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एग्री-फूड समिट : वैज्ञानिक खेती से ही आयेगी 28 लाख किसानों की समृद्धि, कृषि, पशुपालन व सहकारिता में काफी संभावना
जरूरत ठोस प्लानिंग की कृषि, पशुपालन एवं उससे जुड़े अन्य सेक्टर में भी झारखंड उम्मीदों वाला राज्य है. यहां के करीब 28 लाख किसानों की समृद्धि इन्हीं चीजों से आ सकती है.हालांकि, धरतीपुत्रों को खेती के साथ-साथ पशुपालन और उससे जुड़े सेक्टर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ खेती करने की जरूरत है, तभी खेत की […]
जरूरत ठोस प्लानिंग की
कृषि, पशुपालन एवं उससे जुड़े अन्य सेक्टर में भी झारखंड उम्मीदों वाला राज्य है. यहां के करीब 28 लाख किसानों की समृद्धि इन्हीं चीजों से आ सकती है.हालांकि, धरतीपुत्रों को खेती के साथ-साथ पशुपालन और उससे जुड़े सेक्टर में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ खेती करने की जरूरत है, तभी खेत की कमाई पॉकेट में नजर आयेगी.
इन्हीं उद्देश्यों को लेकर राज्य सरकार ने दो दिनी ग्लोबल एग्रीकल्चर एंड फूड समिट का आयोजन किया है. इसमें झारखंड में कृषि के क्षेत्र में निवेश और किसानों को प्रोत्साहित करने की संभावनाओं पर मंथन किया जायेगा. समिट में शामिल होने के लिए देश-विदेश के प्रतिनिधि भी अायेंगे. कई कंपनियों के कृषि उत्पादों का प्रदर्शन किया जायेगा.
इसके साथ ही लाइव डेमोस्ट्रेशन भी होगा. दूसरे राज्य और विदेशों के निवेशक संभावना तलाशेंगे. इसमें झारखंड सरकार सहभागी होगी. झारखंड, कृषि और एलायड सेक्टर में कहां खड़ा है, इसे जानने के लिए प्रभात खबर की टीम ने एक प्रयास किया है.
चुनौती : राज्य में कुल 79.71 लाख हेक्टेयर भूमि है. इसमें से 38 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. वहीं, अगर सिंचित भूमि की बात करें, तो मात्र 8.24 लाख हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है. कृषि योग्य भूमि में से 25.75 लाख हेक्टेयर भूमि यानी 32.30 फीसदी ही खेती लायक है. शेष करीब 13 लाख हेक्टेयर भूमि आज भी परती है. पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण केवल धान का ही उत्पादन हो पाता है.
क्या है संभावना : नयी टेक्नोलॉजी के साथ खेतों में सिंचाई की सुविधा बढ़ाने की दिशा में प्रयास हो सकते हैं. किसान पूरे साल खेती कर सकें, इसके लिए बेहतर प्रयास की जरूरत है. किसानों को समय पर अच्छे बीज और खाद मिले, यह भी जरूरी है. बंजर भूमि में खेती की संभावना तलाशी जा सकती है.
दलहन के उत्पादन के लिए यहां का मौसम अनुकूल
चुनौती : राज्य में दलहन उत्पादन के लिए मौसम अनुकूल है. यह कैश क्रॉप है. इससे किसान कम जमीन पर ज्यादा पैसा कमा सकते हैं. दलहन उत्पादन में विकास दर अच्छा होने के कारण एक बार भारत सरकार ने कृषि कर्मण पुरस्कार भी दिया है. चना, सरसों, मसूर और तीसी की खेती करने से किसानों को काफी फायदा हो सकता है. राज्य में वर्ष 2016-17 में दलहन का उत्पादन 53 फीसदी बढ़ कर 8.07 लाख टन हुआ, जबकि वर्ष 2015-16 में 5.27 लाख टन था.
क्या है संभावना : दलहन फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए पलामू प्रमंडल वाले एरिया पर फोकस करना होगा. वहां करीब-करीब हर साल पानी के अभाव में खरीफ की फसल नहीं हो पाती है. वहां पानी की व्यवस्था कर रबी की खेती कराने से किसानों को आय होगी. अभी भी बड़ी मात्रा में दाल और तेलहन दूसरे राज्यों से मंगाये जा रहे हैं.
क्षेत्र विशेष में हो सकता है फलों का उत्पादन
चुनौती : झारखंड में सभी फलों की खेती नहीं हो सकती है. किसानों में भी फलों की खेती के प्रति जागरूकता नहीं है. उनको इससे होने वाली कमाई का जरिया बता कर भरोसे में लिया जा सकता है.
इसके लिए किसानों को जागरूक करना होगा. बागवानी मिशन के काम में लगी संस्थाओं को मजबूत करना होगा.क्या है संभावना : झारखंड राज्य बागवानी मिशन ने आम को मुख्य फसल के रूप में लिया है. आम का कुल क्षेत्रफल 57,474 हेक्टेयर है. इसके अलावा झारखंड में लीची बिहार से पहले पकती है. इससे किसानों को आय अधिक होती है. कुल 5555 हेक्टेयर में लीची का पौधारोपण होता है. काजू की खेती पूर्वी सिंहभूम जिले के अलावा पश्चिम सिंहभूम एवं सरायकेला में हो रही है. लातेहार में तैयार होनेवाले नाशपाती की मांग दूसरे राज्यों में अधिक है.
दूध के करोड़ों रुपये आज भी जा रहे हैं बाहर
चुनौती: यहां के जानवरों की नस्ल अच्छी नहीं है. इस कारण राज्य में दूध का उत्पादन भी कम होता है. अच्छा दूध उत्पादन करने के लिए जानवरों के नस्ल सुधार कार्यक्रम करने होंगे. इसके लिए प्रयास करने की जरूरत है. इसके अतिरिक्त मिल्क रूट विकसित करने की जरूरत है. साथ ही साथ किसानों में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है.
क्या है संभावना : झारखंड में दूध उत्पादन की संभावना अब दिखने लगी है. करीब 1.20 लाख लीटर दूध का उत्पादन प्रतिदिन हो रहा है. इसकी खपत भी हो जा रही है. इस काम में मिल्क फेड लगा हुआ है. मेधा की मांग दिनों-दिन बढ़ रही है. कई जिलों में और मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट खोले जाने के काम हो रहे हैं. इसके बावजूद आज भी यहां बिहार से दूध आ रहा है. ऐसे में स्थानीय स्तर पर दूध का उत्पादन बढ़ाने से बड़ी राशि झारखंड में रोकी जा सकती है.
अच्छे बीज की उपलब्धता
चुनौती : राज्य सरकार उत्पादन बढ़ाने का प्रयास तो कर रही है. लेकिन, अपना बीज नहीं होने के कारण एक बड़ी राशि दूसरे राज्यों को देनी पड़ रही है. इसके लिए बीज ग्राम बनाकर खुद बीज उत्पादन की पहल की जा रही है. पहले से गठित 516 बीज ग्राम के अतिरिक्त 539 यानी कुल 1055 बीज ग्राम का गठन हुआ है. इससे तीन लाख क्विंटल धान बीज का उत्पादन हुआ है. इस प्रयास को आगे बढ़ाने से किसानों को अपनी जमीन का धान मिल पायेगा.
क्या है संभावना: राज्य में बीज ग्रामों का संचालन तो हो रहा है, लेकिन इसके सर्टिफिकेशन को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. इस कारण बीजों की गुणवत्ता को लेकर हमेशा सवाल उठते रहते हैं. इसके लिए इंटरप्रेन्योरशिप में बीज उत्पादन का प्रयास किया जा सकता है. बीज उत्पादन करनेवाले किसानों और एजेंसियों को बढ़ावा दिया जा सकता है. इसके लिए बेहतर तकनीक के साथ प्रयास किये जा सकते हैं.
सब्जी उत्पादन बेहतर, पर नहीं मिलती कीमत
चुनौती : सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में राज्य आत्मनिर्भर है. यहां करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर में 3700 मीट्रिक टन सब्जी का उत्पादन होता है. मटर उत्पादन में राज्य पूरे देश में तीसरे स्थान पर है, जबकि टमाटर उत्पादन में छठे स्थान पर. राज्य से करीब 40 से 50 फीसदी सब्जियों का निर्यात होता है.
यहां की सब्जियां पश्चिम बंगाल के कोलकाता, ओड़िशा के भुवनेश्वर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी समेत अन्य राज्यों में जाती हैं. इसके बावजूद सीजन में किसानों को अपने टमाटर और अन्य कई सब्जियां को सड़कों पर फेंकना पड़ता है. कभी-कभी तो लागत भी नहीं मिलती है.
क्या है संभावना : राज्य में सब्जी उत्पादन की संभावना को देखते हुए सफल ने बेड़ो में प्रोसेसिंग प्लांट लगाया है. यहां कटहल का प्रोसेसिंग भी किया जा रहा है. यहां के कटहल की मांग दिल्ली जैसे महानगरों में बहुत अधिक है.
इस क्षेत्र में निवेश की काफी संभावना है. लेकिन इसके लिए सरकार की ओर से किये गये प्रयास का नतीजा नहीं निकल पा रहा है. सब्जियों के प्रोसेसिंग प्लांट लग जाने से किसानों को उत्पाद की कीमत सालों भर मिल पायेगी. इसका फायदा यह होगा कि वह और उत्पादन के लिए प्रेरित होंगे.
जैविक खेती पर फोकस कर रहा है राज्य
चुनौती : राज्य में 11 हजार हेक्टेयर भूमि में जैविक खेती किये जाने का सरकार दावा कर रही है. इससे करीब 15,138 किसान जुड़े हैं. राज्य में जैविक खेती का कुल उत्पादन 2.395 मीट्रिक टन है. वर्ष 2025 तक झारखंड को जैविक राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
राज्य में करीब 14 जिलों में जैविक खेती की जा रही है. रांची, गुमला, पाकुड़, लोहरदगा, पूर्वी सिंहभूम, लातेहार, सरायकेला-खरसावां, दुमका, हजारीबाग, देवघर, धनबाद, गिरिडीह व बोकारो में जैविक खेती करायी जा रही है. पत्ता गोभी, मटर, फूलगोभी, टमाटर, फ्रेंचबीन, शिमला, मिर्च, बेबीकॉर्न, ब्रोकली व भिंडी की जैविक खेती के प्रयास हो रहे हैं.
क्या है संभावना : राज्य में जैविक खेती की काफी संभावना है. लेकिन, इसके संचालन के लिए बनायी गयी संस्था कमजोर है. यह सतत प्रक्रिया है.
इसके लिए ठोस योजना बनाकर मिशन मोड में काम करने की जरूरत है. किसानों को जैविक उत्पाद तैयार करने से पहले उनको आमदनी में होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी, इस बारे में बताना होगा. क्योंकि इसके उत्पादन तैयार होने में कुछ साल लगेंगे. इसको प्रमोशन देने के लिए बाहरी एजेंसियों के सहयोग से काम हो सकते हैं.
कृषि में सिंगल विंडो सेंटर वाला पहला राज्य
चुनौती: झारखंड कृषि के क्षेत्र में सिंगल विंडो सेंटर लागू करनेवाला देश का पहला राज्य है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में 100 स्वीकृत सिंगल विंडो सेंटर में से 78 कार्यशील हैं, वहीं वित्तीय वर्ष 2017-18 में स्वीकृत 100 सिंगल विंडो सेंटर का भी कार्य शुरू हो चुका है. लेकिन, इसके नतीजे बहुत अच्छे नहीं है. यहां किसानों को हर तरह की सुविधा दी जानी है. तकनीकी रूप से दक्ष कर्मियों की कमी के कारण किसानों को जितना फायदा होना चाहिए था, नहीं हो पा रहा है.
क्या है संभावना: कृषि के सिंगल विंडो सेंटर का संचालन प्रोफेशनल तरीके से करने के लिए योजना बननी चाहिए. इससे किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा दिलाने का प्रयास होना चाहिए. यह विभाग का ब्रांड बन सकता है. यहां किसानों को हर स्कीम की जानकारी मिल सकती है. किसानों को तकनीकी सुविधा मिल सकती है. हर समस्या का समाधान का प्रयास हो सकता है. इससे किसानों को घर बैठे ही जानकारी भी मिल सकती है.
बेहतरीन हैं यहां के फूल कमी प्रोफेशनल होने की
चुनौती : राज्य में फूलों की खेती के लिए बेहतर माहौल है. वर्तमान में राज्य के 1.6 हजार हेक्टेयर में फूलों की खेती हो रही है. यहां पांच तरह के फूल गुलाब, गेंदा, जरबेरा, ग्लेडियोलस व रजनीगंधा की खेती पर विशेष जोर दी जाती है. रजनीगंधा व ग्लेडियोलस फूलों की खेती को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दूर की जा सकती है. राजधानी रांची क्षेत्र में गुलाब उत्पादन की काफी संभावना है. यही कारण है कि यहां के फूलों की सुंदरता एवं खुशबू न्यूजीलैंड के गुलाब से की जाती है.
क्या है संभावना : फूलों की खेती पर लागत बहुत आती है. इसमें रिस्क भी काफी है. इस कारण किसान यहां पैसा नहीं लगाते हैं. इसके लिए बाजार भी शहरों में है. किसानों को प्रोफेशनल लोगों के साथ जोड़ कर फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है. कुछ जिलों में प्रयास हो रहे हैं. इसके नतीजे भी ठीक मिल रहे हैं, लेकिन इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है.
ऑन फॉर्म पावर उपलब्धता में राष्ट्रीय औसत से पीछे
चुनौती : झारखंड में छोटे-छोटे खेत हैं. इस कारण यहां बड़ी-बड़ी मशीनों का उपयोग बहुत प्रभावी नहीं है. यहां के किसान भी समृद्ध नहीं हैं. इस कारण यहां के किसानों की आर्थिक क्षमता के हिसाब से उपकरण का निर्माण करना होगा.
क्या है संभावना : झारखंड ऑन फॉर्म पावर उपलब्धता (खेती में श्रम शक्ति) में भी राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है. ऑन फॉर्म पावर उपलब्धता 1.84 किलोवाटर प्रति हेक्टेयर है. इसकी तुलना में झारखंड में करीब 1.21 किलोवाट प्रति हेक्टेयर ही उपलब्ध है. इसका मतलब यह है कि यहां की खेतों में मशीनों का उपयोग कम हो रहा है. इसके लिए झारखंड में नये-नये कृषि उपकरणों की जरूरत है. इसकी कीमत कम होनी चाहिए.
अंडा व मीट की उपलब्धता काफी कम
चुनौती : झारखंड के लोगों में पशुपालन के प्रति रुचि काफी है. लेकिन इसको कभी व्यावसायिक दृष्टिकोण से नहीं किया गया है. इसको व्यावसायिक रूप देने के लिए बड़े उद्यमियों को कांट्रेक्ट फार्मिंग के माध्यम से मीट और अंडा उत्पादन के लिए प्रोत्साहन देना जरूरी है.
क्या है संभावना : झारखंड के लोगों में नन वेज खाने की प्रवृति अधिक है. इसके बावजूद यहां के लोगों को अंडा और मीट नहीं मिल रहा है. मीट उपलब्धता की राष्ट्रीय औसत 15.3 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति है. वहीं, झारखंड की राष्ट्रीय उपलब्धता मात्र पांच ग्राम ही है. यही स्थिति अंडे के साथ भी है. यहां एक व्यक्ति को साल में 15 अंडे ही मिलते हैं. इसकी तुलना में राष्ट्रीय औसत 66 अंडे की है.
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