शत-प्रतिशत लोगों को नहीं मिलता रोजगार, भुगतान में विलंब भी बड़ा कारण
रांची : ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल मजदूरों को 100 दिन रोजगार गारंटी देने की महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में झारखंड के मजदूरों की रुचि नहीं है. दिनों-दिन इनकी रुचि योजना से घटती जा रही है. मनरेगा में काम करने के बजाय मजदूर बाहर जाकर काम करना ज्यादा पसंद करते हैं.
हजारों लोग यहां से पलायन करके दिल्ली, पंजाब, कोलकाता, हैदराबाद जाकर काम करते हैं, जबकि मनरेगा का मूल मकसद था कि पलायन रुके और मजदूरों को राज्य में ही काम मिले. राज्यपाल डॉ सैयद अहमद ने भी इस पर गंभीर चिंता जतायी है कि मनरेगा जैसी योजना के होते भी पलायन बदस्तूर जारी है.
घटता गया रुझान
मजदूरों का रुझान कम होता जा रहा है, यह राज्य सरकार के आंकड़ो ंसे ही स्पष्ट हो जाता है. जहां वर्ष 2008-09 में 33.76 लाख लोगों को मनरेगा के तहत जॉब कार्ड मिला था, वहीं मात्र 15.86 लाख लोगों को ही मनरेगा के तहत काम मिला. वर्ष 2012-13 में जॉब कार्ड 40.58 लाख लोगों को मिला, पर काम केवल 14.32 लाख लोगों को ही मिला. इसमें भी सौ दिन केवल 86 हजार लोगों को काम मिला है. जबकि अधिनियम के तहत सौ दिन रोजगार की गारंटी दी जाती है.
बजट राशि भी कम हुई
मनरेगा के तहत बजटीय राशि भी हर साल कम की जा रही है. वर्ष 2008-09 में जहां मनरेगा के तहत 2610 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, वहीं यह घट कर वर्ष 2013-14 में 1509 करोड़ पर आ गयी है. जानकार बताते हैं कि योजना पूरी नहीं होती. मजदूरों का रुझान नहीं है, जिसकी वजह से राशि घटानी पड़ रही है.
40} योजना भी पूरी नहीं
मनेरगा के तहत ज्यादतर जल छाजन से संबंधित योजनाएं ली जाती हैं. कुआं खोदने, तालाब खोदने आदि की योजना शामिल की जाती है, जो मैन्यूल होता है. झारखंड की भूमि कठोर व पथरीली है, जिसकी वजह से मजदूर इस काम को करना कम ही पसंद करते हैं. दूसरी ओर जो भी योजना ली जाती है, उसके पूरा होने की दर काफी कम है. 40 फीसदी योजना भी पूरी नहीं हो पाती. इसे अगले वित्तीय वर्ष के लिए जोड़ दिया जाता है.
क्या है वजह
झारखंड सरकार की रिपोर्ट के अनुसार मजदूरों के कम रुझान की कई वजहें हैं. इसमें मनरेगा के प्रति जागरूकता की कमी, कठोर मैन्यूल काम को भी कारण माना गया है. पोस्ट ऑफिस से खाते में सीधे भुगतान भी एक वजह है.
मजदूरों को तुरंत पैसे की जरूरत होती है. खाते के कारण उन्हें देर से भुगतान होता है. आधार नंबर के जरिये घर-घर जाकर भुगतान की व्यवस्था कुछ स्थानों में शुरू की गयी है, पर राज्य भर में बैंकों का विस्तार न होने से यह योजना अब तक सफल नहीं हो सकी है. सरकार एक कारण मजदूरी दर को भी मानती है.
मनरेगा के मजदूरों को प्रतिदिन 138 रुपये की दर से भुगतान होता है, जबकि राज्य में न्यूनतम मजदूरी दर 160 रुपये प्रतिदिन है. यानी मनरेगा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती. यही वजह है मजदूर जितनी तेजी से जॉब कार्ड बनवाते हैं, उतनी ही तेजी से काम शुरू होने पर उसे छोड़ भी देते हैं. एक और कारण है कि समय पर काम की मांग और काम के आवंटन का निबंधन हो पाता.
– सुनील चौधरी –