रामगढ़ : द्वितीय विश्व युद्ध में जान गंवा बैठे 667 चीनी सैनिकों को चीन फिर से याद करने जा रहा है. उनके शव झारखंड की राजधानी रांची से 50 किमी दूर स्थित रामगढ़ के कब्रिस्तान में दफन हैं. चीन सरकार चाहती है कि यह एक वैश्विक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो.गौरतलब है कि […]
रामगढ़ : द्वितीय विश्व युद्ध में जान गंवा बैठे 667 चीनी सैनिकों को चीन फिर से याद करने जा रहा है. उनके शव झारखंड की राजधानी रांची से 50 किमी दूर स्थित रामगढ़ के कब्रिस्तान में दफन हैं. चीन सरकार चाहती है कि यह एक वैश्विक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो.गौरतलब है कि चीनी वाणिज्य दूतावास का पांच सदस्यीय दल एमए झांगवू की अगुवाई में पिछले शुक्रवार को कब्रिस्तान गया था और उन्होंने शहीद चीनी सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी.
उन्होंने यहां प्रशासनिक अधिकारियों से कहा कि चीन ने राज्य सरकार से ऐतिहासिक कब्रिस्तान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का औपचारिक अनुरोध किया है. इस संदर्भ में रामगढ़ के उपायुक्त राजेश्वरी बी ने कहा चीन के महावाणिज्य दूत और उनके दल को शनिवार को आना था लेकिन वे निर्धारित कार्यक्रम से एक दिन पहले ही पहुंच गए.
द्वितीय विश्वयुद्ध के वक्त दफन हुए थे 667 सैनिक
भारत और चीन के बीच भले ही आज विवाद हो लेकिन एक वक्त ऐसा भी था. जब दोनों देश में रिश्ते सामान्य थे. चीनी सैनिकों का रामगढ़ में बटालियन कैंप था और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान करीब एक लाख चीनी सैनिक यहां रहते थे. ब्रिटिश सेना की मदद के लिए चीनी सेना यहां आये थे. चार साल के प्रवास के दौरान कई चीनी सैनिक असमायिक मौत के शिकार हुए और उन्हें रामगढ़ में ही दफन कर दिया गया.
इसे चाइना सेमेटरी का नाम दिया गया. कब्रों पर सैनिकों के नाम और पद चीनी भाषा में अंकित हैं. कब्रिस्तान में एक शिलालेख भी है जिसपर चीनी सैनिकों के बहादुरी और वीरता की कहानी लिखी गयी है. कब्रिस्तान के ठीक बीच विशाल स्तंभ है, जिसे तत्कालीन ताईवान के राजा चांग काई शेक की स्मृति में बनाया गया है.सेमेटरी में भगवान बुद्ध का मंदिर भी है
दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद सरकार ने चीनी सैनिकों के कब्रिस्तान को उचित सम्मान दिया. आठ एकड़ में फैले इस कब्रिस्तान की मुख्य बात है कि यहां चीनी संस्कृति का ख्याल रखा गया है. चाइना कब्रिस्तान के भीतर एक स्तंभ है जिसकी ऊंचाई लगभग 30 फुट है. चीन से कोसों दूर झारखंड की धरती में दफन इन सैनिकों के कब्र में परिजन हर साल आते हैं