रांची : प्रदेश के 24 में से 18 जिलों में अफीम की खेती का कारोबार होता है. वर्ष 2012 से अब तक कुल 1919.5 एकड़ में लगी अफीम और पोस्ता की फसल को नष्ट किया गया है. बावजूद इसके अफीम की खेती बदस्तूर जारी है. इस पर लगाम लगाने के लिए सीआइडी ने तैयारी शुरू कर दी है. इसके मद्देनजर अफीम प्रभावित 18 जिलों के सीआइडी इंस्पेक्टरों के साथ सीआइडी आइजी दिसंबर में बैठक करेंगे.
पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्रालय के नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने भी अफीम और पोस्ता की अवैध खेती के मामले में केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के एक्शन प्लान को झारखंड में लागू करने की जरूरत बतायी थी. यह भी कहा था कि अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए कारगर कार्रवाई किये जाने की जरूरत है. इससे हेरोइन और ड्रग तैयार होता है. इसके कारोबार में ड्रग तस्कर, फाइनांसर आदि शामिल हैं. यह सुरक्षा के लिए खतरनाक है.
उल्लेखनीय है कि हजारीबाग, लातेहार, चतरा, चाईबासा, गिरिडीह, खूंटी, रांची, जामताड़ा, लोहरदगा, पाकुड़, गुमला, गढ़वा, सिमडेगा, साहिबगंज, देवघर, गोड्डा, दुमका और पलामू में अफीम की खेती होने की बात सामने आयी है.
किसी के पास अफीम की खेती का लाइसेंस नहीं
झारखंड पुलिस के वरीय अधिकारी बताते हैं कि अफीम की खेती के लिए नारकोटक्सि ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस रूल्स-1985 के नियम 8 के तहत लाइसेंस लेना होता है, लेकिन यहां किसी के पास लाइसेंस नहीं हैं.
नक्सलियों का आर्थिक तंत्र होता है मजबूत
अफीम के कारोबार में नक्सली संगठनों की भूमिका अहम है. इन्हीं के जरिये ड्रग तस्कर और फाइनांसर किसानों तक अपनी पैठ बनाते हैं. फायदे का बड़ा हिस्सा नक्सलियों को मिलता है. यही नक्सलियों के आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान करता है. मिले पैसे से नक्सली हथियार और विस्फोटक खरीदते हैं.
अफीम का दाना, छिलका हर चीज बिक जाता है
जानकार बताते हैं कि एक एकड़ जमीन में 40 किलोग्राम अफीम की पैदावार होती है. स्थानीय बाजार में 25 हजार रुपये किलो बिकती है, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक लाख रुपये तक इसकी कीमत होती है. अफीम के फल से निकलने वाला पोस्ता दाना बाजार में एक हजार रुपये किलोग्राम, फल का छिलका भी 500 से 700 रुपये प्रति किलो बिक जाता है. यूपी और कोलकाता की मंडियों तक अफीम पहुंचायी जाती है. वहां से माल चेन्नई और बांग्लादेश जाता है. पुलिस के अनुसार बनारस और गोरखपुर के व्यापारी इससे अधिक जुड़े हैं.
गृह मंत्रालय का क्या है निर्देश
- हर जिले में उस स्थान की मैपिंग करनी है, जहां अफीम और पोस्ता की खेती होती है. गांव और थाना क्षेत्र का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए
- जिला लेवल कमेटी के अधिकारी प्रखंड और थाना लेवल पर मामले में बैठक कर रणनीति बनायें
- अफीम की खेती से होनेवाले नुकसान को लेकर जागरूकता अभियान चलाना जरूरी
- एफएम रेडियो, एसएमएस, टीवी, सिनेमा आदि के जरिये लोगों को जागरूक करना
- ग्राम पंचायतों में एनडीपीएस एक्ट के संबंध में स्थानीय भाषा में एडवाइजरी जारी करना
- कानून में प्रावधान किया गया है कि ग्राम पंचायत सदस्यों और पदाधिकारियों को अफीम की खेती के संबंध में ग्रामीणों को जानकारी देनी है
- अफीम की खेती वाले इलाकों में स्वयं सहायता समूह गठित कर वहां के लोगों को रोजगार मुहैया करायी जाये ताकि वे अफीम की खेती न करें
- स्थानीय पुलिस, वन विभाग और एक्साइज के अधिकारी सूचना एकत्र कर अफीम की खेती को शुरुआत में ही नष्ट करें
- प्रखंड के कृषि पदाधिकारी स्थानीय किसानों को यह जानकारी दें कि अफीम की खेती करना प्रतिबंधित है.
- अफीम की खेती के मामले में जिनके खिलाफ मामला दर्ज है, वैसे केस का अनुसंधान तेज कर कार्रवाई की जाये
- अफीम की खेती में लगे ग्रुप और स्थानों की सेटेलाइट मैपिंग की जाये
- वैसे फाइनांसर जो किसानों को अफीम की खेती के लिए पैसा मुहैया कराते हैं और फिर उनकी फसल खरीदते हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई करना
किस वर्ष कितनी फसलों को किया गया नष्ट
2012-13 : 274 एकड़
2013-14 : 158 एकड़
2014-15 : 527.5 एकड़
2015-16 : 474 एकड़
2016-17 : 436 एकड़