रांची : कोई विकल्प नहीं बचने पर ही निजी जमीन पर बिना नक्शा के बने मकानों को तोड़ने का कोर्ट आदेश दे सकता हैं. लोग ऋण लेकर आैर मेहनत से पैसे जुगाड़ कर किसी तरह रहने के लिए घर बनाते हैं. प्रावधान के तहत पहले जुर्माना लेकर मकान को नियमित किया जाना चाहिए. जुर्माना नहीं देने जैसी खराब स्थिति होने पर ही निजी जमीन पर बने आवासीय मकानों को तोड़ने जैसी कार्रवाई होनी चाहिए.
पहले अॉफिसर की नाैकरी जायेगी, तब मकान टूटेंगे. अंतिम स्थिति में ही मकान टूट सकते हैं. एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने गुरुवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त माैखिक टिप्पणी की.
ललगुटवा में बने मकानों को तोड़ने के आदेश को चुनाैती देनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि मकान बनने के बाद ही आरआरडीए के अॉफिसर पहुंचते हैं. तब उन्हें ज्ञान होता है कि मकान तो बिना नक्शा के बनाया गया है. नोटिस थमाते हैं आैर तोड़ने का आदेश जारी कर देते हैं. कोर्ट ऐसा नहीं करेगी. जुर्माना लेकर नियमित करें. खंडपीठ ने मामले को मध्यस्थता से सुलझाने का निर्देश दिया. झारखंड स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (झालसा) के पास मामले को भेजते हुए नाै अगस्त को दोनों पक्षों के अधिवक्ता व आरआरडीए के अॉफिसर को उपस्थित होने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई छह नवंबर को होगी.
जुर्माना देने को तैयार है प्रार्थी : इससे पूर्व प्रार्थी की अोर से वरीय अधिवक्ता आरएस मजूमदार ने पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि वह जुर्माना देने को तैयार है. नक्शा व शुल्क आरआरडीए में पहले ही जमा किया जा चुका है. वर्ष 2008 से आरआरडीए के मकान तोड़ने संबंधी आदेश पर हाइकोर्ट ने रोक लगा रखी है. आरआरडीए की अोर से अधिवक्ता प्रशांत कुमार सिंह ने पक्ष रखा. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी सुरेंद्र कुमार सिंह ने याचिका दायर कर आरआरडीए के आदेश को चुनाैती दी है.