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धर्मनिरपेक्षता का अनुपालन आसान नहीं : सिस्टर बसंती

सेमिनार l सेक्यूलर राजनीतिक पार्टियां भी आरोपों से बच नहीं सकतीं रांची : फोरम ऑफ रिलीजियस फॉर जस्टिस एंड पीस का तीन दिवसीय द्विवार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन शनिवार को झरना स्प्रिचुएलिटी सेंटर, नामकुम में शुरू हुआ़ ‘देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर अायोजित इस सेमिनार में मुख्य वक्ता, सिस्टर बसंती लकड़ा ने कहा […]

सेमिनार l सेक्यूलर राजनीतिक पार्टियां भी आरोपों से बच नहीं सकतीं

रांची : फोरम ऑफ रिलीजियस फॉर जस्टिस एंड पीस का तीन दिवसीय द्विवार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन शनिवार को झरना स्प्रिचुएलिटी सेंटर, नामकुम में शुरू हुआ़ ‘देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर अायोजित इस सेमिनार में मुख्य वक्ता, सिस्टर बसंती लकड़ा ने कहा कि सेक्यूलरवाद का अर्थ राज्य द्वारा सभी धर्म के प्रति समानता का व्यवहार है़ सेक्यूलरवाद एक अच्छा सिद्धांत है, पर इसका अनुपालन आसान नहीं है. विभिन्न धर्म के कट्टरवादी तत्व अक्सर समाज के अशिक्षित या अर्द्ध शिक्षित तबकों की धार्मिक भावनाओं को उभारते हैं. सेक्यूलर राजनीतिक पार्टियां भी आरोपों से बच नहीं सकतीं.
राजनीति में भी ऐसे तत्वों की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता़ चुनाव के समय अक्सर देखा जाता है कि कई पार्टियां सेक्यूलरवाद का आदर्श भूल कर वोटरों को धर्म के नाम पर वोट करने को प्रेरित करती हैं. यह अज्ञानता से नहीं, बल्कि फायदे और सुविधा के लिए होता है़ धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में विश्वास रखनेवालों की जिम्मेवारी है कि उनका समर्थन करें, जो सही मायने में सेक्यूलरवादी हैं. इस अवसर पर फादर स्टैन स्वाम, प्रभाकर तिर्की, सिस्टर लिंडा मेरी वॉन, सिस्टर मंजू कुलापुरम ने भी विचार रखे़ सेमिनार में विभिन्न राज्यों के 70 से अधिक प्रतिभागी शामिल हैं.
कई परंपराओं को मिला कर बना है भारतीय समाज
‘धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां’ विषयक तीन दिवसीय द्विवार्षिक राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू
सिस्टर बसंती ने कहा कि हमें स्वीकार करने की जरूरत है कि सेक्यूलरवाद की शुरुआत हर व्यक्ति के हृदय से होती है़ देश का सम्मिलित इतिहास रहा है. इसलिए किसी के प्रति ‘गैर’ की भावना नहीं होनी चाहिए़ भारतीय समाज कई परंपराओं से बना है़ सूफी व भक्ति मार्ग के संतों ने एक-दूसरे के प्रति सांस्कृतिक स्वीकार्यता लायी है़ चर्च द्वारा उसके विभिन्न कार्यों के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में सहयोग को नकारा नहीं जा सकता़ क्या हमें इन बातों को व्यर्थ करते हुए उनकी बातें सुननी चाहिए, जिन्हें सिर्फ अपने राजनैतिक कैरियर की चिंता है?
संस्कृति व धर्म को चतुराई से राष्ट्रवाद से जोड़ने का रास्ता
उन्होंने कहा कि 70 के दशक के अंत व 80 के दशक की शुरुआत से सांप्रदायिकता ने धर्मनिरपेक्षता पर तीखे हमले शुरू कर दिये़ आज सर्वाधिक खतरा उन ताकतों से है, जो मुख्यधारा के बहुमत के प्रतिनिधित्व का दावा करती हैं. वैश्वीकरण के प्रति लोगों की इस आशंका ने कि इससे उनकी संस्कृति नष्ट हो सकती है़, उन्हें पारंपरिक हिंदू पहचान की ओर उन्मुख किया़ इससे संस्कृति व धर्म को चतुराई से राष्ट्रवाद से जोड़ने का रास्ता भी खुला़

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