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सेल के 200 कर्मचारियों के वेतन पर सूदखोरों का कब्जा

सेल के 200 कर्मचारियों के वेतन पर सूदखोरों का कब्जाफ्लैग : हाल चाईबासा के किरीबुरू व मेघाहातूबुरू आरएमडी खादान में कार्यरत कर्मचारियों का – सूद में पैसे लेने पर सूदखोरों ने रख लिया है एटीएम कार्ड – पासबुक और चेक भी है सूदखोरों के हवाले – हर माह पांच प्रतिशत की दर से सूद वसूल […]

सेल के 200 कर्मचारियों के वेतन पर सूदखोरों का कब्जाफ्लैग : हाल चाईबासा के किरीबुरू व मेघाहातूबुरू आरएमडी खादान में कार्यरत कर्मचारियों का – सूद में पैसे लेने पर सूदखोरों ने रख लिया है एटीएम कार्ड – पासबुक और चेक भी है सूदखोरों के हवाले – हर माह पांच प्रतिशत की दर से सूद वसूल रहे सूदखोर -कर्ज के बदले कइयों ने दे दी है दोगुनी राशि, पर खत्म नहीं हुआ कर्ज किस पर कितने का कर्जनाम®राशि(रुपये में)रवि पातरे®3.50 लाखफ्रांसिस हंस®3.00 लाखदेवचरण केड़ई®1.60 लाखदीनबंधु बाड़ी®4.00 लाखसबिता मिश्रा®3.00 लाखअंजार अहमद®1.90 लाखश्रीकांत लोहरा®2.50 लाखलक्ष्मण गगरई®60 हजाररामचंद्र हांसदा®4.00 लाखअमृत नारायण दास 25 हजार लिया, छह लाख का नोटिस भेजासालाना सूद 60 प्रतिशतकिरीबुरू और मेघाहातूबुरु में पांच-छह लोग हैं, जो सूद पर पैसे लगाने का काम करते हैं. पांच प्रतिशत प्रतिमाह की दर पर पैसा लगाते हैं. मतलब सूद की सालाना दर 60 प्रतिशत. अगर किसी ने एक लाख रुपया कर्ज लिया, तो उसे हर माह पांच हजार रुपये सूद के रूप में देने होंगे. यानी हर साल 60 हजार रुपये़ ये कर्मचारी फंसे हैं सूदखोर के चंगुल मेंअमृत नारायण दास, अंजार अहमद, श्रीकांत लोहरा, दीनबंधु बारी, सिबिता मिस्रा, सुरेश बोबुंगा, लक्ष्मण गगरई, रामचंद्र हांसदा, रवि पातरोफ्रांसिस हंस, देवचरण केड़ई, बनवारी दरुवां, भरत करुवां, दुर्गेश चंद्र पान, कीर्तन नायक, लिबोयान बारला, राजेंद्र प्रसाद महंती, अरुण सिंह,सुनील कुमार करजी, गोवर्द्धन दास, निरल टोपनो, कांति पान, प्रदीप कुमार बाग, श्रीकांत लोहार, भगत सिंह, अशोक पासवान, शंकर जेना, पीटर बोदरा, देव केराई, तामसोयकिरीबुरू में ये लगाते हैं सूद पर पैसाअरुण सुब्रमण्यम, राजेंद्र कुमार गुप्ता, गणेश गुप्ता, बी बासाक्या कहता है कानूनबिना लाइसेंस के सूद पर पैसा लगाना है अपराधमहाजनी प्रथा पर पूरे देश में पाबंदी है. इसके तहत सूद पर पैसा लगाना अपराध की श्रेणी में आता है. हालांकि मनी लैंडर्स एक्ट के तहत लाइसेंस प्राप्त कर कोई भी व्यक्ति यह व्यवसाय कर सकता है. एेसे व्यक्ति को कर्ज की राशि का पूरा ब्योरा रखना पड़ता है. साथ ही किसी व्यक्ति को कर्ज देने के लिए सरकार द्वारा निर्धारित प्रपत्र या फॉर्म को भरना पड़ता है. लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सूद (ब्याज) की दर से अधिक की वसूली नहीं कर सकता है. ऐसा करनेवालों के खिलाफ मनी लैंडर्स एक्ट के तहत कार्रवाई करने का प्रावधान है. महाजनी प्रथा में कीमती सामान गिरवी रख कर सूद पर रुपये दिये जाते थे. इस पर भी रोक लगी है. यह अधिकार सिर्फ बैंक के पास है. इस तरह एटीएम कार्ड, पासबुक या चेकबुक गिरवी रख कर कर्ज पर रुपये देना गैरकानूनी है.इंट्रोजिस महाजनी प्रथा के खिलाफ शिबू सोरेन ने 70-80 के दशक में आंदोलन छेड़ा था,वह आज भी जिंदा है. ताजा उदाहरण है, सारंडा के बीच में बसे किरीबुरू-मेघाहातूबुरू का. यहां सेल की खदान है. सूदखोरों ने मजदूरों को चंगुल में फंसा लिया है. उन्हें 60 प्रतिशत सालाना ब्याज की दर पर ऋण देकर उनका एटीएम कार्ड अपने पास रख लिया है. ऐसे लगभग 200 लोग हैं, जो कर्ज में डूब चुके हैं. यह आदिवासी बहुल इलाका है. नक्सल बहुल इस क्षेत्र में बगैर किसी खौफ के सूदखोर अपना धंधा चला रहे हैं और लगभग 10 लाख रुपये हर माह सिर्फ सूद में वसूल रहे हैं. किरीबुरू से लौट कर सुरजीत सिंहनाम-रवि पातरो, उम्र 53 साल. सेल में कर्मचारी हैं. ढाई साल पहले बच्चे की पढ़ाई के लिए पैसे की जरूरत पड़ी. बैंक गये. लोन नहीं मिला. तब कृष्णा सुब्रमण्यम से एक लाख रुपये का कर्ज लिया. तय हुआ था कि हर माह पांच हजार रुपये करके कुल 1.29 लाख रुपये चुकायेंगे. कृष्णा सुब्रमण्यम ने कर्ज के बदले रवि पातरो का एटीएम कार्ड, पासबुक और हस्ताक्षर किया हुआ चेकबुक रख लिया. अब सुब्रमण्यम हर माह एटीएम से रवि का पूरा वेतन निकाल लेता है. पांच हजार काट कर कुछ पैसे रवि पातरो को देता है. इस तरह रवि पातरो ढाई साल में 1.50 लाख रुपये दे चुके हैं. लेकिन अब भी एक लाख रुपये का कर्ज बचा हुआ है. अगर अपना एटीएम कार्ड, पासबुक, चेकबुक वापस लेना है, तो उन्हें एक साथ एक लाख रुपये देने होंगे. मतलब एक लाख का कर्ज ढाई साल में बढ़ कर ढाई लाख रुपये हो गया. 45 वर्षीय फ्रांसिस हंस ने 2007 में अरुण कुमार से तीन लाख रुपये कर्ज लिया था. बेटी की पढ़ाई के लिए कर्ज लेना पड़ा था. कर्ज लेते वक्त एटीएम कार्ड, चेकबुक व एक सोना का सिक्का दे दिया था. 2007 में उन्हें सेल से करीब 28 हजार रुपया प्रतिमाह वेतन मिलता था. अरुण कुमार हर माह पूरी राशि निकाल लेता था़ 20 हजार रुपये रख कर घर के खर्च के लिए सात-आठ हजार रुपये फ्रांसिस हंस को देता था. यह प्रक्रिया सात साल से चल रही है. मतलब तीन लाख के कर्ज के बदले फ्रांसिस हंस अब तक करीब 20 लाख रुपये चुका चुके हैं. यह कहानी सिर्फ रवि पातरो या फ्रांसिस हंस की नहीं है. इनकी तरह ही चाईबासा के किरीबुरू और मेघाहातूबुरू आरएमडी खादान में काम करनेवाले 200 कर्मचारी सूदखोरों के चंगुल में फंसे हुए हैं. फ्रांसिस हंस, देवचरण केड़ई, दीनबंधु बाड़ी, अमृत नारायण दास, अंजार अहमद, श्रीकांत लोहरा, सारा बारी, सबिता मिश्रा, सुदेश बेंबुआ, लक्ष्मण गगरई, रामचंद्र हांसदा जैसे कर्मचारियों की कहानी भी ठीक ऐसी ही है. फर्क सिर्फ यह है कि किसी ने अरुण सुब्रमण्यम से, तो किसी ने राजेंद्र गुप्ता से, तो किसी ने गणेश गुप्ता या बी बासा से कर्ज लिये हैं. आरएमडी सेल वेतन तो अपने कर्मचारियों के खाते में देता है, लेकिन उस पर कब्जा सूदखोरों का है. हर माह एक से पांच तारीख के बीच सूदखोर एटीएम से उनके वेतन की राशि निकाल लेते हैं. लोग बताते हैं कि जब सूदखोर एटीएम में घूसते हैं, तो एक-दो घंटे तक लगातार पैसे निकलता ही रहता है. कई कर्मचारियों की हालत यह है कि सूदखोर ही हर माह उन्हें घर चलाने के लिए कुछ रुपये देते हैं.\\\\\\\\B

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