रिम्स के हड्डी विभाग में मरीजों का समय पर इलाज नहीं होने की मुख्य वजह है फैकल्टी की कमी. पर्याप्त डॉक्टर हों, तो के मरीजों का इलाज हफ्ते-दो हफ्ते में कर के छुट्टी दी जा सकती है. फिलहाल विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसरों के पांच-छह पद हैं, लेकिन इस पद पर एक भी डॉक्टर नहीं है. हाल ही में सभी असिस्टेंट प्रोफेसर एसोसिएट प्रोफेसर बन गये हैं. वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर किसी की नियुक्त नहीं हुई है.
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अॉपरेशन होते हैं पांच, भरती हो जाते हैं 25 से ज्यादा
रांची : रिम्स के हड्डी विभाग में मरीजों को छोटी सर्जरी के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ता है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार यहां प्रतिदिन पांच मरीजों की सर्जरी होती है, जबकि ओपीडी में 20 से 25 मरीज भरती हो जाते हैं. स्थित यह है कि 95 मरीजों की क्षमता वाले हड्डी विभाग […]
रांची : रिम्स के हड्डी विभाग में मरीजों को छोटी सर्जरी के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ता है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार यहां प्रतिदिन पांच मरीजों की सर्जरी होती है, जबकि ओपीडी में 20 से 25 मरीज भरती हो जाते हैं. स्थित यह है कि 95 मरीजों की क्षमता वाले हड्डी विभाग में 200 से ज्यादा मरीज भरती हैं. मजबूरन मरीजों को फर्श पर लिटा कर इलाज करना पड़ता है.
रिम्स के हड्डी विभाग में मरीजों का समय पर इलाज नहीं होने की मुख्य वजह है फैकल्टी की कमी. पर्याप्त डॉक्टर हों, तो के मरीजों का इलाज हफ्ते-दो हफ्ते में कर के छुट्टी दी जा सकती है. फिलहाल विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसरों के पांच-छह पद हैं, लेकिन इस पद पर एक भी डॉक्टर नहीं है. हाल ही में सभी असिस्टेंट प्रोफेसर एसोसिएट प्रोफेसर बन गये हैं. वहीं असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर किसी की नियुक्त नहीं हुई है.
सर्जरी में देरी होने की मुख्य वजह एक यूनिट का ऑपरेशन करना है. अगर दो यूनिट के डॉक्टर प्रतिदिन ऑपरेशन करें, तो 15 मरीजों का ऑपरेशन होगा. इससे मरीजों का दबाव घटेगा. मरीजों को इंतजार नहीं करना पड़ेगा. मरीज के ज्यादा दिन तक रहने से डॉक्टरों को भी परेशानी होती है.
डॉ एलबी मांझी, विभागाध्यक्ष, हड्डी विभाग
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