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रांची : रिम्स और सदर अस्पताल में आग लगी, तो सैकड़ों जानों को बचाना हो जायेगा मुश्किल

टेंडर के फेर में फंसे हैं शहर के सरकारी अस्पताल, अब तक नहीं हुआ एजेंसी का चयन रांची : राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में मरीजों की सुरक्षा फायर सिलिंडर के भरोसे ही है. क्योंकि रिम्स प्रबंधन अब तक फायर फाइटिंग का एनओसी हासिल नहीं कर पाया है. अस्पताल प्रबंधन फायर फाइटिंग के […]

टेंडर के फेर में फंसे हैं शहर के सरकारी अस्पताल, अब तक नहीं हुआ एजेंसी का चयन
रांची : राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में मरीजों की सुरक्षा फायर सिलिंडर के भरोसे ही है. क्योंकि रिम्स प्रबंधन अब तक फायर फाइटिंग का एनओसी हासिल नहीं कर पाया है. अस्पताल प्रबंधन फायर फाइटिंग के लिए एजेंसी के चयन के लिए चार बार टेंडर भी निकाल चुका है, लेकिन अब तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है. यही हाल रांची सदर अस्पताल का भी है.
रिम्स के महत्वपूर्ण वार्डों, इमरजेंसी, आइसीयू, शिशु विभाग सहित अन्य विभागों में दीवारों पर फायर सिलिंडर ही दिखायी दिये है. रिम्स में फिलहाल 475 फायर सिलिंडर हैं, जिनकी वैधता 24 जनवरी 2019 को समाप्त हो जायेगी.
इधर, रिम्स प्रबंधन का कहना है कि फायर फायटिंग की एजेंसी के चयन के लिए पांचवीं बार निविदा निकाली गयी है. इसमें सिंगल टेंडर हुआ है. एजेंसी के चयन की फाइल स्वास्थ्य मंत्री को भेजी गयी थी, जिस पर उन्होंने अनुमति देदी है. लेकिन, अब तक एजेंसी का चयन नहीं हुआ है.
सदर अस्पताल में नहीं है समुचित व्यवस्था
सदर अस्पताल में भी फायर सिलिंडर ही लगाये गये हैं. यहां भी निविदा निकालने की प्रक्रिया चल रही है. फायर फाइटिंग के लिए अग्निशमन विभाग की टीम ने निरीक्षण भी किया है, लेकिन समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण एनआेसी नहीं मिल पाया है. एनओसी मिलने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन को फायर फाइटिंग की व्यवस्था करने में करीब छह माह तक का समय लग जायेगा.
शहर में सिर्फ पांच निजी अस्पतालों के पास है एनओसी
राजधानी में छोटे-बड़े करीब 120 से अस्पताल व क्लिनिक हैं. लेकिन, इनमें से सिर्फ पांच बड़े अस्पतालों के पास ही फायर फाइटिंग का एनओसी है. इनमें राज अस्पताल, सेंटेवीटा, आॅर्किड, मां रामप्यारी आॅर्थो हॉस्पिटल, कश्यप मेमोरियल अाइ हॉस्पिटल व मेडिका अस्पताल शामिल हैं.
रिम्स इमरजेंसी में लगी थी आग
रिम्स के इमरजेंसी वार्ड में शॉर्ट सर्किट के कारण अगलगी की घटना हो चुकी है. आग को फायर सिलिंडर से बुझाने का प्रयास किया गया था, लेकिन वह नाकाफी साबित हुई थी. जैसे-तैसे मरीजों को वार्ड से बाहर निकाला गया था. गनीमत रही कि इस हादसे में किसी की जान नहीं गयी थी. वहीं शिशु विभाग, फिजियोथेरेपी विभाग, हॉस्टल, नर्सिंग हॉस्टल सहित कई जगहों अगलगी की घटनाएं हो चुकी हैं.
फायर फाइटिंग की व्यवस्था तो व्यवस्थित होनी चाहिए. एक-एक कर सभी मुद्दों पर बैठक कर जानकारी ले रहा हूं. दो-तीन दिन में फायर फाइटिंग के मुद्दे पर भी बैठक करूंगा. उम्मीद है यह समस्या जल्द दूर होगी.
डॉ डीके सिंह, निदेशक, रिम्स
फायर फाइटिंग का इंतजाम भवन निर्माण करनेवाली एजेंसी को करना है. लेकिन, एजेंसी की ओर से फायर सिलिंडर दिये गये हैं. हमने अपनी तरफ से भी इंतजाम किये हैं, लेकिन अब तक एनओसी नहीं मिला है.
डॉ वीवी प्रसाद, सिविल सर्जन
अग्निशमन विभाग की मदद से फायर फाइटिंग को दुरुस्त करेगी एजेंसी
निविदा के माध्यम से चयनित एजेंसी रिम्स परिसर में फायर फाइटिंग व्यवस्था को दुरुस्त करेगी. परिसर में जो पाइप लाइन बिछायी गयी है, एजेंसी उसकी जांच कर उसे चालू करेगी. वहीं, अग्निशमन विभाग के साथ मिलकर कहां-कहां गैस व पानी के प्वाइंट लगाने हैं, इसको सुनिश्चित करायेगी.

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