उस समय बाघों की संख्या इस इलाके में करीब 22 थी. जानकार बताते हैं कि बाघों की संख्या बढ़ कर 45 तक हो गयी. लेकिन 1990 के बाद इसकी संख्या घटने लगी जो लगातार घट रही है. वही बाघ या अन्य जानवर बचे हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियां होने के बाद भी स्वयं को बचाने में सक्षम रहे हैं. वर्तमान समय में बाघों की संख्या कितनी है इसका स्पष्ट उत्तर किसी के पास नहीं है.विभागीय पदाधिकारियों का दावा है कि बाघों की संख्या अभी भी कम नहीं है. लेकिन उन पर नजर रखना मुश्किल हो गया है. स्टॉफ की कमी सबसे बड़ी समस्या है. बाघ कहां है इसका पता नहीं चल पाता है. नतीजतन उनके वास्तविक आंकड़ें की जानकारी नहीं हो पाती है. हालांकि कैमरा ट्रैप लगाने की प्रक्रिया शुरू की गयी है. पलामू टाइगर रिजर्व के अलग-अलग जगहों से बाघों की तस्वीर ली गयी है. लेकिन इन तसवीरों में एक बात स्पष्ट नजर आयी है कि सभी बाघ नर पाये गये हैं.
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पलामू टाइगर रिजर्व का पुराना गौरव लौटाने का प्रयास
बेतला: यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पलामू की पहचान बाघों से रही है, एक जमाना था जब यह इलाका बाघों के लिए जाना जाता था. दूर दराज के शिकारी बाघों का शिकार करने के लिये यहां आते थे. जानकारों की माने तो अंग्रेजों के समय में सबसे अधिक बाघों का शिकार हुआ. उस समय […]
बेतला: यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पलामू की पहचान बाघों से रही है, एक जमाना था जब यह इलाका बाघों के लिए जाना जाता था. दूर दराज के शिकारी बाघों का शिकार करने के लिये यहां आते थे. जानकारों की माने तो अंग्रेजों के समय में सबसे अधिक बाघों का शिकार हुआ. उस समय तो बाघ के शिकार करनेवालों को इनाम भी दिया जाता था. प्रत्येक बाघ की शिकार पर डालटनगंज के कचहरी पर शिकारी को 25 रुपये का इनाम दिया जाता था. आजाद भारत में भी बाघों को मारने का सिलसिला नहीं थमा, 1951 से 1970 तक अंधाधुंध बाघों का शिकार किया गया. 1970 में जब बाघों की गिनती करायी गयी थी तो उस समय इनकी संख्या 34 थी. इसके बाद बाघों के संरक्षण पर ध्यान दिया गया. 1974 में पलामू टाइगर रिजर्व की स्थापना की गयी.
इसका मतलब है कि पलामू टाईगर रिजर्व में एक भी बाघिन नहीं है. साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ है कि अभी तक एक भी बाघ की तसवीर नहीं ली जा सकी है. जो इस बात को प्रमाणित करता है कि बाघों की संख्या बढ़ नहीं रही है. इसे विभागीय पदाधिकारी भी स्वीकार करते हैं. उनका मानना है कि 2022 तक बाघों की संख्या में वृद्धि होगी. इसके लिए दूसरे टाइगर प्रोजेक्ट से बाघिन को लाया जायेगा. ऐसी परिस्थितियां तैयार की जायेगी की बाघों की संख्या बढ़े. पलामू टाइगर रिजर्व का पुराना गौरव वापस लौटे इसके लिए विभागीय प्रयास तेज कर दिया गया है.
ग्रामीणों की सहभागिता जरूरी
पलामू टाइगर रिजर्व के क्षेत्र निदेशक एमपी सिंह के अनुसार पीटीआर क्षेत्र में पड़ने वाले 168 गांवों के लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. इन गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब है इसलिए उन गांवों का विकास जरूरी है. जब तक गांव के लोग आत्मनिर्भर नहीं होंगे तब तक जंगल बचाने की दिशा में कार्य करना कठिन है. इसके लिए विभाग द्वारा कई उल्लेखनीय कार्य कराने का प्रस्ताव है. इनमें इको विकास समिति को सशक्त कर ग्रामीणों का सर्वागीण विकास करना है.
पदाधिकारियों को ग्रामीणों से जुड़ना होगा
वाइल्ड लाइफ के सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि पदाधिकारियों का जुड़ाव ग्रामीणों से होना जरूरी है. जब गांव के लोग पदाधिकारियों को अपना समझेंगे तो निश्चित रूप से उनकी बात को सुनेंगे. इतना तो तय है कि पीटीआर के जितने भी गांव के लोग हैं वे काफी समझदार हैं. जंगल बचाना चाहते हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो पीटीआर कब का खत्म हो जाता.
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