पाटन : बात 1995 की है. तब झारखंड नहीं बना था. एकीकृत बिहार में लगभग छह करोड़ की लागत से पाटन के घोरीघाट नाला पर पुल का निर्माण हुआ था. लगभग 24 साल हो गये. पुल की मरम्मत भी नहीं हुई. वर्ष 2009 से ही पुल निर्माण की मांग उठ रही है. क्योंकि पुल जर्जर है. दूसरा कोई विकल्प नहीं. इसलिए जान जोखिम में डालकर लोग स्कूल से गुजरते है. ऊपर से ठीक दिखता है. लेकिन जैसे ही इसके पीलर पर नजर डालेंगे, तो इसकी भयावहता का अंदाजा होगा.
देखने से ऐसा लगता है कि जैसे जक पर यह पुल खड़ा है. किसी दिन ध्वस्त हो सकता है. यदि ध्यान नहीं दिया गया, तो यह पुल किसी बड़े हादसा का गवाह भी बन सकता है. इसे भी एक संयोग ही कहें कि वर्ष 1995 में जब यह पुल बना था, तो उस समय भी छतरपुर-पाटन विधानसभा क्षेत्र के विधायक राधाकृष्ण किशोर ही थे.
उन्होंने ही विशेष फंड लाकर इस पुल का निर्माण कराया था. अब इस पुल की जगह नये पुल के निर्माण की मांग उठ रही है, तो इस वक्त भी 2019 में इलाके के विधायक श्री किशोर ही है. यद्दपि लोगों का कहना है कि वर्ष 2009 में जब छतरपुर विधानसभा क्षेत्र से सुधा चौधरी ने चुनाव जीती थी, तो उस वक्त भी लोगों ने घोरीघाट नाला पर पुल निर्माण की मांग उठायी थी. भरोसा तो सुधा चौधरी ने भी दिया था. लेकिन उनका कार्यकाल गुजर गया. यह पुल आवागमन के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. पाटन के उग्रवाद प्रभावित इलाका हरैया खुर्द, हरैया कला, खजुरही, दीपौवा, रौल, लेदाई आदि गांवों को यह पुल जोड़ता है.
पहले इन गांवों में भय का माहौल रहता था. यद्यपि अब सुरक्षा के मुकम्मल इंतजाम के कारण गांवों में भय का वातावरण खत्म हुआ है. लेकिन पुल के जर्जर होने से लोगों में डर बना रहता है. प्रतिदिन हजारों लोग इस पुल से होते हुए यात्रा करते है. लेकिन इसके बाद भी विभाग की नजर इस पुल पर नहीं पड़ी है. लगभग 10 सालों से अपने मरम्मत या नये निर्माण की राह ताक रहा है. घोराघाटी पुल वह भी वैसे दौर में जब विशेष केंद्रीय सहायता के तहत ऐसे गांवों को फोकस कर काम हो रहा है. वैसे दौर में भी घोराघाटी का पुल उपेक्षित पड़ा हुआ है. यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है.