रांची: एक यूनिट होल ब्लड से तीन मरीजों की जान बचायी जा सकती है. होल ब्लड के एक यूनिट से कंपोनेंट्स को अलग कर प्लेटलेट्स, आरबीसी एवं डब्लूबीसी बनायी जा सकती है, लेकिन राजधानी में मरीज को ब्लड कंपोनेंट चढ़ाने का प्रचलन नहीं है. मरीज को होल ब्लड ही चढ़ाया जाता है. अगर कंपोनेंट चढ़ाया जाता तो मरीज को बेहतर लाभ होता. चिकित्सकों के अनुसार कंपोनेंट से मरीज की रिकवरी होल ब्लड की अपेक्षा तेजी से होती है.
चिकित्सक नहीं लिखते कंपोनेंट
राजधानी में चिकित्सक मरीज को ब्लड कंपोनेंट देने के लिए नहीं लिखते. मरीज को अगर आरबीसी की जरूरत होती है तो भी उसे होल ब्लड ही चढ़ाया जाता है. ऐसे में मरीज के शरीर में जिसकी आवश्यकता नहीं थी उसे भी पहुंचा दिया जाता है. अगर चिकित्सक कंपोनेंट लिखते एवं उसकी डिमांड होती तो ब्लड बैंक में आसानी से कंपोनेंट उपलब्ध होता.
अन्य शहरों में कंपोनेंट का हो रहा प्रयोग
देश के कई राज्यों में ब्लड कंपोनेंट का प्रयोग हो रहा है. गुजरात, मुंबई, चेन्नई एवं कर्नाटक में ब्लड कंपोनेंट का प्रयोग किया जाता है. यहां चिकित्सक भी कंपोनेंट देने का परामर्श देते हैं. जानकारी के अनुसार विदेशों में 90 प्रतिशत कंपोनेंट का प्रयोग होता है, सिर्फ 10 प्रतिशत ही होल ब्लड का प्रयोग होता है. वहीं भारत में 85 प्रतिशत होल ब्लड का प्रयोग होता है एवं सिर्फ 15 प्रतिशत ही कंपोनेंट का प्रयोग होता है.
एक्सपर्ट की राय
ब्लड कंपोनेंट बेहतर होता है. आवश्यकता होने पर कंपोनेंट ही चढ़ाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता. ब्लड बैंक में यह आसानी से उपलब्ध नहीं होता है, इसलिए भी इसकी मांग कम है.
डॉ आरएस दास, पूर्व आइएमए अध्यक्ष
हमारी संस्था अब ब्लड कंपोनेंट कैंप ही लगा रही है. एक यूनिट से हम तीन लोगों को लाभ पहुंचा सकते है. हम इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम भी कर रहे है. रिम्स से हमारी सहमति बनी है कि हमारे कैंप से अधिक से अधिक कंपोनेंट बनाया जाये. अब चिकित्सक की जिम्मेदारी है कि वो कंपोनेंट को लिखे.
अतुल गेरा, अध्यक्ष लाइफ सेवर्स