बड़ी बात . बालू उठाव के कारण नदियों का अस्तित्व खतरे में
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समय के साथ गुम हो गयी बांसलोई की धार
बड़ी बात . बालू उठाव के कारण नदियों का अस्तित्व खतरे में पाकुड़ : जिले की एक मात्र सबसे बड़ी बांसलाई नदी की आज अस्तित्व खतरे में हैं. सुंदरपहाड़ी से निकलकर पाकुड़ जिले के आमड़ापाड़ा व महेशपुर प्रखंड होते हुए पश्चिम बंगाल के बांसलाई रेलवे स्टेशन से आगे निकलने वाली इस नदी में आज पानी […]
पाकुड़ : जिले की एक मात्र सबसे बड़ी बांसलाई नदी की आज अस्तित्व खतरे में हैं. सुंदरपहाड़ी से निकलकर पाकुड़ जिले के आमड़ापाड़ा व महेशपुर प्रखंड होते हुए पश्चिम बंगाल के बांसलाई रेलवे स्टेशन से आगे निकलने वाली इस नदी में आज पानी है ही नहीं. नदी की बिगड़ते हालत पर न तो प्रशासन का ही ध्यान है और न ही किसी जन प्रतिनिधि का. नदी के अस्तित्व पर खतरा होने से सबसे ज्यादा असर क्षेत्र के किसानों को हुई है. इसके अलावे जल स्तर भी नीचे जाने से भीषण गरमी में लोगों की परेशानियां बढ़ा कर रख दी है. राज्य ही नहीं बिहार व बंगाल में बांसलाई नदी की बालू की बढ़ती मांग तब नदी के अस्तित्व पर खतरा बन कर टूट पड़ा,
जब बालू घाटों का सरकारी स्तर पर निलामी हो गया. सरकार की ओर से बालू उठाव को लेकर जैसे ही निलामी प्रक्रिया शुरू की गई बालू माफियाओं ने इन घाटों का डाक कराया. फिर क्या था आधे-अधूरे कागजात के सहारे ही स्थानीय पदाधिकारियों व पुलिस की मिली भगत से बडे पैमाने पर बालू का उठाव कर लिया. जो काम चार-पांच वर्षों में किया जाना था उसे महज एक -दो साल के भीतर ही कर दिया गया. बालू नदी से पुरी तरह उठा कर लिए जाने के कारण नदी की स्थिति है कि नदी में बालू के जगह पर अब मिट्टी दिखने लगी है. इसका सबसे ज्यादा असर जलस्तर पर पड़ा है. जबतक नदी में बालू रही क्षेत्र का जलस्तर भी काफी हद तक ठीक रहा था. जानकार बताये है कि नदी में जितनी मोटी बरत तक बालू रहेगी जलस्तर उतना ही अच्छा रहेगा.
अविभाजित बिहार के समय तैयार किये गये सिंचाई योजना हुई धराशायी
महेशपुर के किसानों के लिए करोड़ों रुपये की लागत से अविभाजित बिहार के समय बनाये गये उद्वह सिंचाई योजना भी आज धराशाही हो चुकी है. इसका मूल कारण अब नदी में पानी का ठहराव नहीं होना भी बताया जाता है. हालांकि पूर्व से ही उक्त योजना की हालत गंभीर बनी हुई है. स्थानीय जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधि की अनदेखी के कारण भी किसानों के लिए बनाये गये इतनी महत्वपूर्ण योजना बरबाद हुई है.
किसी भी क्षेत्र की संस्कृति व समृद्धि वहां की नदियों से जुड़ी होती है. मानव सभ्यता का विकास भी नदियों के किनारे हुआ है. लेकिन, कालांतर से नदियों का भरपूर दोहन हो रहा है. बालू का उठाव हो रहा है. कई जगह नदियों की जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है. नदियों में बोरिंग पर पानी निकाला जा रहा है. नदियों के संरक्षण पर कोई काम नहीं हो रहा है. नतीजा साफ है, आज नदी रूपी वही जीवनधारा सूख रही है. गरमी के मौसम में हर जगह पेयजल की किल्लत है. नदियाें में भी पानी नहीं है. अगर समय रहते हम नहीं चेते तो आने वाले समय में यह समस्या और भयावह हो जायेगी. नदियों के प्रवाह को रोकना यानी मानव सभ्यता के विकास को रोकना बन जायेगा. ‘मत रोको प्रवाह’ में आज की कड़ी में पढ़ें पाकुड़ के बांसलोई नदी पर रिपोर्ट-
प्रभावित गांव
नदी में पानी रहने के कारण नदी किनारे बसे महेशपुर के चंदालमारा, चंम्पापाड़ा, लखिपुर, रामपुर, जगदीशपुर, बाबुपुर, कुलबुना, दुबराजपुर, रामपुर के अलावे अमड़ापाड़ा के पचुवाड़ा, अलुबेड़ा, बरमसिया, अमड़ापाड़ा सहित अन्य क्षेत्र के किसान प्रभावित है.
कहते हैं पर्यावरणविद
केके कॉलेज के वनस्पति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ प्रसेनजीत मुखर्जी ने कहा कि नदियों अप्राकृतिक तरीके से केवल लाभ कमाने के लिए आज दोहन किया जा रहा है. जिस तरह से अत्यधिक बालू का उठाव किया गया है. इससे नदी अब केवल बरसाती नदी का रूप ले चुकी है. अब भी समय है झारखंड के नदियों के अस्तित्व को बचाने की समय रहते अादि ठोस नीति के तहत पहल नहीं की गयी तो निश्चित तौर पर काफी नुकसान झेलना पड़ेगा.
कृषि क्षेत्र पर पड़ा है सबसे ज्यादा असर
कभी बांसलोई नदी के किनारे जबरदस्त खेती होती थी. अाज स्थिति यह है कि नदी में पानी नहीं रहने के कारण किसान सही तरीके से खेती भी नहीं कर पा रहे हैं. महेशपुर प्रखंड के दर्जनों गांव जो नदी किनारे बसी है. यहां के लोग सालों पर खेती पर भी निर्भर रहते हैं. गरमी के समय नदी किनारे हजारों एकड़ जमीन पर किसान सब्जी की खेती करते थे. परंतु नदी मे पानी नहीं रहने के बजह से अब अधिकांश खेत बंजर ही रह गया है. किसानों के मुताबिक श्रावणी मेला के समय महेशपुर के नदी किनारे उपजने वाले सब्जी काफी मात्रा में देवघर ट्रांसफोट के माध्यम से भेजा जाता था. अब उत्पादन में काफी गिरावट आने के वजह से प्राप्त मात्रा में नही भेजा जा पा रहा है. यही हाल अमड़ापाड़ा क्षेत्र की भी है. नदी किनारे बसे किसान फसल उपजाने के लिए अपने खेतों में दर्जनों बोरिंग भी किया था जो आज फेल होता जा रहा है. इसका भी कारण नदी में पानी का नहीं ठहराना बताया जाता है.
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