पहला विश्वयुद्ध शुरू होने पर तत्कालीन सरकार ने 1915 में सभी जर्मन मिशनरियों को स्वदेश लौटने की आज्ञा दी़ तब कलीसिया के सदस्यों ने पादरी हनुक दत्ताे लकड़ा के सभापतित्व में शासन की जिम्मेवारी संभाली़ दस जुलाई 1919 में कलीसिया ऑटोनॉमस हुई़ 1977 में स्थानीय लूथेरन कलीसिया में विभाजन हुआ. उत्तरी पश्चिमी अंचल के तत्कालीन अध्यक्ष पादरी निरंजन एक्का के नेतृत्व में प्रमुख अध्यक्ष स्तर पर एक समानांतर कलीसिया के रूप में अपनी प्रशासनिक व्यवस्था व कार्यवाही शुरू की गयी. 15 अप्रैल 1978 में नया संविधान बनाया गया.
इसी संविधान प्रदत्त नाम नॉर्थ वेस्टर्न जीइएल चर्च इन छोटानागपुर एंड असम के नाम से यह कलीसिया आगे बढ़ने लगी़ गोस्सनर मिशन जर्मनी द्वारा जीइएल चर्च व एनडब्ल्यूजीइएल चर्च के बीच समझौते के कई प्रयास हुए, जो विफल रह़े 19 नवंबर 1988 में एनडब्ल्यूजीइएल चर्च को बिहार काउंसिल ऑफ चर्चेज की पूर्ण सदस्यता मिली़ 28 अप्रैल 1989 में इसने यूनाइटेड इवांजेलिकल लूथेरन चर्चेज इन इंडिया की प्रोविजनल मान्यता भी हासिल की़ तीन जून 1980 को डॉ निर्मल मिंज इसके प्रथम बिशप बनाये गय़े बिशप दुलार लकड़ा इसके वर्तमान धर्माध्यक्ष हैं़ इस चर्च का विस्तार देश के 12 राज्यों में है़ वर्ष 2013 के आंकड़ों के अनुसार इस कलीसिया के चर्च की संख्या 741 और बपतिस्मा प्राप्त सदस्यों की संख्या 1,20,070 है़.