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सीताडीह को चाहिए पानी, सड़क, रोजगार

रांची : रांची-पुरुलिया मार्ग पर रांची से 45 किमी दूर बसा है सीताडीह गांव. गांव में कुल सात टोले (लोहार टोली, बेल टोली, वन टोली, गंझू टोली, सरवईन, हाराहंगा व बांस बेड़ा) हैं. यहां की अाबादी करीब सात सौ है. वहीं यहां कई समस्याएं भी हैं, जिसे अब सरकारी व गैर सरकारी प्रयास से दूर […]

रांची : रांची-पुरुलिया मार्ग पर रांची से 45 किमी दूर बसा है सीताडीह गांव. गांव में कुल सात टोले (लोहार टोली, बेल टोली, वन टोली, गंझू टोली, सरवईन, हाराहंगा व बांस बेड़ा) हैं. यहां की अाबादी करीब सात सौ है. वहीं यहां कई समस्याएं भी हैं, जिसे अब सरकारी व गैर सरकारी प्रयास से दूर किया जायेगा. गांव को प्रभात खबर द्वारा गोद लेने का मकसद भी यही है.
पानी यहां की बड़ी समस्या है. इस गांव के टोले रांची-मुरी सेक्शन के अप व डाउन रेल लाइन के साथ-साथ दोनों अोर स्थित पहाड़ी के बीच बसे हैं. प्रकृति की यह सुंदरता बदकिस्मती से पानी की समस्या का कारण भी है. बारिश का पानी यहां ठहरता नहीं.नदी-नालों में समा कर दूर निकल जाता है. सीताडीह, बेल टोली के ग्रामीण सालों भर चुअां का पानी पीते हैं. गांव से गुजरने वाली नदी के किनारे गड्ढा बना कर पानी निकाला जाता है.
गांव की कलामनी व अालममनी ने बताया कि चुआं का पानी पीने से हम गांव के लोग खासकर बच्चे अक्सर बीमार हो जाते हैं. दरअसल सीताडीह के सभी टोलों में पेयजल के साथ-साथ सिंचाई के पानी की भी समस्या है.यहां दूसरी बड़ी मांग रोजगार की है. खेती-बारी पर आश्रित न होना यहां की मजबूरी है. इसलिए गांव के युवा व मर्द काम की तलाश में रांची व सिल्ली-मुरी से लेकर पुणे व बेंगलुरु तक पलायन को मजबूर हैं. खेती तथा रोजी-रोजगार के लिए हो रहा संघर्ष शराब के सेवन से प्रभावित हो रहा है. कम से कम इस समस्या का समाधान जन जागरूकता के भरोसे ही हो सकता है. प्रभात खबर इसके लिए अलग से प्रयास करेगा. गांव के लोग इसमें सहयोग करेंगे.
यहां की सड़कें काफी जर्जर हैं. बेला टोली की पीसीसी सड़क अब मरम्मत की मांग कर रही है. गंझू टोली में तो सड़क है ही नहीं. पानी, सड़क व रोजगार से इतर यहां के ग्रामीणों ने पेंशन की मांग की. वृद्धा व विकलांगता पेंशन की मांग सीताडीह में अाम है. 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले सुुकुवा लोहार व इन जैसे 50 से अधिक वृद्धों को वृद्धा पेंशन नहीं मिल रही. पैर से लाचार 23 वर्षीय सामेन लोहार को विकलांगता पेंशन नहीं मिल रही.
दरअसल सामेन को यह बताने वाला कोई नहीं है कि इसके लिए विकलांगता प्रमाण पत्र की जरूरत होती है. समस्याओं से घिरे सीताडीह में सिर्फ निराशा ही नहीं है. विसर्जन बेदिया व मनोज कुमार बेदिया जैसे युवा उम्मीद भी जगाते हैं. विसर्जन अपनी करीब एक एकड़ जमीन पर वन विभाग के लिए नर्सरी चलाते हैं. जमीन का किराया तीन हजार रुपये प्रति माह तथा नर्सरी में पौधे तैयार करने तथा इसकी देखभाल के लिए 224 रुपये प्रति दिन की कमाई है.
उधर, पारा टीचर मनोज को खुशी है कि वह अपने ही गांव के बच्चों को पढ़ा रहा है. राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय सीताडीह के बच्चे स्कूल की प्रभारी प्राचार्या शीला रानी सुवर्णों व मनोज सहित अन्य शिक्षकों के मार्गदर्शन में शिक्षित हो रहे हैं. सबको उम्मीद है कि सीताडीह अब इसी रास्ते आगे बढ़ेगा.

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