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झारखंड : कंपनी के खर्च पर बनते हैं डेंटल इंप्लांट के एक्सपर्ट, मरीजों से पैकेज में वसूलते हैं पैसे

II राजीव पांडेय II रांची : राजधानी के ही दांत के एक डॉक्टर ने प्रभात खबर के संवाददाता को बताया कि इंप्लांट बनानेवाली कंपनियां ही डॉक्टर को एक्सपर्ट बनाती है. एक डॉक्टर को इंप्लांट संबंधी कोर्स कराने में कंपनी को एक से 1.50 लाख तक खर्च करना पड़ता है. इसमें डॉक्टर को बताया जाता है […]

II राजीव पांडेय II
रांची : राजधानी के ही दांत के एक डॉक्टर ने प्रभात खबर के संवाददाता को बताया कि इंप्लांट बनानेवाली कंपनियां ही डॉक्टर को एक्सपर्ट बनाती है. एक डॉक्टर को इंप्लांट संबंधी कोर्स कराने में कंपनी को एक से 1.50 लाख तक खर्च करना पड़ता है. इसमें डॉक्टर को बताया जाता है कि कंपनी के इंप्लांट को कैसे लगाना है. क्या सावधानी बरतनी है. प्रशिक्षण के बाद डॉक्टर साहब उस कंपनी के बंध जाते हैं. वह उसी कंपनी का किट खरीदते हैं. कंपनी उनको अपना इंप्लांट लगाने के लिए दे देती है. कंपनी से ज्यादा इंप्लांट खरीदने पर डॉक्टर को पांच से 10 बोनस इंप्लांट मिलता है, जो मुफ्त होता है.
इधर, डॉक्टर साहब मरीज से इंप्लांट का खर्च पैकेज में वसूलते हैं. पैकेज में एक इंप्लांट का खर्च 35,000 बता दिया जाता है, लेकिन मरीज को यह नहीं बताया जाता है कि दांत लगाने में किस-किस उपकरण का प्रयोग जा रहा है. उपकरण का क्या खर्च है. एक प्रक्रिया का क्या चार्ज आता है. कोई डॉक्टर इंप्लांट कराने में होनेवाले खर्च का बिल नहीं देता है. अगर मरीज बिल की डिमांड करता है, तो उसे सादे कागज में अलग-अलग खर्च बता दिया जाता है. ज्यादा दबाव बनाने पर इंप्लांट का बार कोड सादे कागज के बिल में चिपका दिया जाता है.
राजधानी में नहीं है इंप्लांट का कोई स्टॉकिस्ट
राजधानी में इंप्लांट बनानेवाली कंपनियों का कोई स्टॉकिस्ट नहीं है. कंपनियों के प्रतिनिधि सीधे डॉक्टर से संपर्क करते हैं. उनके साथ बैठकर पैसों का डील करते हैं. जैसे नोबेल कंपनी की कीमत 15 से 20,000 है, तो डॉक्टर को यह 10,000 से 12,000 रुपये में मिल जाता है. अगर ऑस्टम के इंप्लांट की कीमत 15,000 रुपये का है डॉक्टर को यह 8,000 से 9,000 रुपये में मिल जाता है.
डेंटल इंप्लांट के ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट में अाने के बाद पूरा रिकाॅर्ड क्लिनिक संचालक को रखना होगा. इंप्लांट की खरीदारी और मरीजों को जारी किये गये बिल को रखना होगा. औषधि निदेशालय द्वारा मांगे जाने पर उसे प्रस्तुत करना होगा.
सुरेंद्र प्रसाद, संयुक्त निदेशक औषधि
दोहरा मुनाफा कमा रहे दांत के डाॅक्टर
‘नमक लगे न फिटकिरी और रंग भी चोखा’ की तर्ज पर दांत के डॉक्टर दोहरा मुनाफा कमा रहे हैं. इंप्लांट बनाने वाली कंपनियां अपने खर्च पर प्रशिक्षण देकर दांत के डॉक्टरों को इंप्लांट का एक्सपर्ट बनाती हैं. शर्त यह हाेती है कि डॉक्टर साहब संबंधित कंपनी के इंप्लांट का ही उपयोग करेंगे. इसके बाद कंपनी की ओर से डॉक्टरों को सस्ती दरों पर इंप्लांट उपलब्ध कराया जाता है. लेकिन, दांत के डॉक्टर मरीजों से इसके लिए मरीजों से पैकेज में पैसे वसूलते हैं, जिसका बिल तक मरीजों को नहीं दिया जाता है.
इसलिए नहीं देते हैं बिल
राजधानी के एक डेंटिस्ट ने बताया कि बिल देने पर मरीज को पूरी जानकारी देनी होगी. इंप्लांट किस कंपनी का है, उसका बैच नंबर क्या है, इंप्लांट की पूरी प्रक्रिया का क्या चार्ज है. इसके लिए कर्मचारी रखना होगा, जिसको वेतन में खर्च आयेगा. वहीं, डॉक्टरों का मुनाफा भी मारा जायेगा. इन सब झंझटों से बचने के लिए डॉक्टर बिल ही नहीं देते हैं.
ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट में आने पर रिकाॅर्ड जरूरी
ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के डिवाइस रूल में आने के बाद दांत के डॉक्टरों को इंप्लांट के खरीदारी का पूरा रिकाॅर्ड रखना है. इसके साथ-साथ मरीज को जारी किये गये बिल की एक कॉपी रखनी है. औषधि निरीक्षक जब चाहे इंप्लांट की गुणवत्ता की जांच के लिए इंप्लांट का नमूना ले सकते हैं.

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