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बदलते झारखंड की तस्वीर : अपने हौसले से विकास की नयी इबारत गढ़ रहे ग्रामीण-युवा

झारखंड बदल रहा है. सरकार के प्रयास और अपने हौसले से ग्रामीण विकास को नयी इबारत गढ़ रहे हैं. इस काम में राज्य के युवा भी सक्रिय भागेदारी निभा रहे हैं. पहली दो स्टोरी में बदलते गांवों को झलक है, तो तीसरी स्टोरी रांची के दो युवाओं अनिरुद्ध शर्मा और आयुष बथवाल की है. दोनों […]

झारखंड बदल रहा है. सरकार के प्रयास और अपने हौसले से ग्रामीण विकास को नयी इबारत गढ़ रहे हैं. इस काम में राज्य के युवा भी सक्रिय भागेदारी निभा रहे हैं. पहली दो स्टोरी में बदलते गांवों को झलक है, तो तीसरी स्टोरी रांची के दो युवाओं अनिरुद्ध शर्मा और आयुष बथवाल की है. दोनों ने अपने अथक प्रयासों से ग्लोबल पहचान बनायी है.
इससे राज्य गौरवान्वित है. लातेहार के सुदूर सरयू क्षेत्र के बदल रहे माहौल में स्कूली बच्चों के हौसले की कहानी पर सुनील कुमार झा और पाकुड़ जिले में ग्रामीणों की जिजीविषा से पत्थर और मिट्टी से मात्र चार लाख में बना चेकडैम, जिससे 48 एकड़ टांड़ जमीन की हो रही सिंचाई, पर विवेक चंद्र की रिपोर्ट.
जन अदालत लगना बंद, अब स्कूल में बच्चे कर रहे हैं पढ़ाई
लातेहार के गारू प्रखंड स्थित राजकीयकृत मध्य विद्यालय सरयू कभी नक्सलियों अड्डा हुआ करता था. नक्सली खुलेआम विद्यालय कैंपस में जन अदालत लगाते थे. 2010 में विद्यालय संचालन के दौरान ही सुरक्षा बलों की नक्सलियों के साथ मुठभेड़ हो गयी थी. 2008 में विद्यालय में लैंड माइंस लगा दिया गया था. यह विद्यालय कुछ वर्ष पूर्व के नक्सलियों के केंद्र के रूप में जाना जाता था.
उस विद्यालय के बच्चे आज पठन-पाठन के साथ-साथ विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों में भी शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. विद्यालय के चार बच्चे जिला स्तर के चित्रांकन प्रतियोगिता में अव्वल रहे थे. बदलते समय के साथ स्थिति भी तेजी से बदली. राजकीयकृत मध्य विद्यालय पहले हाइस्कूल में और अब प्लस टू विद्यालय में उत्क्रमित हो चुका है.
अब बच्चों के बैठने के लिए कमरे कम पड़ रहे हैं. बच्चों की संख्या 650 तक पहुंच गयी है. इस वर्ष प्लस टू स्तर पर पहला बैच परीक्षा में शामिल हुआ था. 17 में से 16 बच्चे परीक्षा में पास हुए. मैट्रिक की परीक्षा में भी विद्यालय का रिजल्ट बेहतर हो रहा है.
नक्सल प्रभावित बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय : सरकार ने नक्सल प्रभावित सरयू क्षेत्र के बच्चों के लिए समर्थ विद्यालय के नाम से आवासीय विद्यालय खोला है.
यहां नक्सली घटना में प्रभावित बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था की गयी है. यहां कई ऐसे गांव के बच्चे पढ़ते हैं, जहां से कभी नक्सली बच्चों की मांग करते थे. समर्थ विद्यालय उत्क्रमित प्लस टू उच्च विद्यालय सरयू के कैंपस में चल रहा है. 100 सीट वाले विद्यालय में फिलहाल 64 बच्चे नामांकित हैं. कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई होती है. अभी अंशकालीन शिक्षक की नियुक्ति की गयी है. इसका संचालन केंद्र व राज्य सरकार मिलकर करते हैं. इसमें 60 फीसदी राशि केंद्र व 40 फीसदी राशि राज्य सरकार देती है.
कभी था नक्सलियों का अड्डा
अब डॉक्टर-इंजीनियर बनने का है सपना
समर्थ विद्यालय में पढ़ाई के साथ आवासीय व्यवस्था से बच्चे काफी खुश हैं. छात्र बबलू उरांव व अमोद उरांव ने कहा कि पढ़ाई में मन लगा रहा है. पूछे जाने पर बच्चों ने बताया कि वे डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक व पुलिस अफसर बनना चाहते हैं. वहीं उत्क्रमित प्लस टू उच्च विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर सिंह कहते हैं कि 2011 के बाद से स्थिति बदली है. 2016 में सड़क भी बन गयी. इस वर्ष शत-प्रतिशत सीट पर नामांकन करने का लक्ष्य रखा गया है.
लिट्टीपाड़ा में ग्रामीणों ने मिट्टी पत्थर से बना डाला चेकडैम
सरकार के सहयोग से बरमसिया (लिट्टीपाड़ा) की सूरजबेड़ा पंचायत में ग्रामीणों ने पत्थर और मिट्टी से चेकडैम बनाया है. बारिश में पहाड़ से आ रहे पानी को रोकने के लिए केवल चार लाख की लागत से 15 जगहों पर मिट्टी व पत्थर से चेकडैम बनाया गया. मनरेगा के तहत किये गये इस कार्य से लगभग 48 एकड़ (20 हेक्टेयर) जमीन की सिंचाई हो रही है.
कभी टांड़ कही जाने वाली इस जमीन पर अब रोपनी के बाद धान के पौधे लहलहा रहे हैं. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सीमेंट, लोहा और गिट्टी का इस्तेमाल कर बनाये जाने वाले चेकडैम की लागत औसतन 20 लाख रुपये तक होती है.
सिंचाई और अंडरग्राउंड वाटर की री-चार्जिंग साथ-साथ : लिट्टीपाड़ा के बीडीओ सत्यवीर रजक बताते हैं : पत्थर और मिट्टी पानी को जमीन के अंदर जाने से नहीं रोकते हैं. इससे खेतों की सिंचाई के साथ अंडरग्राउंड वाटर की री-चार्जिंग का काम भी हो रहा है. ग्रामीणों को उनके मन लायक काम के एवज में आमदनी भी हो रही है.
लाभुक हैं खुश : चेकडैम डैम से लाभुक बनी देवी पहाड़िन कहती है कि पहले पानी नहीं होने के कारण उनके खेतों में फसल नहीं लगायी जाती थी. चेकडैम बनने के बाद पहली बार खेतों में रोपनी की गयी है.
सोमरिया पहाड़िन बताती हैं कि सालों से गांवों में मिट्टी और पत्थर से चेकडैम बनाये जाते थे. लेकिन, इस बार सरकार ने मदद की है. गांव वालों को चेकडैम बनाने के लिए पत्थर दिया. साथ ही चेकडैम बनाने का काम करने वालों को मजदूरी भी दी है. चेकडैम से खेतों में पानी मिल रहा है. इस बार अच्छी फसल होगी.
48 एकड़ टांड़ में हो रही सिंचाई
ग्रामीणों की योजना और सरकार का पैसा
सूरजबेड़ा में पत्थर-मिट्टी से चेकडैम की योजना ग्रामीणों ने ही बनायी. ग्रामसभा में प्रस्ताव पर स्वीकृति के बाद योजना प्रखंड को भेजी गयी.
डीसी की अनुमति से मनरेगा के तहत चार लाख की स्वीकृति मिली. फिर गांव वालों ने चेकडैम बनाया. प्रखंड के कार्यक्रम पदाधिकारी टिंकल कुमार चौधरी कहते हैं कि सीएम के निर्देश पर ग्रामीणों से पूछ कर योजनाएं तैयार की जा रही हैं. इसका फायदा उन्हें मिल रहा है. सरकार कम लागत में बेहतर कार्य कर रही है.
दुनिया के टॉप-15 में अनिरुद्ध आयुष का वेब कॉफी रोस्टर्स
अभिषेक रॉय
रांची : लालपुर के अनिरुद्ध शर्मा और उनके बचपन के दोस्त आयुष बथवाल की थर्ड वेब कॉफी रोस्टर्स ने दुनिया की बेहतरीन 50 काॅफी शॉप में जगह बनायी है़ इंटरनेशनल सर्व एजेंसी बिग सेवन ट्रैवल ने इन्हें 15वां स्थान दिया है.
अनिरुद्ध ने बताया कि थर्ड वेब कॉफी रोस्टर्स की टीम ने तीन साल तक खूब मेहनत की. शुरुआत 2015 में बेंगलुरु के एक गैरेज से हुई थी. एक साल तक कॉफी की वेराइटी पर रिसर्च हुआ़ फिर इसे कॉफी पार्लर का रूप देने में सफल हुए. अनिरुद्ध कहते हैं कि यह सफलता हमारी दोस्ती और एक-दूसरे पर किये गये भरोसे की वजह से मिली है.
बचपन के दो दोस्तों ने बनायी योजना : अनिरुद्ध और आयुष दोनों बचपन के दोस्त हैं. दोनों ने 10वीं तक की पढ़ाई संत जेवियर्स स्कूल से की थी.
2007 में 10वीं पास करने के बाद आयुष बेंगलुरु चले गये. वहीं अनिरुद्ध ने डीएवी हेहल से 12वीं पास की और 2012 में संत जेवियर्स कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की़ 2015 में आइएसएम भुवनेश्वर से होटल मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की़ फिर बेंगलुरु चले गये. इधर आयुष इंजीनियरिंग करने शिकागो चले गये थे़ इसके बाद सैन डियागो की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली थी.
खोल चुके हैं नौ कॉफी पार्लर
गैरेज से चलकर कॉफी पार्लर जगह-जगह खुलने लगा. हाल ही में बेंगलुरु में अपना नौवां पार्लर खोला है. अनिरुद्ध बताते हैं कि पिता निरंजन शर्मा (न्यू राजस्थान कलेवालय) ने हमेशा आगे बढ़ने का हौसला दिया. इसके बाद दोनों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
2016 में खोली थी पहली शॉप
कुछ नया करने के लिए छोड़ दी नौकरी
बातों ही बातों में दोनों दोस्तों ने एक साथ कुछ नया करने का प्लान बनाया. कुछ समय बाद दोस्ती की महक आयुष को वापस इंडिया खींच लायी़ दोनों ने हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में कुछ बेहतर करने की योजना बनायी़ 2015 में काॅफी पार्लर के आइडिया के साथ सफर शुरू हुआ. दोनों कई रिसर्च किये और अलग-अलग वेराइटी का टेस्ट तैयार किया. रिसर्च के बाद दोनों दोस्तों ने सितंबर 2016 में थर्ड वेब कॉफी रोस्टर्स की शुुरुआत की.

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