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52 वर्ष पहले जनसंघ के बालेश्वर दास ने छीना था कांग्रेस से देवघर सीट, बूट पॉलिश कर जुटाते थे चुनावी खर्च
अमरनाथ पोद्दार देवघर : देवघर (बाबा नगरी) विधानसभा सीट 1962 में एससी के लिए सुरक्षित घोषित हुई, तब जनसंघ के प्रत्याशी बालेश्वर दास ने कांग्रेस से यह सीट छीनी थी. इससे पहले 1952 में कांग्रेस के पं विनोदानंद झा को फॉरवर्ड ब्लॉक के भुवनेश्वर पांडेय उर्फ भूमि पांडेय ने हराया था. 1957 के चुनाव में […]
अमरनाथ पोद्दार
देवघर : देवघर (बाबा नगरी) विधानसभा सीट 1962 में एससी के लिए सुरक्षित घोषित हुई, तब जनसंघ के प्रत्याशी बालेश्वर दास ने कांग्रेस से यह सीट छीनी थी. इससे पहले 1952 में कांग्रेस के पं विनोदानंद झा को फॉरवर्ड ब्लॉक के भुवनेश्वर पांडेय उर्फ भूमि पांडेय ने हराया था. 1957 के चुनाव में कांग्रेस ने बाजी पलट दी और शैलबाला राय ने चुनाव जीता था.
इसके बाद देवघर सीट सुरक्षित हो गयी और 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ के बालेश्वर दास ने कांग्रेस उम्मीदवार बैजनाथ दास को 5500 वोट से हराया. फिर 1972 के चुनाव में बालेश्वर दास कांग्रेस के बैद्यनाथ दास से हार गये. कांग्रेस के विरोध में चल रही लहर की वजह से 1977 में जनता पार्टी की वीणा रानी दास चुनाव जीत गयी. 47 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद 2014 में भाजपा ने नारायण दास को टिकट दिया व नारायण दास ने राजद के सुरेश पासवान को 45,152 वोटों से पराजित किया था.
15 हजार रुपये खर्च किये थे बालेश्वर ने : पूर्व विधायक बालेश्वर दास कहते हैं कि पहले के चुनाव व आज के चुनाव में काफी फर्क हो गया. 50 वर्ष पहले चुनाव में पैसों का कोई महत्व नहीं था. उन्होंने अपने चुनाव में 15 हजार रुपये खर्च किये थे.
श्री दास ने कहा कि चुनावी खर्च जुटाने के लिए उन्होंने खुद टावर चौक पर कार्यकर्ताओं के साथ बूट पॉलिस कर पैसे जुटाये थे. बूट पॉलिस से हर दिन 20 रुपये आ जाते थे. लोग इस अभियान को देखते ही खुद चुनाव लड़ने के लिए खर्च दिया करते थे. महज एक जीप से पूरे विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर लोगों को उनकी समस्याओं के निवारण का वायदा करते थे.
अब तो है फंड और काम करने का अवसर भी
बालेश्वर दास ने कहा कि पहले विधायक फंड भी नहीं हुआ करता था. क्षेत्र में काम करना चुनौती होती थी. पटना से लड़ कर योजनाएं देवघर तक लाना बड़ी बात थी.
अब तो काम करने के काफी अवसर हैं. विधायक को सालाना तीन करोड़ का विधायक फंड मिलता है. इस पैसे से गांव से लेकर शहर तक गली व नालियों जैसी समस्याओं का निबटारा कर सकते हैं. जब तक जनता से जुड़कर नहीं रहियेगा तो जनता मौका नहीं देगी. नेता को सार्वजनिक जीवन में जनता से जुड़कर रहना होगा. जनता से जुड़कर रहना पहले भी मायने रखता था व आज भी मायने रखता है.
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