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झारखंड से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियाें के लिए सरना धर्म कोड को लेकर हुए हैं आंदोलन
मनोज लकड़ा रांची : आदिवासियाें के लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक आंदोलन हुए हैं. अब तक इस मांग को तमाम सरकारों ने लगातार नजरअंदाज किया था. मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा सरना धर्म कोड के लिए केंद्र सरकार से की गयी अनुशंसा करने की घोषणा का ज्यादातर […]
मनोज लकड़ा
रांची : आदिवासियाें के लिए अलग धर्म कोड की मांग को लेकर राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक आंदोलन हुए हैं. अब तक इस मांग को तमाम सरकारों ने लगातार नजरअंदाज किया था.
मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा सरना धर्म कोड के लिए केंद्र सरकार से की गयी अनुशंसा करने की घोषणा का ज्यादातर सरना संगठनों ने स्वागत किया है़ वहीं, कुछ ने इसे चुनावी जुमला भी करार दिया है़ उधर, कार्डिनल पी तेलोस्फोर टोप्पो पूर्व में सरना अलग धर्मकोड लागू करने की बात को सही ठहरा चुके हैं.
आदिवासियों को अलग पहचान मिलेगी : आदिवासी सरना महासभा के मुख्य संयोजक पूर्व मंत्री देवकुमार धान ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सरना धर्म कोड के लिए अनुशंसा करने से आदिवासियों को अलग पहचान मिलेगी़ अलग धर्म कोड नहीं होने से जनगणना के समय काफी संख्या में आदिवासियों को हिंदू, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन की श्रेणी में डाल दिया जाता है़ उनकी सही जनगणना नहीं हो पाती है.
इससे आदिवासी धर्म की अलग पहचान को भी खतरा पैदा हो गया है़ उनकी विशिष्ट पहचान को सुरक्षित रखने के लिए धर्म कोड जरूरी है़ 2011 की जनगणना में अन्य धर्म में दर्ज देश के 79 लाख लोगों में अधिकांश आदिवासी ही थे़
मुख्यमंत्री की घोषणा सिर्फ चुनावी जुमला है : वहीं, कुछ अलग रुख रखते हुए अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के उपाध्यक्ष मुकेश बिरुवा सरना कोड के लिए केंद्र से अनुशंसा की बात मुख्यमंत्री रघुवर दास का सिर्फ चुनावी जुमला है़
उन्होंने कहा कि जहां तक कोड की बात है, तो जनगणना नियमावली में जनगणना आयुक्त के पद में यह शक्ति दी गयी है कि वह प्रकाशन की सुविधा के लिए आवश्यक कदम उठाये. इसी शक्ति का इस्तेमाल कर अब तक सरकारों ने हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन व बौद्ध के लिए कोड 1, 2, 3, 4, 5, व 6 आवंटित कर दिया है़ वस्तुत: इस प्रकाशन कोड के लिए न लोकसभा और न विधानसभा की जरूरत है़ सरकार की केवल मामूली इच्छाशक्ति से कोड नंबर 7 सरना को आवंटित किया जा सकता है़
1871 में अंग्रेजों ने किया था एब्रोजिनल शब्द का प्रयोग :भारत में पहली जनगणना 1871 में हुई थी जिसमें आदिवासियों के लिए एक विदेशी शब्द एब्रोजिनल का प्रयोग किया गया था़ 1881 की जनगणना में एब्रोजिनल को धार्मिक श्रेणी हिंदू से बिल्कुल अलग रखा गया था और यह उस समय देश की तीसरी बड़ी आबादी थी़ 1891, 1901 व 1911 तक इस धर्म काे एनिमिस्ट कहा गया़ 1921 व 1931 की जनगणना में ट्राइबल रिलीजन कहा गया़ वहीं, अंग्रेजों ने 1941 की अंतिम जनगणना में इसके लिए कम्युनिटी शब्द का इस्तेमाल किया़
1901 की सेंसस रिपोर्ट में आदिवासी धर्म का उल्लेख करते हुए पृष्ठ संख्या 314, 315, 316, 317 व 409 में सरना शब्द का अनेक बार उल्लेख हुआ़ 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में आदिवासियों की संख्या 10,42,81,034 है, जो देश की कुल जनसंख्या का 8.6% है़ यदि पूर्वोत्तर भारत को छोड़ दिया जाये, तो भारत में आदिवासियों का मुख्य धर्म हिंदू के रूप में ही अंकित है़
सेंसस रिपोर्ट 2011 के अनुसार भारत में अन्य धर्म व विश्वास के तहत धर्मों की संख्या 83 है़ अन्य धर्म में विश्वास रखनेवालों की संख्या 79,37,734 है, जिसमें सबसे अधिक जनसंख्या सरना लिखने वालों की है, जिनकी जनसंख्या 49,57,467 है़ यह संख्या जैन धर्म माननेवालों 44 लाख से कहीं ज्यादा है़
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