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ग्राउंड रिपोर्ट : विकास से वंचित गांवों में हो रही पत्थलगड़ी, पर कहीं कोई बैरिकेडिंग नहीं
झारखंड में खूंटी-अड़की के इलाके में पत्थलगड़ी को लेकर नया विवाद चल रहा है. घनघोर जंगल में बसे गांवों में बाहरी लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाये जाने की बात कही जा रही है. प्रभात खबर की टीम ने शुक्रवार को अड़की के दुरूह जंगल में बसे एक दर्जन गांवों का दौरा किया.इन विवादों की […]
झारखंड में खूंटी-अड़की के इलाके में पत्थलगड़ी को लेकर नया विवाद चल रहा है. घनघोर जंगल में बसे गांवों में बाहरी लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगाये जाने की बात कही जा रही है. प्रभात खबर की टीम ने शुक्रवार को अड़की के दुरूह जंगल में बसे एक दर्जन गांवों का दौरा किया.इन विवादों की जमीनी हकीकत और पत्थलगड़ी के सामाजिक दायरे को समझने का प्रयास किया. अड़की के मुश्किल पठारों और जंगलों में बसे गांवों तक पहुंचने के लिए 80 किलाेमीटर का सफर किया. गांवों के आक्रोश और जंगल से बाहर आ रही सूचनाओं के तथ्यों को परखा. इस दाैरे से एक चीज ताे साफ है कि इन गांवाें में नाराजगी है, पर किसी की आवाजाही पर राेक नहीं.न कहीं काेई बैरिकेडिंग. इन इलाकों के लोग आजादी के 70 वर्ष के बाद भी विकास को तरस रहे हैं. स्कूल, सड़क, पानी, अस्पताल व अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए लड़ रहे हैं. विकास की लंबी लड़ाई लड़ते-लड़ते इन इलाकों के लोगों के बीच सरकार के प्रति अविश्वास और असंतोष ताे है, पर स्थिति खतरनाक नहीं है. विकास के जरिये इसे अब भी सुधारा जा सकता है.
रांची : अड़की प्रखंड की बोंडा पंचायत का कुरूंगा गांव. इस गांव में घुसनेवाले रास्ते पर स्व रमेश सिंह मुंडा द्वारा सड़क की योजना के शिलान्यास से संबंधित शिलापट्ट लगा है. इस पर 2004 की तिथि अंकित है.
पर योजना 14 साल में भी पूरी नहीं हुई. इस कारण आक्रोशित लोगों ने इस शिलापट्ट को तोड़ दिया है. गांव के आक्रोश को समझने के लिए टूटा शिलापट्ट काफी है. बात इससे भी समझ में ना आये, तो गांव के बाहर की गयी पत्थलगड़ी में उकरे शब्द काफी हद तक सब कुछ साफ कर देते हैं. विकास के नाम पर दगा-फरेब और हक की लड़ाई के लिए पूरा इलाका सुलग रहा है़
इन इलाकों में ग्रामसभा ने प्रभुत्व कायम किया है. मुखिया से लेकर दूसरे प्रतिनिधि बिना ग्रामसभा की अनुमति के योजना नहीं ले सकते. नयी योजना लेने पर भी पाबंदी है. मुखिया हाे या सरपंच, सरकार की योजना को जबरन गांव में लागू नहीं कर सकते. अड़की के कई गांवों के प्रवेश स्थल पर ही पत्थलगड़ी कर दी गयी है. कई गांवों में इसकी तैयारी है. इसके लिए बड़े-बड़े शिलापट्ट तराशे जा रहे हैं.
प्रभात खबर की टीम खूंटी- अड़की के रास्ते जंगल में घुसी, तो गम्हरिया, हुडवन, कोरबा, तोडंवा हाेते हुए बीरबांकी तक पहुंची़ इस रास्ते किसी गांव में बैरिकेडिंग नहीं थी. आने-जाने में कोई कठिनाई नहीं थी.
करीब 80 किलाेमीटर के सफर में न किसी ने कहीं राेका… न पूछताछ की. हां… इलाके से गुजरनेवालों पर गांव के लोग नजर जरूर रख रहे थे. कुरूंगा के रास्ते टीम घनघोर जंगल से होकर मुरहू पहुंची. रास्ते में मुचिड़, हडदलामां, कंडेर आदि कई गांव मिले. इन गांवाें में भी पत्थलगड़ी की तैयारी थी. गांव वालों का कहना था कि यहां आने-जाने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन हम ग्रामसभा की बातें सुनेंगे.
समय पर नहीं पहुंच पाती योजनाएं : अड़की ब्लॉक में पड़ताल करने पर पता चला कि पत्थलगड़ी के विवाद से प्रभावित बोंडा पंचायत में करीब 400 लोग विभिन्न पेंशन योजना का लाभ ले रहे हैं. योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए कर्मचारियों को इनके घर तक पहुंचना पड़ता है. इलाका दुरूह होने के कारण समय पर योजनाएं नहीं पहुंच पाती है़ं
ग्रामसभा ने खुद उठाया है विकास का बेड़ा, कायम किया है प्रभुत्व, गांवों में किसी के आने-जाने पर रोक नहीं, पर रखी जाती है नजर
किसी के आने-जाने पर राेक नहीं है बस लोग पूछताछ करते हैं : मुखिया
कुरूंगा गांव की मुखिया गीता समद से बीरबांकी चौक पर मुलाकात हुई. गीता ने बताया कि गांव में किसी के आने-जाने पर रोक नहीं है. हां, अपरिचित या नये लोग दिखते हैं, तो गांव के लोग पूछताछ करते हैं.
गांव में अभी भी विकास की किरण नहीं पहुंची है. लोग चाहते हैं कि गांव में भी विकास हो. अभी भी गांव के लोग पेयजल के लिए कुरूंगा नदी के पानी पर ही निर्भर हैं. गर्मी में काफी दिक्कत होती है. स्कूल है, पर आठवीं तक की ही पढ़ाई होती है. आगे की पढ़ाई के लिए खूंटी जाना पड़ता है. ममता वाहन का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
अगर कोई बीमार पड़ जाये, तो अड़की या खूंटी के स्वास्थ्य केंद्र में जाना पड़ता है. गांव तक पहुंचने का रास्ता जर्जर है. ज्यादा वाहन भी नहीं चलते. ऐसे में काफी परेशानी होती है. गीता ने कहा कि ग्राम सभा की बैठक में लोगों की सहमति से ही किसी मामले में निर्णय किया जाता है. यहां पर मुखिया या किसी व्यक्ति विशेष का जोर नहीं चलता.
गांव में सड़क, बिजली, पानी नहीं चप्पे-चप्पे पर नशे में डूबी गरीबी
अड़की के जंगल के बसे गांवाें में विकास कोसो दूर है. अड़की से बीरबांकी तक जर्जर सड़क है. इसके बाद कुरूंगा तक जाने के लिए मिट्टी की सड़क. इलाके के लगभग सभी गांवों की यही दुर्दशा है. बिजली, पानी, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं इन गांवों में नहीं है. चप्पे-चप्पे में गरीबी और दिन-दोपहर नशे में डूबे लोग. इन गांवों में स्वास्थ्य कर्मी हो या फिर सरकार की योजनाओं को लागू करनेवाली एजेंसियां, कोई नहीं पहुंचती. गांव के लोगों को मालूम ही नहीं है कि बाहर की दुनिया में क्या चल रहा है़
योजनाएं नहीं ले रहे हैं गांव के लोग
ग्रामसभा का फरमान है कि नयी योजना नहीं लेंगे. प्रधानमंत्री आवास योजना लेने की मनाही है. विकास की योजनाआें पर ग्रामसभा सहमत होगी, तो ली जायेगी. एक गांव में एक मुखिया ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष में गरीबों के लिए 22 मकान की स्वीकृति हुई थी, लेकिन इस वर्ष एक भी नये मकान का आवेदन नहीं आया.
पांच अक्तूबर 2017 को ग्रामसभा उलीडीह के नाम से की गयी पत्थलगड़ी में है ये लिखा
1. भारत का संविधान अनुच्छेद 13(3)(क) के तहत रूढ़ी या प्रथा ही विधि का बल है, यानी संविधान की शक्ति है.
2. अनुच्छेद 19(5) के तहत पांचवीं अनुसूचित जिलों या क्षेत्रों में कोई भी बाहरी गैर रूढ़ी प्रथा व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से भ्रमण करना, निवास करना, बस जाना, घूमना-फिरना वर्जित करता है.
3. भारत का संविधान के अनुच्छेद 19(6)के तहत कोई भी बाहरी व्यक्तियों को पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में व्यवसाय, कारोबार व रोजगार पर प्रतिबंध है.
4. पांचवीं अनुसूचित जिलों या क्षेत्रों में भारत का संविधान अनुच्छेद 244(1) भाग(ख) पारा(1) के तहत संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है.
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