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पीते हैं चुआं का पानी, मरीज खटिया पर जाते हैं अस्पताल

अमित कुमार राज कुड़ू : लोहरदगा जिला गठन के 35 साल तथा कुड़ू प्रखंड गठन के 62 साल बाद भी प्रखंड के विभिन्न गांवों की हालत नहीं सुधरी है. प्रखंड के आधा दर्जन गांव ऐसे हैं जहां के ग्रामीण सालों भर चुआं का पानी पीते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं बनी है. […]

अमित कुमार राज

कुड़ू : लोहरदगा जिला गठन के 35 साल तथा कुड़ू प्रखंड गठन के 62 साल बाद भी प्रखंड के विभिन्न गांवों की हालत नहीं सुधरी है. प्रखंड के आधा दर्जन गांव ऐसे हैं जहां के ग्रामीण सालों भर चुआं का पानी पीते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं बनी है. स्वास्थ सेवा के लिए ग्रामीण मरीजों को खटिया पर लाद कर स्वास्थ केंद्र लेकर आते हैं. शिक्षा का हाल भी बेहाल है.

मूलभुत सुविधा के नाम पर ग्रामीण आजादी के बाद से किसी तारणहार का इंतजार कर रहे हैं. बताया जाता है कि कुड़ू प्रखंड का गठन साल 1956 में हुआ था. प्रखंड बनने के बाद प्रथम बीडीओ के रूप में रामा प्रसाद मुखर्जी पदभार ग्रहण किये थे.

तब कुड़ू प्रखंड रांची जिले के अधीन संचालित था. इसके बाद 17 मई 1983 को लोहरदगा जिला का गठन किया गया. कुड़ू लोहरदगा जिला में आ गया़ ग्रामीणों की आश जगी की लोहरदगा जिला बनने से प्रखंड का अपेक्षित विकास होगा. कुड़ू प्रखंड से कैरो को अलग कर उसे प्रखंड बनाया गया़ कैरो के प्रखंड बनने से पहले कुड़ू प्रखंड में 76 राजस्व गांव तथा 17 पंचायत था.

लेकिन कैरो प्रखंड के गठन को लेकर कुड़ू प्रखंड के तीन पंचायतों हनहट, सड़ाबे तथा कैरो प्रखंड के 11 गांव कैरो प्रखंड में शामिल हो गये. प्रखंड के 65 गांव में सूदुरवर्ती क्षेत्रों सलगी पंचायत के चूल्हापानी, खम्हार, मसियातू, जवरा, नामुदाग, असनापानी, चारागदी, बड़की चांपी पंचायत के मसुरियाखांड़ ऐसे गांव हैं जहां पेयजल की भारी समस्या है. असनापानी, जवरा, नामुदाग में चापानल है लेकिन पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है. शेष गांव चूल्हापानी, मसियातू, मसुरियाखांड़,खम्हार ऐसे गांव हैं जहां के ग्रामीण सालों भर चुआं व नदी का पानी पीते हैं. सबसे दयनीय हालत पहाड़ की तराई, जंगलों के बीच बसे गांवों की है.

चूल्हापानी, मसुरियाखांड़, मसियातू गांव जाने के लिए कोई सड़क नहीं है यहां जाने के लिए जंगल व पहाड़ी पगडंडी है. गांव में जब कोई बीमार पड़ता है तो आवागमन का साधन नहीं रहने के कारण ग्रामीण मरीज का पहले जंगली जड़ी-बूटी से इलाज करते हैं.

ज्यादा हालत खराब होने पर खटिया या टोकरी में लाद सलगी, चांपी लाते हैं और यहां के बाद वाहन से कुड़ू, लोहरदगा लेकर जाते हैं. विकास के नाम पर इन गांवों का आजादी के बाद अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है. ग्रामीण रोजगार की तलाश में दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं.

जो गांव में रहते हैं वे लकड़ी, जंगल में होने वाले महुआ, ढोरी, केंदू पता बेच किसी प्रकार गुजारा करते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि गांव की समस्या से संबधित आवेदन कई बार प्रखंड प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन, स्थानीय जनप्रतिनिधियों को दिया गया लेकिन इसका कोई लाभ ग्रामीणों को नहीं मिला़ इस संबंध में कुड़ू बीडीओ राजश्री ललिता बाखला ने बताया कि समस्या है, सभी समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर निपटारा किया जा रहा है.

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