17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जीवन की यात्रा में पिता से प्रार्थना

अगस्त का रिमझिम महीना, हर तरफ फुहारों की मीठी तान से लेकर गहन बूंदों की घनघोर लडि़यों तक की यात्रा. प्रकृति और जीवन का संवाद परिवर्तनशीलता के अभिनय में ढलता निखरता जाता है. प्रकृति हमें निरंतर बेहतर होने की चाह और बेहतर बनाने का संकल्प सिखाती चली जाती है. सावन का शिवमय समय हो या […]

अगस्त का रिमझिम महीना, हर तरफ फुहारों की मीठी तान से लेकर गहन बूंदों की घनघोर लडि़यों तक की यात्रा. प्रकृति और जीवन का संवाद परिवर्तनशीलता के अभिनय में ढलता निखरता जाता है. प्रकृति हमें निरंतर बेहतर होने की चाह और बेहतर बनाने का संकल्प सिखाती चली जाती है. सावन का शिवमय समय हो या फिर देश की आजादी का पुरसुकून जश्न, इनके बीच रक्षाबंधन के रिश्तों की गर्माहट का अनुभव, कुल मिलाकर संघर्ष करते आदमी की जिंदगी में पुरुषार्थ का संकल्प, नवीनता का राग छेड़ती है. यही मैं एक लंबी सांस लेता हूं और बरबस पिता की स्मृति मेरे जेहन में उतरती जाती हैं और फिर धीरे-धीरे मेरे समूचे अस्तित्व पर पसरती चली जाती है. किसी प्रिय के होने का अर्थ उनके न होने पर शायद ज्यादा मूल्यवान होता है. 12 अगस्त को मेरे पिता जीवन से मृत्यु की ओर बढ़ गये, निकल गये अनंत की यात्रा पर. इस तिथि से हर वर्ष गुजरना यातना से गुजरना होता है, पर हां उनकी जीवन शैली, उनका चिंतन, उनका आचार-विचार जरूर ढाढ़स की तरह मेरे कंधे को थपकाता हुआ तब चला आता है. देखिए सीधी सी बात जो मेरी समझ में आती है वो यह है कि संस्कार, परवरिश से लेकर मनुष्यता तक की पहली और बुनियादी सीख परिवार से मिलती है. किसी भी परिवार का परिवार का मजबूत स्तंभ पिता होता है. वह छत की तरह होता है जो बाहरी आपदाओं से निबटने में आपकी सहायता करता है. मैं जब अपने पिता को देखता हूं तो पता हूं कि उनकी कई बातें हैं जो आज मेरे व्यक्तित्व के हिस्से में धड़कती है, सांस लेती है. जब मैं अपने चारो तरफ स्त्री को लेकर असहिष्णुता, संवेदनशून्यता देखता हूं, जघन्य कुकृत्यों को घटित होते पता हूं तो लगता है कि कहां चूक हो गयी थी, कि कहां आत्मीयता की लौ गुमशुदा हुई थी, कि कहां हमने मनुष्यता को छोड़ कर शैतानी हरकतों को गले लगाया, और तब लगता है शायद पारिवारिक परवरिश के प्रारंभिक चरणों में ही उस हादसे का बीज रोपण हुआ होगा. मेरे परिवार में स्त्रियों का बड़ा सम्मान था. पिता को अपनी मां, पत्नी, बहनों और बहुओं को उनके हक, उनकी इच्छा का सम्मान करते देखा, पारिवारिक निर्णयों में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करते देखा. फिर उसके प्रति उचित मंशा, मर्यादित आचरण घर में ही सीखा. दूसरी बात पिता की ये याद आती है कि जब हम अभाव में होते तो उनकी प्रतिक्रिया थोड़ी सख्त होती. कई अवसरों पर हमारी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाने पर उनको कोफ्त से चिढ़ते देखा, लेकिन जीवन विकास के क्रम में जैसे ही वो थोड़े संपन्न हुए तो हमें शहर के बड़े रेस्तरां से लेकर मौज-मस्ती तथा तमाम भौतिक सुविधाएं उपलब्ध करायी. ऐसा लगता था कि अभाव के दिनों की तपिश को इस परिपूर्णता के अवसरों से शीतल कर देना चाहते हैं. तीसरी बात यह कि उन्होंने हमलोगों से कभी अपेक्षा नहीं की और ऐसा कर वह अपने को इतना मजबूत कर पाये कि मुझे आश्चर्य होता है. अपेक्षा ही दुख का निमित्त है. हमें हमेशा ये बताते कि जीवन में जो स्थायी है वह संस्कार और मूल्य है. हमसे कुछ नहीं चाहा, कुछ नहीं मांगा. बदली घिर आयी है. बारिश जोरों की होगी शायद, खिड़की बंद करने के लिए उठता हूं तब तक दो-चार बूंदों की शीतलता मुझे भीगोती है. पिता बरबस चले आते हैं आंखों में चेहरे पर रोमावलियों में, लगता है पूछ रहे हों बाबलू कैसा है? मैं चौंककर इधर-उधर देखता हूं कि फिर खामोशी भर आती है चारो तरफ. आंखों के आकाश में पिता सूरज की तरह हमेशा चमकते रहते हैं. आज हम पूरे परिवार की ओर से अपने पिता प्रात: स्मरणीय स्वर्गीय शशि भूषण प्रसाद सिन्हा को इस रूप में याद करते हुए उन्हें शत शत प्रणाम करते हैं, श्रद्धांजलि देते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें