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कांदा-गेठी ही है निवाला

दर्द बरवाडीह के कोरवा परहिया समुदाय के लोगों का बरवाडीह : प्रखंड के सुदूर क्षेत्रों में रहनेवाले आदिम जनजाति कोरवा परहिया समुदाय के लोगों को बुनियादी सुविधा भी मयस्सर नहीं है. भुखमरी का दंश ङोल रहे लोग जंगली फल कांदा-गेठी खाने को मजबूर हैं. प्रखंड की हरातू, लादी, गणोशरपुर, लात पंचायत में रहनेवाले आदिम जनजाति […]

दर्द बरवाडीह के कोरवा परहिया समुदाय के लोगों का

बरवाडीह : प्रखंड के सुदूर क्षेत्रों में रहनेवाले आदिम जनजाति कोरवा परहिया समुदाय के लोगों को बुनियादी सुविधा भी मयस्सर नहीं है. भुखमरी का दंश ङोल रहे लोग जंगली फल कांदा-गेठी खाने को मजबूर हैं. प्रखंड की हरातू, लादी, गणोशरपुर, लात पंचायत में रहनेवाले आदिम जनजाति के कोरवा, परहिया समुदाय के राजेंद्र परहिया, यमुना परहिया, लखन परहिया, विश्वनाथ परहिया, अर्जुन परहिया, लीलावती परहिन ने बताया कि गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

रोजगार नहीं है. मनरेगा के तहत काम मांगने पर भी काम नहीं मिल रहा है. ऐसे में उन लोगों के समक्ष भुखमरी की स्थिति कायम है. भूखे मरने से अच्छा है जंगल से खुदाई कर कांदा गेठी को अपना भोजन बनाते हैं. सरकार द्वारा वितरण किये जानेवाले अनाज भी बिचौलियों के कारण गांव में नहीं पहुंच पाता है.

दो-चार माह बाद गांव में चावल पहुंचता भी है, तो 35 किलो की जगह 15-20 किलो चावल ढुलाई लेकर वितरण किया जाता है. आदिम जनजाति के लोगों ने बताया कि गांवों में पीने के पानी की घोर समस्या है. चापानल नहीं रहने के कारण दूषित पानी पीना पड़ता है. स्वास्थ्य केंद्र का लाभ नहीं मिलता. बीमारी में इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है. आदिम जनजाति परिवार के लोगों ने गांवों में व्याप्त समस्या का ध्यान प्रख्ांड विकास पदाधिकारी रवींद्र कुमार को दिलाते हुए इसके निदान की मांग की है.

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