Advertisement
झारखंड : एक हजार में 10 सबर की हर साल मौत, पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क ने जारी की सर्वे रिपोर्ट
रांची : आदिम जनजाति सबर की स्थिति बदहाल है. इस जनजाति के लोगों में सर्वाधिक कुपोषण है. बीमार होने पर भी इनकी पहुंच डॉक्टरों तक नहीं के बराबर है. स्थिति यह है कि एक हजार में सबर जनजाति के 10 लोगों की प्रतिवर्ष मौत हो रही है. इनकी आबादी ही 8117 है. पब्लिक हेल्थ रिसोर्स […]
रांची : आदिम जनजाति सबर की स्थिति बदहाल है. इस जनजाति के लोगों में सर्वाधिक कुपोषण है. बीमार होने पर भी इनकी पहुंच डॉक्टरों तक नहीं के बराबर है. स्थिति यह है कि एक हजार में सबर जनजाति के 10 लोगों की प्रतिवर्ष मौत हो रही है.
इनकी आबादी ही 8117 है. पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क (पीएचआरएन) की ओर से कराये गये शोध में इसका खुलासा हुआ है. पीएचआरएन ने शुक्रवार को नामकुम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (आइपीएच) में अपनी आरंभिक रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट में कहा गया है कि शून्य से पांच वर्ष के सबर समुदाय के 68 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं. जबकि इस मामले में झारखंड का औसत 47.80 प्रतिशत है. सर्वे के अनुसार, इस समुदाय के 56 प्रतिशत बच्चों में नाटापन की समस्या है, जो क्रोनिक हंगर के कारण होती है. 42 प्रतिशत बच्चों में दुबलापन(वेस्टिंग) है, यानी इन्हें अचानक खाना मिलना बंद हो जाता है.
झोलाछाप डाॅक्टरों पर निर्भर : रिपोर्ट में कहा गया है कि सबर जनजाति के अधिकतर लोग टीबी और मलेरिया के शिकार हैं. प्रति हजार में 131 लोग किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं. गांव के 80 प्रतिशत लोग निजी चिकित्सक या झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराते हैं. पांच प्रतिशत ओझा के पास जाते हैं और 16 प्रतिशत लोग सरकारी अस्पताल में इलाज कराते हैं. सर्वे पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड के 284 सबर परिवारों के बीच किया गया.
बॉडी मास इंडेक्स भी कम : पीएचआरएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 से 49 वर्ष की 78 प्रतिशत महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमएस) 18.5 से नीचे है. ऐसे पुरुषों का प्रतिशत 74 है. वहीं, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4(एनएफएचएस) के अनुसार, झारखंड में 32 प्रतिशत महिला और 24 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं, जिनका बीएमएस कम है. बताया गया कि उचित पोषण न मिलने के कारण ऐसा होता है. सबर की महिलाएं अभाव की वजह से केवल चावल खाती हैं.
कैसे हुआ सर्वे : सबर समुदाय के स्वास्थ्य और पोषण के अलावा उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिति व उनकी परंपरागत व्यवहारों को भी समझने का प्रयास किया गया.
कार्यक्रम में ये भी थे मौजूद : अच्युता मेनन सेंटर फॉर हेल्थ साइंस स्टडीज त्रिवेंद्रम की फैकल्टी प्रो सुंदरी रविंद्रण, झारखंड राज्य फूड कमीशन के सदस्य हलधर महतो, डॉ रंजना कुमारी, पीएचआरएन की डॉ वंदना प्रसाद, गणपति मुरूगन, डॉ सुरंजीन प्रसाद, सुलक्ष्णा, शंपा राव, राजेश श्रीवास्तव, जन चेतना मंच की डॉ लिंडसे बारनेस, एकजुट की निर्मला नायर, राईट टू फूड से बलराम, स्वास्थ्य निदेशक डॉ सुमंत मिश्रा, डॉ पी बास्की, अकाई मिंज, डॉ विष्णु राजगढ़िया तथा अन्य लोगों ने उपस्थित थे. पीएचआरएन की दीपिका और स्मृति ने शोध के निष्कर्ष के बाबत प्रेजेंटेशन दिया.
डुमरिया प्रखंड में सबरों की स्थिति : सर्वे पूर्वी सिंहभूम जिले के डुमरिया प्रखंड के 284 सबर परिवारों के बीच किया गया. इसमें बताया गया कि 67 परिवार के पास कच्चा मकान है. 17 परिवार पेड़ के नीचे रहते हैं. छह के पास पक्का मकान है और अन्य झोपड़ी या पत्तों के बने मकानों में रहते हैं.
14 परिवार के पास मोबाइल है. 44 लोगों के पास साइकिल है और केवल एक व्यक्ति के पास टू व्हीलर वाहन है.स्वास्थ्य केंद्र इनकी बस्ती से काफी दूर है, जहां जाने के लिए इन्हें 5-10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. यातायात का कोई भी साधन नहीं है. अगर किसी प्रकार ये स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंच भी जायें, तो भाषा के अभाव में चिकित्सक या नर्स इनकी कोई भी सेवा नहीं कर पाते हैं.
अधिकतर लोगों का राशन कार्ड नहीं है, जिस कारण ज्यादातर समय इन्हें भूखे ही रहना पड़ता है. 284 घरों में से सिर्फ एक घर में शौचालय बना है. सभी परिवार पीने के पानी के लिए कुएं पर निर्भर हैं. पूरे समुदाय को मिला कर सिर्फ एक हैंड पंप है, जो कई वर्षों से खराब पड़ा हुआ है.
झारखंड में सबर समुदाय की कुल आबादी 8117 है
डुमरिया प्रखंड में सबरों की स्थिति पर िकया गया सर्वे
सबर जनजाति के अधिकतर लोग टीबी और मलेरिया के शिकार
प्रति हजार में 131 लोग बीमार
डॉक्टर के पास नहीं पहुंच पाते सबर जाति के लोग
झोलाछाप डाॅक्टरों पर निर्भर
बॉडी मास इंडेक्स भी कम
68 प्रतिशत बच्चे हैं कुपोषित
भाषा नहीं समझ पाते, इससे समस्या
पीएचआरएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि सबर समुदाय से एक भी सहिया, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता नहीं है, जिस कारण सरकारी सेवाओं तक उनकी पहुंच नहीं हो पा रही है. सरकारी सेवाओं में ज्यादातर लोग बाहर से हैं, जो इन जनजातियों की भाषा नहीं समझ पाते हैं. सबर समुदाय के लोग भी अपनी समस्याओं के बारे में उन्हें नहीं समझा पाते हैं. इस कारण उनलोगों की सरकारी सेवाओं से दूरी बढ़ गयी है.
कौन है सबर : सबर समुदाय झारखंड के सबसे पुरानी व विशेष संरक्षित जनजातियों में से एक है. इनकी संख्या अन्य जनजातियों की अपेक्षा बहुत ही कम है. आज भी इनका जीवन पहाड़ों और जंगलों के बीच में गुजरता है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement