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रांची के बजरंगी भाईजान ने बच्ची को मां-बाप से मिलाया

रांची: वर्ष 2015 में आयी फिल्म बजरंगी भाईजान की याद है आपको? फिल्म में बजरंगी (सलमान खान) एक छोटी बच्ची मुन्नी को उसके घर पाकिस्तान छोड़ने जाते हैं. अब आपको मिलाते हैं रांची के बजरंगी भाईजान यानी राजा (राउंड टेबल के राष्ट्रीय अध्यक्ष) से. इन्होंने दिल्ली में गत पांच वर्षों से रह रही एक आदिवासी […]

रांची: वर्ष 2015 में आयी फिल्म बजरंगी भाईजान की याद है आपको? फिल्म में बजरंगी (सलमान खान) एक छोटी बच्ची मुन्नी को उसके घर पाकिस्तान छोड़ने जाते हैं. अब आपको मिलाते हैं रांची के बजरंगी भाईजान यानी राजा (राउंड टेबल के राष्ट्रीय अध्यक्ष) से. इन्होंने दिल्ली में गत पांच वर्षों से रह रही एक आदिवासी बच्ची बहुमनी बरजो को उसके घर तास्ता गांव (पश्चिमी सिंहभूम) तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया और उसे पहुंचा भी दिया.

पर यह सब इतना आसान नहीं था.बच्ची को हिंदी नहीं आती थी और वह जो भाषा बोलती थी, उसे राजा नहीं समझते थे. बच्ची को अपने गांव, जिला, थाना के नाम का पता भी नहीं था. पिछले दिनों राजा को उनके दिल्ली में रहनेवाले मित्र अमित खुराना का फोन आया.

अमित ने बताया कि उनके घर पर कुछ दिनों से एक लड़की काम कर रही हैै. वह अपने घर को याद कर रोती रहती है. राजा ने कहा कि आप उसे रांची भेज दें, मैं उसे घर भेजने की कोशिश करूंगा. सात सितंबर की सुबह बहुमनी रांची पहुंची. जब राजा ने उससे बात करने की कोशिश की, तो भाषा की समस्या आयी. वह हिंदी के सिर्फ कुछ शब्द जानती थी और उसकी भाषा कोई समझ नहीं पा रहा था. बच्ची को अपने गांव का भी नाम याद नहीं था.

राजा ने उसी दिन अपने ड्राइवर और स्टाफ दिनेश मुंडा को बच्ची के साथ दिल्ली से आये लोगों के साथ अपनी कार से खूंटी और आसपास के क्षेत्रों में भेजा. खूंटी-मुरहू के क्षेत्रों में दिन भर घूमने के बाद भी बच्ची के गांव का पता नहीं चला.

मुरहू के पास एक वृद्ध से बात करने पर उसने बताया कि यह लड़की जो भाषा बोल रही है, वह यहां से 40-50 किलोमीटर दूर के इलाके में पहाड़ के पास बोला जाता है.

शाम को सभी रांची लौटे. एक बार लगा कि बिना किसी क्लू (सुराग) के लड़की को उसके घर पहुंचाना संभव नहीं है. इसलिए उसे वापस दिल्ली भेज दें. इसके बाद एडीजी अनुराग गुप्ता को फोन किया और उनसे इस मसले पर सलाह मांगी. उन्होंने कहा कि पुलिस जितना हो सके, इस मसले पर मदद करेगी.

बाजार में वृद्ध ने बच्ची को पहचाना
आठ सितंबर को बच्ची को साथ लेकर थोड़ा और आगे बढ़ते हुए बंदगांव, चक्रधरपुर के इलाके में गये. सुदूर ग्रामीण इलाके में भटकने के दौरान एक बाजार दिखा. बच्ची को वह थोड़ा जाना-पहचाना लगा, पर वह बाजार उसके गांव का नहीं था. बाजार में एक आदमी ने बताया कि थोड़ा और आगे ऐसा बाजार लगता है, वहां से कुछ और जानकारी मिल सकती है.

जब वह बच्ची को लेकर दूसरे बाजार में गये तो वहां एक वृद्ध व्यक्ति मिला, जो बच्ची को जानता था. बच्ची को सोनुवा थाना में रखा गया. अगले दिन सुबह बच्ची के माता-पिता थाना पहुंचे. अपनी मां पंडरी बरजो और पिता सोमरा बरजो को देखते ही बहुमनी की आंखों से आंसू आ गये. मां-बाप की आंखें भी छलक आयी. वे लोग पांच साल बाद अपनी बच्ची को देख रहे थे. उसे दलाल सब्जबाग दिखा दिल्ली ले गये थे. राजा बताते हैं कि बच्ची को दो दिन भटकने के बाद तीसरे दिन उसके घर पहुंचा पाया. इस दौरान 300-350 किलोमीटर तक भटकना पड़ा. आखिरकार उसे अपना घर मिल गया.

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